Thursday, June 30, 2011

जीने की अभिलाषा !


है जीने की अभिलाषा !
हर एक की अभिलाषा !
है जीने की अभिलाषा !
योगी,स्वामी,भोगी,ढोंगी !
सब की एक अभिलाषा !
है जीने की अभिलाषा !
ना होती अभिलाषा ! 
जीवन का विज्ञान ना होता !
संपूर्ण स्वास्थ्य का सिद्धांत न होता !
आयुर्वेद महान ना होता !
हर जीवन की एक अभिलाषा !
है जीने की अभिलाषा !
पर कैसी हो अभिलाषा ?
सुखकर जीवन की अभिलाषा !
या दुःखकर मौत की अभिलाषा !
या बस जीने की अभिलाषा .......!

मानसून :बीमारियाँ एवं आयुर्वेदिक उपचार


मानसून के आते ही सपूर्ण धरा हरियाली से परिपूर्ण हो जाती है,तथा हर तरफ नवसृजन का रोमांच प्रस्फुटित हो जाता है,लेकिन साथ ही बारिश के बाद अचानक आई धूप से उत्पन्न उमस कई बीमारियों का कारण बन जाती हैI
इसी मौसम में खांसी-जुखाम एवं नजला जैसी समस्या कुछ लोगों में आमतौर पर देखने में आती है I ऐसी ही कुछ सामान्य जान पड़नेवाली परेशानियों की  लगातार अनदेखी से कई बार खतरनाक संक्रमण भी उत्पन्न हो सकता है I हाँ,थोड़ी सी सावधानियां एवं प्राकृतिक जीवनशैली को अपनी दिनचर्या में शामिल कर हम  न केवल रोगों से बच सकते हैं, बल्कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को  बढ़ाकर भविष्य में होनेवाले संक्रमणों से निजात पा सकते हैं I                  आयुर्वेद संपूर्ण जीवन का विज्ञान है जहाँ प्राकृतिक जडी -बूटियों एवं जीवनशैली में परिवर्तन को विशेष महत्व दिया गया है,ऐसे ही कुछ सरल आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक उपायों को हम दैनिक रूप से उपयोग कर मानसून के समय होनेवाली सामान्य बीमारियों से अपने शरीर की रक्षा कर सकते हैं I
*तुलसी के पत्तों को अदरख एवं काली मिर्च के साथ हलके गुनगुने पानी में मिलाकर लगातार चाय के रूप में सेवन करने से नजला-जुखाम से राहत मिलती है I
*गिलोय के डंठल को छोटा काटकर इसका रस निकालकर  हल्दी के पाउडर के साथ समान मात्रा में मिलाकर आधा से एक चम्मच लगातार सेवन करने से एलर्जी से निजात मिलती है I
*आधा चम्मच सौंठ का शहद के साथ लगातार प्रयोग भूख को सामान्य कर इस ऋतु में होने वाले जोड़ों के दर्द के लिए अचूक औषधि है I
*त्रिकटु चूर्ण एवं अविपत्तिकर चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर लगातार गुनगुने पानी से आधा से एक चम्मच लेना गले के दर्द (टांसिल में सूजन ) में हितकारी होता हैI
*नीम के पत्ते का बारीक चूर्ण,गिलोय का चूर्ण एवं आंवले का चूर्ण समभाग या तीनों का ताजा रस निकालकर लगातार एक चम्मच सेवन करना रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता हैI
*चिरायता,करेला,गिलोय,नागरमोथा,पित्तपापडा इन सबका स्वरस निकालकर आधे से एक चम्मच तक उम्र के अनुसार प्रयोग कराने से मौसमी बुखार में लाभ मिलता है I
*भोजन के पचने के बाद  हरड,भोजन से पूर्व बहेड़ा एवं भोजन के तत्काल बाद आंवले का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ नित्य सेवन करने से पेट की  बीमारियाँ नहीं होती हैं  तथा भूख एवं पाचन की  प्रक्रिया सामान्य होती हैI
* दूब घास का स्वरस, प्याज का स्वरस एवं अदरख का स्वरस मौसमी नकसीर (नाक से खून निकलना ) के रोगियों के  नाक में दो से चार बूँद टपका देने मात्र से चमत्कारिक लाभ मिलता हैI
* हरड का इस ऋतू में अलग-अलग प्रयोग विभिन्न रोगों में अचूक  लाभ देता है जैसे :चबाकर खाने से भूख खुलती है,पीसकर खाने से पेट साफ़ होता है,उबालकर खाने से संग्रहणी (कोलाईटिस) में लाभ मिलता है I 
* बर्षा ऋतु में गरिष्ट भोजन कब्ज का कारण बनता है अतः त्रिफला चूर्ण  का आधे से एक चम्मच लगातार सेवन कब्ज को दूर कर,पाईल्स के रोगियों में लाभ देता है I
इस ऋतु में कुछ सावधानियों को भी ध्यान में रखकर हम अकारण ही रोगों के आमंत्रण को दूर कर सकते हैं:-
*रात्रि में दही के सेवन से यथासंभव बचें,अगर लेना हो तो काला नमक या निम्बू के साथ ही  लें I
*अचानक धूप से आकर आइसक्रीम,शीतल पेय आदि का सेवन ना करें i
*वातानुकूलित कमरे से अचानक धूप में तथा धूप से अचानक वातानुकूलित कमरे में आने से बचें I
*ताज़ी सब्जियों एवं फलों के सेवन को भोजन में प्राथमिकता दें I
*यदि गले में दर्द टांसिल में सूजन के कारण हो तो खट्टे अचार एवं शीतल पेय के सेवन से बचें तथा गुनगुने पानी में नमक डालकर तीन से चार बार गरारे करें I
*भोजन में शाकाहार को प्राथमिकता देते हुए सलाद एवं रेशेदार आहार को प्राथमिकता दें I
*यथा संभव पार्टियों में दिए जानेवाले तले भूने मसालेदार एवं गरिष्ट भोजन से दूर रहें I

