Monday, November 28, 2011

बाप रे बाप इतनी बीमारियों की दुश्मन है ये लौकी!


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बारे में एक एडवाइज़री जारी की है जिसके मुताबिक़, लौकी का जूस पीने से पहले इसे चख लें। अगर लौकी का जूस कड़वा लगे तो इसे न पिएं। लौकी के जूस के बारे में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने एक जांच की थी। इसके आधार पर यह जारी किया गया है। यह मुद्दा काफी गर्मा गया है। बाबा रामदेव ने कहा है कि स्वस्थ लौकी का जूस पीने में कोई परेशानी नहीं है।
हमारे देश मे कुछ सब्जियां लोग बड़े ही चाव से खाते और खिलाते हैं ,अर्थात खुद तो फायदे लेते ही हैं ,औरों के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखते हैं। अगर आए कोई मेहमान आपके घर में, तो आप इसकी सब्जी बनाना न भूलें, बड़ा सरल नाम है ,लौकी। अंग्रेजी में बाटल गार्ड के नाम से प्रचलित इसके बारे में कहा जाता है, कि मनुष्य द्वारा सबसे पहले उगाई गयी सब्जी लौकी ही थी।
प्रोटीन,फाइबर ,मिनरल,कार्बोहाइड्रेट से भरपूर इसके औषधीय गुणों का बखान हम आपको सरलता से बतलाते हैं -
-इसे उबाल कर कम मसालों के साथ सब्जी बनाकर खाने पर यह मूत्रल (डायूरेटीक), तनावमुक्त करनेवाली (सेडेटिव) और पित्त को बाहर निकालनेवाली औषधि है।
-अगर इसका जूस निकालकर नींबू के रस में मिलाकर एक गिलास की मात्रा में सुबह सुबह पीने से यह प्राकृतिक एल्कलाएजर का काम करता है ,और कैसी भी पेशाब की जलन चंद पलों में ठीक हो जाती है। -अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलकर पिला दिया जाय तो यह प्राकृतिक जीवन रक्षक घोल बन जाता है।
-लौकी के रस को सीसम के तेल के साथ मिलाकर तलवों पर हल्की मालिश सुखपूर्वक नींद लाती है। -लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है। -अगर आप एसिडीटी,पेट क़ी बीमारियों एवं अल्सर से हों परेशान, तो न घबराएं बस लौकी का रस है इसका समाधान। - केवल पर्याप्त मात्रा में लौकी क़ी सब्जी का सेवन पुराने से पुराने कब्ज को भी दूर कर देता है। तो ऐसी लौकी ,जिसके औषधीय प्रयोग के बाद भी संगीत प्रेमियों द्वारा वाद्ययंत्र के रूप में और साधुओं द्वारा कमंडल के रूप में किया जानेवाला प्रयोग ,इसकी महत्ता का एहसास दिलाते है। तो लौकी इस नाम क़ी सब्जी को इसके नाम से हल्का न समझें, इसके गुण बड़े भारी हैं ,लेकिन शरीर पर प्रभाव बड़ा ही हल्का और सुखदाई है।इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-assumed-all-the-diseases-specific-drug-muleti-2513902.html

वैज्ञानिकों ने भी मान लिया मुलेठी है इन सारी बीमारियों की अचूक दवा

आयुर्वेद जिसके गुणों का बखान सदियों से करता आ रहा है ,अब वैज्ञानिक भी उसके गुणों के मुरीद हो चुकें हैं ,जानना चाहेंगे  आप उसका नाम ,जी हां मुलेठी है उसका नाम। अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी आफ साउथ केलीफोर्निया के वैज्ञानिक उन्ही  बातों को दुहरा रहे हैं, जिसके गुणों को आयुर्वेदिक ग्रथों में कई बार विभिन्न रोगों के सन्दर्भ में बताया गया है। 

