जिंदगी से कम हो गए एक साल!
अब जवानी क़ी कम होगी बयार!!
क्या बचपन,अल्हड-दीवानापन था !
क्या खुशियाँ और गम थे !!
माँ का आँचल था!
क्षण में खुशी और गम का आलम था!!
न कोई परवाह थी,न कोई गिला-शिकवा!
बस दोस्त थे और दोस्ती थी!!
जिंदगी से कम हो गए एक साल!
अब जवानी क़ी कम होगी बयार!!
न वो बचपन,अल्हड़-दीवानापन रहा!
न वैसी खुशियाँ और गम रहे!!
न माँ का आँचल रहा!
अब खुशी और गम में भी इक दर्द है!!
वो दर्द बचपन,अल्हड़-दीवानेपन के जाने का है!
वो दर्द बुढ़ापे के आने का है!!
जिंदगी से कम हो गए एक साल!
अब जवानी क़ी कम होगी बयार!!
कहते हैं आदमी तन से बूढ़ा होता है,मन से नहीं !
क्या लौट सकता है?मन से वो बचपन!!क्या लौट सकता है?वो अल्हड दीवानापन!
क्या लौट सकती हैं?वैसी खुशियाँ और गम!!
क्या लौट सकता है?माँ का वो आँचल!
यदि हाँ तो मैं जीना चाहता हूँ!!
उस बचपन,अल्हड-दीवानेपन को दोबारा!
उस खुशी और गम को दोबारा!!
माँ के आँचल क़ी उस छांव को दोबारा!
उन यारों क़ी यारी को दोबारा !!
जिंदगी से कम हो गए एक साल!
अब जवानी क़ी कम होगी बयार!!
"सुमन"
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