आयुर्वेदिक सरल नुस्खों के अलावा आयुर्वेदिक जीवनशैली को  अपनाकर  भी हम मानसूनी बीमारियों से बच सकते हैं,जैसे :प्रातः काल गुनगुने पानी का नित्यप्रति सेवन पेट से सम्बंधित बीमारियों के लिए रामबाण औषधि के तुल्य हैI योग के आसनों एवं प्राणयाम  का अभ्यास एवं नियमित तनावमुक्त दिनचर्या हमारे जीवन से शारीरिक एवं मानसिक विकृतियों को दूर रखने में मददगार होती है Iकहा भी गया है "जैसा होगा भोजन वैसा होगा मन"I अतः भोजन को संतुलित एवं सयंम से प्रयोग कर तथा आयुर्वेदिक प्राकृतिक औषधियों का नित्य सेवन कर हम  स्वयं को निरोगी बना  सकते हैं I

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डॉ नवीन चन्द्र जोशी
एम्.डी.आयुर्वेद 
सम्पादक आयुष दर्पण
ई -मेल  :ayushdarpan@gmail.com 

Friday, June 24, 2011

संघर्ष


जीवन संघर्षों की कहानी है.हर व्यक्ति जो महान या सफल बनता है उसके जीवन में संघर्षों का एक दौर आता है .वैसे भी अस्तित्व के लिए संघर्ष की बात प्रख्यात दार्शनिक डार्विन ने भी की थी.इस कहानी के पात्र शिवशंकर  से एस ..शंकर बनने की कहानी एक आम आदमी से जुडी हुए कहानी है .आशा है आपको पसंद आयेगी.........
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  वर्ष १९५० ,हिमांचल में किशनपुर नामका छोटा सा गाँव जो समुद्र तल से ३५५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित था ,वहां लगभग ३०० परिवारों का एक समूह पर्वतीय जीवन शैली के अनुरूप अपना जीवन गुजर वसर करता थाIब्रिटिश हुकूमत से निजात पाए कुल ३ साल का समय हुआ था I अधिकाँश गावों का सड़क से संपर्क नहीं था,बिजली ना होने के कारण दीये   का ही एक सहारा था Iगाँव में स्कूल तो था पर लगभग १० कम दूर,वहाँ आसपास के ३ गावों के बच्चे पैदल ही पढ़ने आया करते थे Iअस्पताल के नाम पर एक जीर्ण -शीर्ण आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी जहाँ एक वार्ड बॉय ही लोगों के लिए चिकित्सा  का  सहारा थाIगाँव से जिला मुख्यालय पालमपुर लगभग ३० किलोमीटर पैदल था Iलोगों को छोटे -मोटे काम के लिए भी १५ किलोमीटर दूर स्थित तहसील सेलम जाना पड़ता था Iकिशनपुर में सभी जातियों के लोग बड़े ही सौहार्द से रहते थे ,क्योंकि उनके जीवन का स्तर लगभग एक सा ही था I गावों में शिक्षा के नामपर जो स्कूल था उसमें भी केवल कक्षा आठ तक की पढ़ाई थी और शिक्षक केवल दो थे,जिनमे से एक अधिकाँश समय छुट्टी पर ही रहते थे Iगावों के पुरुष एवं महिलाएं सीढीनुमा खेतों में अपने खाने योग्य अनाज लगाकर अपनी जीविका को निर्वाह कर रहे थेI वह परिवार जिसके बच्चे ने आठवीं कक्षा पास कर ली उसके पास दो रास्ते थे या तो