वैज्ञानिकों ने मुलेठी जिसे अंगरेजी में लीकोरिस के नाम से जाना जाता है,इसके एक्सट्रेक्ट की गोली बनाकर उन महिलाओं में प्रयोग कराया ,जिन्हें माहवारी बंद होने के आखिरी दिनों में सूर्ख चेहरे,रात में पसीना आना,नींद न आना जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा था। वैज्ञानिकों ने मुलेठी की  जड़ का प्रयोग इस शोध में किया है, वैज्ञानिकों का कहना है, स्रि यह महिलाओं की क्वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर करने की अचूक दवा है। 
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ केलीफोर्निया के वैज्ञानिकों ने मुलेठी के एक्सट्रेक्ट जिसे 'लाईकोजन 'नाम दिया गया है ,इसे 51 महिलाओं में प्रयोग कराया,वैज्ञानिकों का ऐसा मानाना है ,कि मुलेठी में स्थित रसायन महिलाओं के हारमोन 'एस्ट्रोजन ' से मिलता जुलता है। इस शोध के परिणामों को अमेरीकन सोसाईटी फार रीप्रोडकटीव मेडीसीन के सालाना कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया गया है। तो हों जाए तैयार, अब वो दिन दूर नहीं कि   जिस मुलेठी को आयुर्वेद में दमा,खांसी,हाईपरएसिडीटी,गले क़ी खरास ,अल्सर ,पेशाब में जलन आदि अनेकों बीमारियों को ठीक करने क़ी दवा कहा गया है, उसी की गोलीयां बाजार में महिलाओं के पोस्टमेनोपोजल लक्षणों को दूर करने के लिए आधुनिक गोलियों के रूप में मिलने लगें।इसी आर्टिकल को पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिओक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-assumed-all-the-diseases-specific-drug-muleti-2513902.html

शादीशुदा महिलाओं के लिए ये बात ध्यान रखना बहुत जरूरी है क्योंकि

सेक्स जीवित प्राणियों की स्वाभाविक इच्छा का ही एक नाम है। हमारे समाज में इसे बड़ी ही गोपनीयता का रूप प्रदान किया गया है , जिस कारण जननांगों से सम्बंधित कई भ्रांतियों से विवाहित युगल भी जूझते हैं। कई बार शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बाद भी युगल  यौन संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं। जननांगों में यौन उत्कर्ष के दौरान स्वाभाविक रूप से रक्त का स्राव तीव्र हो जाता है ,तथा चरमोत्कर्ष (ओर्गाज्म ) के दौरान यह अपनी पूर्णता पर होता है। ईश्वर ने मानव शरीर को कुछ ऐसे हिस्सों से युक्त किया है, जिसकी  चरमोत्कर्ष (ओर्गाज्म) की ओर ले जाने में महती भूमिका होती है, ऐसा ही एक स्पोट जो महिलाओं की योनि में पाया जाता है नाम है - जी-स्पोट -। योनि क़ी दिवाल के सामने वाले हिस्से में मटर के दाने के समान इस स्पोट को महिलाओं में चरमोत्कर्ष का एक विन्दु माना गया है।
आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न स्थित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यूरोलोजिस्ट डॉ. हेलेन .ओ. कोंनेल  ने इस पर गहन अध्ययन किया है, उनका  कहना है , कि महिलाओं के योनि की आंतरिक दिवार ही वेजाइनल-ओर्गास्म को पैदा करती है, यह योनि के  किसी खास हिस्से में अधिक हो सकता है, जिसे 'जी स्पोटÓ  नाम दिया जाता है।
सेक्सोलोजिस्ट डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है ,कि अक्सर महिलाएं इस जी-स्पोट के बारे में चिंतित रहती हैं और यदि उन्हें यह इसका एहसास खुद में नहीं  हुआ , तो  स्वयं  को यौन शिथिल मानने लग जाती हैं, जबकि ऐसा नहीं है,  डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है : यह जरूरी  नहीं, कि हर महिला में यह योनि के किसी खास हिस्से में ही हो ,यह अलग-अलग महिला में योनि की दिवार के अलग हिस्से में हो सकता है, अगर महिला केवल अपना ध्यान जी-स्पोट पर ही केन्द्रित करने लग जाती है ,तो वह सेक्स के अन्य पहलूओं पर ध्यान ही नहीं दे पाती है ,अत: यह आवश्यक है, कि यौन सम्बन्ध बनाते समय सम्पूर्णता की और ध्यान केन्द्रित किया जाए न की  किसी स्पोट विशेष  पर। इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-married-women-it-is-very-important-to-keep-in-mind-2527006.html

दर्द से परेशान हैं तो पैन किलर नहीं टमाटर खाइए क्योंकि...