फ़ौज में भर्ती हो जाय या फिर किसी के साथ पालमपुर जाकर आगे की  शिक्षा ले पर सभी के लिए यह संभव नहीं था I इसी गाँव में रमाशंकर पंडित का एक परिवार रहता था,उसके तीन लड़के बड़े का नाम हरिशंकर पंडित,बीच वाले का नाम रामशंकर पंडित एवं सबसे छोटे का नाम शिवशंकर पंडित थाI हरिशंकर ने कक्षा आठ तक की पढ़ाई करने के बाद पालमपुर जाकर फ़ौज की भर्ती में सम्मिलित हुआ,तथा उसका चयन भी हो गया,तथा वह परिवार का कमाऊ सदस्य बन गयाIआसपास के परिवारों में रमाशंकर के परिवार कि बड़ी इज्जत होने लगीIलड़का जो सरकारी नौकरी में लग गया था ! धीरे -धीरे समय बीतता गया हरिशंकर ने आगे पढ़ाई फ़ौज के तौर तरीकों से ही की  ,जबकि कृपाशंकर स्कूल से अक्सर इधर -उधर भाग जाता था ,उसकी पढ़ने में रूचि बहुत कम थीIपंडित परिवार होने के कारण रमाशंकर आसपास के गावों में पूजा पाठ कराया करते थे ,इससे परिवार को आर्थिक सहारा मिल जाता था I कृपाशंकर  का अपने पिताजी के साथ पूजा -पाठ में ही अधिक मन लगता था तथा वह बचे समय में खेतों में काम कर अपनी माँ का हाथ बंटाता था Iपूजा -पाठ से अच्छी कमाई होने के कारण रमाशंकर ने अपने बीच वाले बेटे कृपाशंकर को हरिद्वार में आठवी कक्षा के बाद संस्कृत में मध्यमा की पढ़ाई के लिए भेजने चाहा Iपर रामशंकर को यहाँ  कहाँ मंजूर होता वह सातवीं कक्षा को ही उत्तीर्ण नहीं  कर पायाIसमय बीतता गया,रमाशंकर का छोटा पुत्र शिवशंकर धीरे-धीरे बड़ा हो रहा थाIवह अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का बालक था Iगाँव के प्रतिष्ठीत ज्योतिषी पंडित सोमदत्त ने उसकी कुण्डली बनाते वक़्त ही उसके प्रतिभाशाली एवं संपन्न होने की भविष्यवाणी  की  थीIलेकिन घर के लोगों को इसपर विश्वास नहीं था,उनके लिए तो शिवशंकर भी रामशंकर और कृपाशंकर की तरह ही एक सामान्य बालक था Iअब शिवशंकर भी कक्षा सात में पहुँच गया था,तथा कई बार वह अपनी कक्षा में शिक्षक द्वारा गलत पढाये जाने की और इंगित करने लगा था,इससे स्कूल के एक मात्र शिक्षक नवीन शास्त्री अनावश्यक रूप से चिड़ने लगे,और उसे कक्षा सात की परीक्षाओं में सबक सिखाने का ठान बैठे Iशिवशंकर को इस बात का कहाँ एहसास होता वह तो मासूम और भोला जो थाI स्कूल से आने के बाद वह भी कृपाशंकर की तरह ही खेतों में काम कर अपने परिवार का हाथ बंटाता था I हरिशंकर भी अब घर को पैसा भेजने लगा था,जिससे घर की आर्थिक हालत सुधरने लगी थीIएक दिन बारिश का मौसम था गाँव के लोग खेतों में फसल काटने में लगे थी तभी एक बच्चे ने रमाशंकर को शिवशंकर के कक्षा सात में फेल होने की जानकारी दी I शिवशंकर तब जानवरों के लिए चारा लाने गया था,जब घर लौटा तो घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा थाI कृपाशंकर ने शिवशंकर के फेल होने की  खबर सुनायी ,यह खबर तो शिवशंकर के लिए आसमान टूट कर गिरने के समान थी ,उसने सपने में भी फेल होने का नहीं सोचा थाI खैर होनी को कुछ और ही मंजूर था,पिताजी ने अब शिवशंकर को गाँव के ही लड़के प्रदीप के साथ पालमपुर भेज दिया Iप्रदीप और कृपाशंकर साथ-साथ रहने लगे,प्रदीप कक्षा आठ में पढ़ता था जबकि शिवशंकर ने  दुबारा कक्षा सात में प्रवेश लियाIबड़े भाई हरिशंकर को जब इस बात का पता चला तो उसने पिताजी को पत्र लिखा कि आप शिवशंकर कि चिंता ना करें उसका खर्च में वहन करूंगाIधीरे -धीरे शिवशंकर अपनी पढाई करता रहाIरमाशंकर दमे का मरीज था ,एक दिन अचानक उसे सीने में दर्द हुआ और गाँव  के लोग उसे रात  ही डोली में रखकर पालमपुर को लाने लगे पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था ,रमाशंकर रास्ते में ही चल बसे ,अचानक ही आयी  इस विपदा ने सभी को झकझोर दियाI अब हरिशंकर परिवार की जिम्मेदारी आ पडी,अब उसे शिवशंकर के साथ घर को भी पैसे भेजने पड़ते थेI थोड़े ही दिनों बाद हरिशंकर का विवाह संपन्न हुआ,और वह अपनी नव विवाहिता  पत्नी को लेकर चेन्नई चला गया Iसमय बीतता गया शिवशंकर भी अपने कक्षा में अव्वल आने लगा Iथोड़े दिनों बाद गाँव के भाई की भी पास के ही गाँव की लडकी से शादी हो गयी I अब गाँव में कृपाशंकर ,उसके पत्नी एवं माँ ही रहते थेI वो लोग खेती -बाड़ी कर अपना गुजर बसर करते थे,कभी कभी हरिशंकर भी  पैसे भेज देता था ,लेकिन अब उसका भी अपना परिवार था,इसलिये उसे भाई और गाँव दोनों जगह पैसे भेजने में कठिनाई होती थी Iअब शिवशंकर ने अपनी पढ़ाई के साथ- साथ अपने से छोटी  कक्षा के छात्रों  को टयूसन पढ़ाना प्रारंभ किया,जिससे उसका थोड़ा बहुत जेब खर्च निकल जाता था,कभी कभी वह चुपचाप बस स्टेशन पर जाकर लोगों का  सामान  भी   ढो  लेता,उसे किसे भी काम को करने में कठिनाई नहीं होती थी Iइसप्रकार वह अब अपना खर्च स्वयं बहन  कर अपनी पढाई को आगे बढ़ा रहा थाI धीरे धीरे वह आठवीं,नौवीं एवं दसवी कक्षा को सफलतापूर्वक उतीर्ण कर,ग्यारवी कक्षा के पढ़ाई के लिए शिमला आ गयाI तभी शिमला में रोडवेज में क्लर्क क़ी नियुक्ति हेतु विज्ञापन निकला था,जिसमे मासिक ७५ रुपैये का वेतन थाI दोस्तों ने कहा शिवशंकर यह नौकरी कर लो,पर शिवशंकर को यह कहाँ मंजूर था,उसकी मंजिल तो कहीं और थी ! सभी ने कहा बड़े -बड़े ख्वाब देखना छोड़ दे, शिवशंकर ! अपने परिवार क़ी माली हालत तो देख ! बाबू की नौकरी पकड़ ले,इसमें उपरी कमाई  भी होती हैIशिवशंकर ने कहा बाबू नहीं बनना है मुझे!.........क्रमशः 