यूं तो हर फल एवं सब्जियों में कुछ न कुछ औषधीय गुण विद्यमान होते हैं ,लेकिन वैज्ञानिकों की माने तो, अब टमाटर दर्द निवारक दवा एस्पिरीन का विकल्प हो सकता है। एस्पिरिन को दर्द निवारक के साथ-साथ खून पतला करने वाली दवा के रूप में जाना जाता है,अब ऐसे ही कुछ गुणों को टमाटर में भी देखा गया है। 
टमाटर के बीजों से बनाये गए प्राकृतिक जेल शरीर में खून के प्रवाह को बढाने वाले तथा रक्त के थक्कों के बनने से रोकने वाले  पाए  गए  हैं ,यह बात हम नहीं, रोवेट  संस्थान के प्रोफे सर असीम दत्त रॉय के शोध के परिणाम कह रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के स्वास्थ्य अधिकारी तो पहले ही इस बात को मान चुके हैं, यह बात उन करोड़ों लोगों के लिए एक सुखद एहसास है ,जो अपने खून को पतला रखने के लिए एस्पिरिन का सेवन कर अल्सर जैसे दुष्प्रभाव को झेलने को मजबूर  हैं। 
प्रो असीम दत्त रॉय के अनुसार आज तक इस जेल के  कोई भी साईड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं ,इस अध्ययन के अनुसार टमाटर के बीजों से बने  जेल के  सेवन के तीन घंटे के अन्दर ही यह रक्त के प्रवाह  को बढ़ा देता है ,तथा इसका अपना प्रभाव 18 घंटे तक बना रहता है, तो है न कमाल पिएं। टमाटर का सूप या टमाटर के बीजों का जेल और कर लें खुद को एस्पिरिन लेने की टेंशन से फ्री।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-do-not-eat-tomatoes-because-of-the-pain-so-upset-2527400.html

साबित हो चुका है कि कमर दर्द दूर करने का ये है रामबाण उपाय

यूं तो शारीरिक सक्रियता को सबसे अच्छी चिकित्सा माना गया है, और योग तो इस मामले में एक कदम आगे है। आसनों के अभ्यास से सक्रियता के अलावा कुछ विशेष परेशानियों में  भी लाभ देखा गया है, ऐसी ही एक परेशानी है, कमर का  दर्द, जिससे आम तौर पर हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है।
इसे आधुनिक भाषा में लोबैकपेन या लम्बेगो कहते हैं अभी हाल में ही अमेरिका के सिएटल के ग्रुप रिसर्च इंस्टीच्युट के शोधकर्ताओं के अध्ययन ,जिसे आर्चिव आफ इन्टरनल मेडीसिन में प्रकाशित किया गया है, के अनुसार योग-अभ्यास का प्रभाव कमर के दर्द से निजात दिलाने में अब प्रमाणित हो गया है ,और यह भी सिद्ध हो गया है, कि आसनों का सीधा सम्बन्ध दर्द को दूर करने से है। पिछले अध्ययनों के अनुसार आसनों एवं ब्रीदिंग-एक्सरसाइज मानसिक तनाव  को मुक्त कर दर्द को कुछ हद तक कम करने में सफल होते  हैं,  इसे  इस नई शोध के परिणाम ने पूरी  तरह से बदल दिया है।
इस शोध के अनुसार योग अभ्यास से कमर दर्द में सीधे  लाभ मिलता है, जो केवल मानसिक थकान कम करने से ही सम्बंधित नहीं है।इस अध्ययन में 228 कमर दर्द से पीडि़त रोगियों का चयन किया गया,जिनमें किसी न किसी रूप में स्पाइनल डिस्क से सम्बंधित समस्या थी, इन्हें तीन अलग-अलग समूहों में बांटकर दो प्रकार  की कक्षाओं में सम्मिलित किया गया , एक कक्षा में रोगियों  को स्वयं सेल्फकेयर द्वारा किताबों से पढ़कर कुछ कमर दर्द से निजात पाने क़ी एक्सरसाइज का अभ्यास कराया गया ,तथा दूसरे समूह को औपचारिक रूप से कमर दर्द में लाभकारी योग के आसनों का अभ्यास कराया गया। 
सेल्फकेयर समूह में लाभ का प्रतिशत 20  था ,जबकि औपचारिक रूप से योग आसनों के अभ्यास करने वाले समूह में यह प्रतिशत कहीं अधिक 80 था। ऐसा देखा गया ,कि सेल्फ केयर  समूह क़ी अपेक्षा योग कक्षा में शामिल  दुगने कमर दर्द से पीडि़त रोगियों ने अपनी दर्द की गोलियों को लेना छोड़ दिया।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-be-paid-to-the-specific-measures-to-remove-2528481.html