Saturday, June 4, 2011

शब्द अनमोल नहीं अमोल हो गए हैं!


शब्द अनमोल नहीं अमोल हो गए हैं!
विश्वास निष्ठा का, 
विश्वास आस्था का ,
विश्वास नैतिकता का ,
विश्वास शुचिता का, 
शब्द अनमोल नहीं अमोल हो गए हैं !
सच्चाई बरतने का ,
ईमानदारी से जीने का ,
आदर्शों पे चलने का, 
शुचिता बरतने का ,
शब्द अमोल  नहीं अनमोल  हो गए हैं !
भ्रस्टाचार से सामंजस्य का,
बेईमानी से जीने का, 
आस्था से धोखे का ,
लाचारी बरतने का ,
शब्द अमोल  नहीं अनमोल  हो गए हैं !
जमीर  से समझोते का ,
धोखे से आगे बढ़ने का ,
ग़ुरबत को  दबाने का,
 दहशत फैलाने का ,
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आयुर्वेद एवं त्वरित चिकित्सा


आयुर्वेद को त्वरित चिकित्सा के रूप में प्रायोगिक तौर पर प्रभावी बनाने के लिए रस  औषधियों पर और अधिक वैज्ञानिक रूप से काम किये जाने की आवश्यकता हैI रस शास्त्र के इतिहास को यदि देखा जाय तो व्याड़ी दंपत्ति की कथा का स्मरण करना चाहिएIये दोनों पति पत्नी किमियागीरी के चक्कर में अपनी सारी संपत्ति को बर्बाद कर बैठे थे तथा क्षिप्रा के तट पर अपनी समस्त पुस्तकों   को एक- एक कर विसर्जित कर विक्षिप्त थे ,तभी उन्हें रस औषधियों को सिद्ध करने की सिद्धि प्राप्त हुई तथा दोनों हवा में उड़ने लगे Iयह बात सुनने  और समझने में अटपटी लगती है,लेकिन यही प्रश्न जब मैंने एक रसविद्या के महारथी से  किया तो  उन्होंने मुझे अपना पासपोर्ट दिखाया , जिसमे हर महीने दुनियाँ के देशों में वायुयान से गमन का रिकार्ड दर्ज था.तब मुझे लगा कि ये विद्या वाकई चमत्कारिक हैIआज रस औषधियों के बारे में चाहे जितने भी असहज पहलू हौं लेकिन यह विद्या आयुर्वेद को त्वरित  चिकित्सा  के रूप में स्थापित कर सकती हैIआज नेनो -टेक्नोलजी का सिद्धांत तथा चीलेट थ्योरी ,इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करने  में मददगार हो,लेकिन इन औषधियों के निर्माण की लागत इसे आम व्यक्ति से दूर ले जाती है Iमुझे होम्योपैथी  दवाओं एवं रस औषधियों के काम करने में एक जैसी समानता जान पड़ती  हैI हाल ही में आई.आई .टी ,के वैज्ञानिकों ने होम्योपैथिक दवाओं के काम करने में नेनो -टेक्नोलजी के सिद्धांत  की पुष्टि की  हैIअंत में आचार्य चरक के इस सन्दर्भ पर गौर करें:
वैदूर्यमुक्तामणिगैरिकानाम मृच्छश्रींगहेमाम्लकोदाकानाम
मधूदकस्यइक्षोरसस्य पानं ....
सन्दर्भ :चरक चिकित्सा :4/79
यह सन्दर्भ इसलिये महत्व पूर्ण नहीं है कि इसे आचार्य चरक ने इंगित किया है,इसका महत्व इसलिये है कि काय-चिकित्सा के इस महान ग्रन्थ में सबसे पहले इस सन्दर्भ में रस औषधियों का वर्णन आया हैI

Friday, June 3, 2011

सत्यम की कहानी

सत्यम एक खूबसूरत सा लड़कापढ़ा लिखा और सभ्य,सदैव माँ बाप के साथ रहा.,अब बड़ा हो गया माता पिता ने  सोचा पडोस के गुप्ताजी का लड़का इन्जिनीरिंग की पढ़ाई की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली गया है ,तो क्यों न हम भी दिल्ली ही भेज दें, बच्चा सीधा-साधा आज्ञाकारी कुछ ना बोला,बोलता भी कैसे ! किसी ने पूछा कहाँ उसे बनना क्या है ?चल पडा पिताजी के साथ दिल्ली ,पहली बार घर से निकला था कुछ सहमा-सहमा था, दिल्ली में एक इंजीनीरिंग की कोचिंग में दाखिला लिया,साथ में रहने के लिए मोहन भी मिल गया था, जो किसी और कोचिंग में मेडिकल की तैयारी कर रहा था, अब उसे कोचिंग में एक समस्या आ  पडी ,शिक्षक  पढ़ाएं कुछ और वो समझे कुछ ,घर आता तो खाने की समस्या,मोहन के साथ मिलकर बनाना पड़ता, वहां मोहन बनाता तो सत्यम बर्तन धोता,सत्यम बनाता तो मोहन बर्तन धोता,क्योंकि खाने का अच्छा होटल जो पास में ना था Iगुप्ताजी का बेटा भी पास के ही एक घर में आराम से पेइंग गेस्ट के रूप मे रहता था I एक दिन सत्यम की तबियत ठीक ना थी और मोहन भी कहीं रिश्तेदार के यहाँ गया था ,अब सत्यम क्या करे ?भूखा ही सो पडा ! थोड़े ही दिनों में कोचिंग में टर्म परीक्षाओं का आयोजन होने वाला था,सत्यम ने भी बड़े मेहनत से तेयारी कर परीक्षा दी, पर अगले दिन अंक सिफर बड़ा परेशान ये क्या हुआ ! अरे सिफर क्यों नहीं आता ,परीक्षा में प्रश्न जो समझ में नहीं आ रहे थे, अब करता क्या कोचिंग में पूरे पैसे भी भर  दिए थे ,धीरे धीरे मुख्य परीक्षा का समय निकट आने लगा,दिल की धड़कन बढ़ने लगी ! क्या होगा ? उसने अंतिम वक़्त पर इम्तिहान छोड़ने का फैसला लिया ,पर किसी को बताया नहीं ,तभी खबर आयी माँ की तबियत खराब है, चले आओ  वह सीधा दिल्ली से चल पडा अपने घर को,रास्ते में उसे रोहन मिला जो किसी कंपनी में प्रोजेक्ट मेनेजर था,उसने सत्यम से पूछा की वो कहाँ से और क्यों जा रहा है,बातें हुई धीरे- धीरे घनिष्टता बढ़ती गयी और सत्यम ने अपनी आप बीती सुनाई ,रोहन ने उसे समझाया की दोस्त काम वो करो जो दिल को भाये,तुम घर जाओ माँ के पास और उसकी तबियत ठीक होने के बाद उसे बताना की माँ में इंजीनीयर नहीं बन सकता मैं छोटी- मोटी नौकरी के काबिल हूँ ,मुझे छोड़ दो मैं अपना रास्ता खुद तलाश लूंगा,पिताजी नाराज गुप्ताजी का लड़का तो इंजिनीयर बन ही जाएगा और यह लड़का तो गया काम से !