कोलेस्ट्रोल और चर्बी का दुश्मन है ये फल


आपने हमारे ऋषि-मुनियों को कन्द,मूल और फल खाकर अपनी आयु को हजारों साल तक जीने की कहानी सुनी और पढी होगी,आपको लगता होगा कि ,यह एक कपोल कल्पित कल्पना मात्र होगी,भला कोई इतनी लम्बी आयु कैसे जी सकता होगा। लेकिन यह सत्य है, कि शुद्ध पर्यावरण एवं शांतिमय वातावरण तथा सयंमित आहार-विहार एवं व्यवहार आपको आज भी लम्बी आयु प्रदान कर सकता है।
शुद्ध पर्यावरण एवं शांतिमय वातावरण की कल्पना आज के परिपेक्ष में बेमानी है, इसके लिए निरंतर सतत प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन हाँ ,यदि बिना रासायनिक तत्वों के प्रयोग के प्राप्त फलों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी हो सकता है, यह बात तरबूज के सम्बन्ध में खरी उतरती है।
केंट्युक़ी  विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के परिणामों को अगर देखा जाय तो तरबूज का रस, वजन कम करने के साथ-साथ,शरीर की अतिरिक्त चर्बी को भी कम करता है। इसके लगातार प्रयोग से कोलेस्ट्रोल एवं लो- डेंसिटीलिपोप्रोटीन का स्तर कम होने लगता है, तथा हार्ट की धमनियों की कठिनता के कारण होने वाला अवरोध जिसे - एथेरोस्केलोरोसिस- कहा जाता है  भी कम  हो जाता है। भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ .शीबू साह का कहना है :तरबूज के रस के कई स्वास्थ्यवर्धक लाभ प्रायोगिक स्तर पर चूहों में देखे गए हैं, बस अब इसके बायोएक्टिव कम्पाउंड  को मानवीय फायदे के लिए निकालकर प्रयोग कराने की आवश्यकता है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-cholesterol-and-fat-is-the-enemy-of-the-fruit-2532272.html
 

इस एक फंडे से पाइए जोड़ो व घुटनों के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए

यदि आप जोड़ों के दर्द आस्टीयो-आर्थराईटीस से हैं, परेशान तो न घबराएं विशेषज्ञों की मानें तो आहार में कुछ परिवर्तन के साथ नियमित व्यायाम इस प्रकार के जोड़ों के दर्द को 50 प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है। वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी के स्टीफन पी.मेसीयर  के एक शोध में यह जानकारी दी गयी है, जिसे हाल ही में अमेरिकन कालेज आफ रयूमेटोलोजी के सालाना वैज्ञानिक सत्र में प्रस्तुत किया गया है। 
आस्टीयो-आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है ,तथा वजन में बढ़ोत्तरी ,उम्र एवं चोट ,जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं। ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है। यह अध्धयन 154 ओवरवेट  लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो-आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो-आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/get-the-link-and-knees-to-relieve-the-pain-forever-2551644.html

इस चमत्कारी पावडर में छुपा है कई बीमारियों का इलाज

कई रोगों में काम आने वाली पिप्पली के गुणों को आयुर्वेद के ग्रंथों में विस्तार से बताया गया हैं।आइये हम आपके लिए इनमें से कुछ खास गुण लेकर आयें हैं , जो इसके औषधीय महत्व को प्रकाशित करता है। अंगरेजी में इसे लांग पीपर के नाम से जाना जाता है।

-यह सांस नालियों में जमे म्यूकस यानि कफ  को निकालने में मददगार होता है।

-यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने वाली औषधी है तथा हमारी आंत्र गुहा को भी ठीक रखती है ,अर्थात यह आँतों की पेरिस्टालटीक गति को भी नियंत्रित रखने में मददगार होती है।

-पिप्पली हमारी पाचन क्षमता को भी ठीक करने में मददगार होती है।

-यह त्वचा से सम्बंधित विकारों के लिए भी अत्यन्य फायदेमंद औषधी है , बस किसी  भी प्रकार के कटे-फटे घाव में लगायें इसका तेल और देखें इसके लाभ।

-यह शरीर के किसे भी हिस्से में हो रहे वेदना का शमन करने वाली औषधी है।

-यह मूत्र वह संस्थान की विकृतियों में भी अपना अच्छा प्रभाव दर्शाती है।

- एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दोगुने शहद में मिलाकर चाटने से श्वास कास, हिक्का, ज्वर, स्वरभंग व प्लीहा रोग में लाभ होता है। यह पिप्पली कफरोग में बहुत लाभकारी है।

-यह एस्थमा,ब्रोंकाईटीस एवं पुरानी खांसी को दूर करने की रामबाण औषधी है।
इसके अलावा मलेरिया,डायरिया,पाईल्स,पेट दर्द ,भूख न लगना, हैजा, गैस बनना,नींद न आना आदि अनेकों रोगों में इसके प्रभाव गुणकारी हैं।
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जानिए, क्यों भूल जाते हैं हम छोटी छोटी बातों को?