एक दिन  सत्यम ने  माँ की आलमारी से कुछ पैसे निकाले और चल पडा अपनी मंजिल तलाशने I रेलवे स्टेशन पास में ही था सामान्य श्रेणी का टिकट लिया और बैठ गया मुंबई वाली ट्रेन में !अगले सुबह मुंबई पहुंचा तो बस हाथ में पता था रोहन का जो उसे पहले ट्रेन में ही मिला था,दादर स्टेशन पर ट्रेन अगले दिन सुबह पहुँची,तो रोहन के पते की ओर चल पडा ,बड़ी मुश्किल से रोहन का पता तो मिला पर रोहन तो वहां से अहमदाबाद जा चुका था! अब सत्यम क्या करता पैसे भी कम ही थे, पास के ही एक होटल में वेटर का काम करने लगा I इधर माँ पिताजी परेशान सत्यम कहाँ गया ?दिल्ली भी फ़ोन लगाया पर कुछ पता न चल पाया.Iकुछ दिनों के बाद सत्यम ने पिताजी को फ़ोन किया की मैं ठीक हूँ और अपनी मंजिल तलाश रहा हूँ I.पिताजी ने कहा बेटा तू घर आजा तुझे इंजिनीयर नहीं बनना है तो मत बन लेकिन घर आ जा ..सत्यम ने कहा पिताजी आप मेरी चिंता ना करो में ठीक हूँ और जल्द आउंगाI पास में ही एक मार्शल आर्ट केंद्र था जहां लोग काम के बाद फुर्सत के क्षणों में मनोरंजन के लिए जाया करते थे, सत्यम ने भी कुछ पैसे बचा कर वहां प्रवेश ले लिया ,एक - दो दिन बाद ही केंद्र के  मास्टर ट्रेनर ने उसकी फुर्ती देखते हुए उसे इसे अपना लक्ष्य बनानेको कहा Iकुछ दिनों बाद सत्यम उस इलाके का जाना -माना मार्शल आर्ट एक्सपर्ट बन गया I.अब उसने होटल की नौकरी छोड़ दी और खुद मास्टर ट्रेनर बन गया Iपिताजी-माताजी से बीच -बीच में संपर्क होता था ,पर उसने अपने बारे में कुछ ख़ास उन्हें नहीं बताया Iआस पास के लोग पूछते खासकर गुप्ताजी जिनका लड़का इंजिनीयर की तैयारी करते -करते अपने पिताजी की परचून की दुकान सभालने लगा थाIअब क्या जवाब देते उन्हें खुद जो पता नहीं था !थोड़े दिन बाद सत्यम घर आया,माँ-पिताजी उसे पहचान ही नहीं पाए क्योंकि उसका शरीर बदल चुका था,उसने खुद के सिडनी स्थित किसी हेल्थ सेंटर में मास्टर ट्रेनर बने की खबर जो सुनाई ,पिताजी खुश, माँ भी खुश सत्यम ने खुद की मंजिल जो पा ली थी !