अक्सर ऐसा होता है, कि हमने अभी किसी काम को करना सोचा और किसी और काम में उलझ गए और भूल गए। जैसे किसी चीज को कहीं रखकर भूल जाना। फिर ढंढूते रहना या किसी का नाम अचानक याद होने के बावजूद भी जुबान पर न आना। 
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। 
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html

एड्स पर रिसर्च के आए ऐसे परिणाम आप जानकर भौचक्के रह जाएंगे!

दुनिया में एच .आई .वी वाइरस के बढ़ते संक्रमणों के प्रति विकसित एवं विकासशील देशों में चिंता व्याप्त है। अमेरिका ने तो अपने यहां के सभी सेक्सुअली एक्टिव युवाओं का ग्रुप एच .आई.वी.स्क्रीनिंग कराने का फैसला किया है। इसके तहत 16 वर्ष से ऊपर के सभी युवाओं का एच .आई.वी. स्क्रीनिंग कराया जाएगा। एक करोड़ से अधिक अमेरीकी  एच. आई. वी. संक्रमित हो चुके हैं, तथा इनमे 55,000 से अधिक 13 से 24 वर्ष की आयु वर्ग के है। 
जर्नल आफ पीडीयाट्रिक्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 48 प्रतिशत युवाओं को तो यह पता ही नहीं है, कि वे एच. आई .वी. से संक्रमित हो चुके हैं , और यही इस रोग का सबसे खतरनाक पहलू है , कि जिन्हें इसका पता नहीं है, वे तेजी से इसे फैला रहे हैं। आपको मालुम होगा कि एच.आई.वी .वाइरस का यदि समय पर उपचार न किया जाय तो यह एड्स के रूप  में सामने आता  है। आधुनिक दवाओं का प्रयोग एच .आई .वी .के संक्रमण को एड्स के रूप में आने के समय को कई वर्षों तक लम्बा कर सकता है। 
अमेरिका में  एच .आई.वी .के संक्रमण की  जांच का दायरा वेश्याओं,होमोसेक्सुअल एवं ड्रग्स का प्रयोग करने वालों तक ही था, लेकिन वर्ष 2006 के बाद यूएस.डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रीवेंसन ने इस दायरे को बढ़ाकर हर 13 साल की आयु से ऊपर के व्यक्ति का एच.आई.वी. स्क्रीनिंग कराये जाना सुनिश्चित किया, चाहे वो रिस्क ग्रुप में हो या न हो। यह  बात महत्वपूर्ण है, कि   अमेरिकी टीनएजर्स  में से 60 प्रतिशत ने स्वयं को  सेक्सुअली  एक्टिव  माना है ,अत: इस स्क्रीनिंग से छुपे हुए संक्रमण को सामने लाने में मदद मिलेगी ,जो इस रोग के फैलने से रोकने में मददगार होगा। अमेरिका के इस मास स्क्रीनिंग के फैसले को क्या बदले परिवेश में भारत में लागू नहीं किया जाना चाहिए? इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-america-came-to-know-the-results-you-will-be-stunned-2534397.html

ये जानने के बाद आप कहेंगे-शराब ....ना बाबा ना

यूं तो कोई भी नशा हमारे स्वास्थ्य एवं समाज के लिए नुकसानदायक होता है। आयुर्वेद भी जीवन को व्यसन मुक्त करने की सलाह देता है। हाँ यह बात भी एक सत्य है, कि प्राचीन काल में मद्य का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता था। यह कुछ रोगों की चिकित्सा से लेकर बेहोशी लाकर सर्जरी करने तक सीमित था। यही कारण है, कि कुछ लोगों द्वारा अधिक पीने के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान भी आचार्य चरक ने मदात्यय नामक अध्याय में वर्णित किया है। वैसे भी एल्कोहल एक टोक्सिक रसायन है, जिसका प्रयोग कोशिकाओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं को मारने में किया जाता है ,यही कारण है,कि़ इसे स्टरलाइजेसन हेतु प्रयोग में लाया जाता है। तो आप खुद सोचिये, कि़ यह आपके शरीर के  लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है ? आजकल लोगों में  शराब एक फैशन एवं स्टेटस सिम्बल का रूप लेता जा रहा है। जो नहीं पीता उसे सोसाएटी में दब्बू मानने का चलन व्याप्त है। क्या महिलाएं क्या पुरुष आप इन सबको मदिरालय में जाम गटकते देख सकते हैं ,और यह भी कहते सुन सकते हैं - थोड़ी-थोड़ी पीया करो। हाँ, यह भी एक सत्य है , कि कोरोनरी हार्टडीजीज,टायप-2 डाईबिटीज से सम्बंधित कुछ अध्ययन थोड़ी मात्रा में एल्कोहल लेने के पक्ष में जाते हैं।
लेकिन आपको हम कुछ सत्य से रु-ब रु कराते हैं, जिसे  जानने के बाद आप कहेंगे -शराब ...ना  बाबा ना  -अमेरिकन कालेज आफ गेस्ट्रोएंटेरोलोजी के अध्ययन के अनुसार थोड़ी मात्रा में शराब का सेवन भी आपकी आँतों के बेक्टीरियल ग्रोथ को बढ़ा सकता है I इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-knowing-this-you-say---not-to-visit-the-wine-2536895.html

-हारवर्ड मेडिकल स्कूल में कराये गए एक अध्ययन जिसे जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएसन में प्रकाशित किया गया है  इसके अनुसार एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को 51 प्रतिशत से अधिक बढ़ा देती है।
-गर्भावस्था के दौरान शराब पीना भी आनेवाले बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है।
-यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास, एम..ड़ी.एंडरसन कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों की मानें तो थोड़ी मात्रा में भी शराब का सेवन लीवर एवं ओरल कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है।
-आपको शराब पीते देख आपके बच्चे भे इसका अनुकरण करने लग जाते हैं और ऑस्ट्रेलिया में हुआ एक अध्ययन भी इसकी पुष्टि करता है, कि़ कम उम्र से ही थोड़ी मात्रा में  शराब का प्रयोग बाद में शराब की आदत और रिस्की सेक्सुअल व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता है। 
-थोड़ी मात्रा में एल्कोहल का सेवन भी आपके शारीरिक कोर्डिनेशन,प्रतिक्रिया एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, अत: किसी मशीन को चलाते समय या ड्राईविंग के समय एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी आपके जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है।
-यदि आपको लिवर से सम्बंधित कोई समस्या है, या खून में चर्बी की मात्रा अधिक है ,तो थोड़ी मात्रा में भी शराब आपके लिए जानलेवा हो सकती है।

इमोशंस नहीं होते कंट्रोल तो बस अपनाएं ये एक फंडा


महर्षि पतंजलि द्वारा प्रणित योग का लोहा आज पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मान रहे हैं। विभिन्न क्लिनिकल रिसर्च इस बात को साबित कर रहे हैं, कि योग की क्रियाओं के चमत्कारिक लाभ हैं। कुछ वर्षों पूर्व इसे मात्र स्वस्थ रहने के साधन के रूप में जाना जाता था ,लेकिन अब इसे जीवनशैली से सम्बंधित बीमारियों का उपचार भी किया जा रहा है, जो वैज्ञानिकों के नजरिये में आये बदलाव का सूचक है। यह बदलाव हमारी प्राचीन विधाओं के वैज्ञानिक होने का संकेत मात्र है, जिसे अब आधुनिक शोधवेत्ता माने को मजबूर हुए हैं।

हारवर्ड युनिवर्सिटी एवं जुस्ताक लेबिग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों क़ी मानें तो योग में ध्यान (मेडीटेशन ) का अभ्यास, उच्च रक्तचाप ,मानसिक विकृतीयों एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने में प्रभावी  चिकित्सा है।

वैज्ञानिकों का कहना है , कि ध्यान (मेडीटेशन )का  अभ्यास  चार स्तरों पर कार्य करता है जो शरीर की चिकित्सा के रूप में प्रभावी है।

 1. सक्रियता को नियंत्रित करना।

 2. शरीर को जागरूक करना।

 3. भावनाओं को नियंत्रित करना।

 4. स्वयं के एहसास को जागृत करना ,ये सभी शारीरिक एवं मानसिक तनाव को कम करने के साधन हैं। हाँ यह बात नियमित अभ्यास एवं प्रशिक्षण के द्वारा ,हमारे भौतिक अनुभवों ,व्यवहार एवं मष्तिष्क की कार्यक्षमता को अवश्य ही प्रभावित करती है। यह अध्ययन जर्नल प्रेस्पेकटिव आफ  साइकोलोजिकल साइंस के नूतन संस्करण में प्रकाशित हुआ है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-emotions-are-not-control-just-taking-it-2539136.html
 