आयुर्वेद एवं पर्यावरण रक्षा का सन्देश


भारत की हिन्दू धर्मं और संस्कृति वर्षों से प्राणी मात्र के कल्याण एवं पर्यावरण रक्षा की प्रेरणा देती रही  हैI प्राचीन काल से ही पर्यावरण  रक्षा का  संकल्प वेदों में मिलता रहा Iहमारे पूर्वजों ने वृक्षों के महत्व को समझते हुए उन्हें धर्मं से जोड़ दिया,आयुर्वेद इसका अनूठा उदाहरण है,जहाँ केवल मानव मात्र की चिकित्सा ही नहीं जानवरों, पशु पक्षियों की चिकित्सा का  वर्णन भी मिलता हैIआयुर्वेद का जनक अथर्व- वेद   भी ऐसी ही रचनाओं से भरा पडा हैIभौतिकता की  अंधी दौड़ में शामिल मानव के लिए "पुरुष वृक्ष " की  संज्ञा प्राप्त पीपल एवं "अश्व्थमणि  " की उपमा से संबोधित खदिर संभवतः पर्यावरण एवं औषधीय पौधों के सरंक्षण की चेतना जगाने का काम करेगा !.
अथर्ववेद के सूक्त- ६ में पीपल को अत्यंत वीर्य वाला बताया गया है तथा इसे "पुरुष वृक्ष्य " की संज्ञा दी गयी हैIऐसे ही खदिर वृक्ष के संयोग मात्र से बनी "अश्व्थमणि " शब्द  का प्रयोग खदिर की महिमा का बखान करता है:
दोनों ही वृक्षों को एक साथ परस्पर सम्बंधित कर व्याधियों को दूर करने का अतिसुन्दर प्रसंग निम्नवत है......
हे खदिरोत्पन्न,पीपल  से बनी मणि ! तेरा वृत्रनाशक इन्द्रदेव और वरुणदेव (ज़ल एवं वायु के देवता ) ,तू रिपुओं (व्याधियों ) को पूर्णतया पतन कर !
हे,पीपल ! तुम मणि का उपादान (विकल्प) रूप हो !तुम जैसे खदिर की त्वचा को भेद कर रचित हुए हो ,उसे प्रकार हमारे रिपुओं (व्याधियों ) को क्षेद डालो !
जैसे पीपल अन्य वृक्षों को दबाता हुआ ,वृषभ (बैल ) के तुल्य बढ़ोत्तरी को प्राप्त होता है ,वैसे ही तेरी विकार रूपी मणि को धारण करने वाले हम रिपुओं को समाप्त करने में प्रवृद्ध हों!
हे पीपल !पाप देवी नैऋति मेरे रिपुओं को किसी  भी तरह खुल न सकने वाले पाशों में जकड ले 
हे पीपल जैसे तुम वनस्पतियों वृक्षों पर चदकर उनको नीचा करते जाते हो ,वैसे ही मेरे रिपुओं का सिर कुचलते हुए उनको बहिष्कृत कर  पतन को ग्रहण कराओ !
जिन किनारे के वृक्षों से नौकाएं बाँधी  जाते हैं ,उनसे खुलने पर नौकाएं नदी के प्रवाह में नीचे की तरफ खेई जाते हैं ,वैसे ही रिपु मेरे प्रवाह में रहे ,पार न लग पाएं क्योंको खदिर से रचित हुए पीपल के प्रवाह में ग्रस्त रिपु फिर नहीं लौट सकते !
मैं रिपुओं का उच्चाटन करता हूँ और रिपु का ध्वंस करने के साधन मंत्राभिमंत्रित पिप्पल की साख से उसका नाश करता हूँ !