मोटे लोगों के लिए ये खबर नहीं खुशखबरी है जानने के लिए क्लिक करें

आपने कई लोगों खानदानी रूप से मोटापे का शिकार होते देखा होगा, कई परिवारों में एक निश्चित उम्र के बाद मोटापा शरीर पर अपना प्रभाव दिखाने लगता है। नए शोधों के समूह  के  परिणाम  ऐसे लोगों में आशा की एक नई किरण हो सकते  हैं। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक समूह ने यह पाया है , कि मोटापे के लिए जिम्मेदार जीन जिसे - एफ .टी. ओ. जीन- कहा जाता है, शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों में, निष्क्रिय लोगों की अपेक्षा 27 प्रतिशत कम प्रभावी होता है।
दो लाख अठारह हजार लोगों में कराये गए अध्ययनों , जिनमे 45 अलग-अलग शोध सम्मिलित हैं, इनके  परिणाम इस बात क ी पुष्टि करते हैं। इन अध्ययनों के अनुसार मोटापे से निजात पाने के लिए केवल मेराथान दौड़ ,जिम में घंटों पसीना बहाना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आप केवल प्रात: काल अपने  पेट्स को घुमाकर ,साइक्लिंग  कर या सीढिय़ों में चढ़कर ,लगभग  दिन में एक घंटे (सप्ताह में पांच दिन ) एक्टिव रहकर  ही अपने मोटापे को नियंत्रित कर सकते हैं। 
ब्रिटेन में केम्ब्रिज स्थित  एडीनब्रुक हॉस्पिटल में चल रहे जेनेटिक एटीयोलोजी आफ ओबेसीटी प्रोग्राम के टीम लीडर रुथ लॉस के अनुसार ये परिणाम आनुवंशिक रूप से मोटापे से पीडि़त लोगों को हेल्दी लाइफ स्टाइल ( नियमित सक्रिय दिनचर्या ) अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। इस अध्ययन के परिणाम आनलाइन जर्नल मेडिसीन में प्रकाशित हुए  हैं। आयुर्वेद भी सक्रिय दिनचर्या को अपनाने पर बल देता है, तथा योग के आसनों का अभ्यास  तो क्या आनुवंशिक, क्या सामान्य ,हर तरह के मोटापे एवं वजन को नियंत्रित करने में प्रभावी है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक  करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-good-news-for-obese-people-to-learn-it-click-2541353.html

बात अजीब है पर सच है, डॉक्टर का काम करते हैं ये ड्रायफ्रूटस

हमारे मन में अक्सर पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने को लेकर कुछ भ्रांतियां रहती हैं,जैसे यह रक्त में कोलेस्ट्रोल ,ट्राईग्लीस्राइड आदि को बढ़ाकर हृदय रोगों की  संभावना को बढ़ा देता होगा,पर ऐसा नहीं है। इन सूखे फलों के कई फायदे हैं, इनका निश्चित मात्रा में सेवन मस्तिष्क के लिए ही नहीं ,अपितु कई रोगों में बचाव का साधन है। हाल में ही शोधकर्ताओं ने पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने वाले मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीडि़त रोगियों, जिनमे हृदय से सम्बंधित रोगों की प्रबल संभावना थी ,इसे  कम होते देखा है।

पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने वालों में सेरेटोनिन नामक रसायन का स्तर बढ़ जाता है, जो तंत्रिका संवेदनाओं का ले जाने का काम करता है ,परिणाम स्वरुप व्यक्ति में भूख मिट जाती  है, एवं एक खुशनुमा एहसास हृदय के लिए फायदेमंद होता है।बस ध्यान रहे, कि पिस्ता बादाम एवं अखरोट  की नियमित मात्रा एक आउंस से अधिक न हो। यह शोधपत्र ए. सी .एस .के जर्नल आफ प्रोटीओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।युनिवर्सिटी ऑफ  बारसिलोना के शोधकर्ताओं का भी मानना है, कि  विश्व में मोटापे से पीडि़त रोगियों का बढऩा, मेटाबोलिक सिंड्रोम  से सीधे सम्बंधित है, जिसमें पेट के पास की चर्बी में बढ़ोत्तरी ,हाई ब्लड -शुगर और हाई ब्लड -प्रेशर मिलना तय है। 
अत: खान-पान में परिवर्तन लाकर, वजन को नियंत्रित कर, शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है ,इनमें नियमित पिस्ता बादाम एवं अखरोट का निश्चित मात्रा में सेवन भी सम्मिलित है। आपको शायद मालूम होगा, ये सूखे फल पोषक तत्वों से भरे पड़े हैं, इनमें अच्छी चर्बी (अनसेचुरेटेड फेटी- एसिड ) एवं एंटी-ओक्सिडेंट (पोलीफेनोल ) पाए जाते हैं ,जो मेटाबोलिक सिंड्रोम से लडऩे में मददगार होते है। तो आज से ही खाना शुरू करें अखरोट ,पिस्ता और बादाम और हृदय रोगों को करें ना ना ....! इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-these-doctors-work-drayfruts-2543392.html

ऐसी बीमारियों को न्यौता दे सकती है आपकी ये एक आदत


मजबूत इच्छाशक्ति बड़े से बड़ा काम करवा सकती है, पर यही इच्छाशक्ति यदि खाने-पीने के मामले में कमजोर हो, तो रोगों को निमंत्रण भी देती है।  यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा के शोधकर्ताओं के अनुसार कमजोर इच्छाशक्ति हमारे खाने पीने के नियमों के पालन करने को प्रभावित करती है। आयुर्वेद में भी खाने-पीने के नियमों के पालन पर बहुत अधिक बल दिया गया है। सात्विक,पथ्य-अपथ्य का ध्यान  रखते हुए ऋतुअनुकूल मितभुक होकर लिया गया भोजन स्वस्थ रहने का साधन है ,जबकि इसके विपरीत होकर लिया गया भोजन रोगों को खुला निमंत्रण देना है।

नाश्ते को हमारे दिनचर्या में महत्वपूर्ण माना गया है, कहा गया है, कि- नाश्ता राजा की तरह भरपेट ,दिन का भोजन राजकुमार की तरह ठीक -ठीक मात्रा में और रात का भोजन भिखारी के तरह थोड़ी मात्रा में होना चाहिए। यूनिवर्सिटी आफ अल्बर्टा के रॉबर्ट फिशर का मानना है , कि हममें से अधिकंाश लोगों को खाने -पीने के इन नियमों का पता होता है, लेकिन एक चीज की कमी हमें इनके पालन करने  से रोकती है  ,वो है 'इच्छाशक्ति'। वैसे भी यह देखा गया है, कि किसी व्यक्ति को यदि किसी खाने की चीज के लिए मना किया जाय, तो यह पाया जाता है ,कि वह तो उसके लिए अत्यंत प्रिय है। ऐसे ही आपने मधुमेह से पीडि़त लोगों को छुप-छुप कर मीठा खाते देखा होगा।
इन अध्ययनों के क्रम से यह बात सामने आयी है ,कि खाने-पीने के इन नियमों के पालन में लोगों का व्यवहार ,शारीरिक संतुष्टि एवं सामाजिक आवश्यकता एक अड़चन रूपी कारक का काम करता है। इस शोध  से यह बात आश्चर्यजनक रूप से सामने आयी, कि मोटे व्यक्ति जिनका बाडी-मास-इंडेक्स अधिक था, को कम बाडी-मास-इंडेक्स वालों की  अपेक्षा खाने -पीने के नियमों की अधिक जानकारी थी। ऐसे लोगों से जब पूछा गया, कि जब आपको पता है, कि इसको खाने से आपका मोटापा बढेगा,फिर आप क्यों इस प्रकार का भोजन लेते है , तो उनका जवाब था 'क्या करें कंट्रोल ही नहीं होता है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-many-diseases-may-be-inviting-you-its-a-habit-2549299.html
 

खाना खाते समय बस इतनी सी बात ध्यान रख लेंगे तो कभी मोटे नहीं होंगे


भागती दौड़ती दुनिया में समय की कमी के कारण हड़बड़ाहट हर क्षेत्र में देखी जा सकती है। किसी को ऑफिस पहुंचने की जल्दी है, तो किसी की ट्रेन या बस पकडऩे की जल्दी,  क्या बच्चे, क्या जवान, बस हड़बड़ाहट ही हड़बड़ाहट, तनाव ही तनाव।
हमारे पूर्वजों की जीवनशैली को देखा जाय,तो उन्हें शायद इस प्रकार की हड़बड़ाहट नहीं थी, तभी तो उनकी औसत उम्र हमसे कहीं अधिक थी। ज्यादा पुरानी बात नहीं है ,आप गुजरे जमाने की ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मों को ही देख लें ,प्रेमियों और प्रेमिकाओं के पास प्यार के तराने गाने के लिए भी फुर्सत के क्षण थे ,पर आज इस क्षेत्र में भी हड़बड़ाहट साफ  देखी जा सकती है।
इन सबका प्रभाव हमारी दिनचर्या पर पड़ता है, चाहे वो खाना हो,या ठीक ढंग से सोना। बड़े बुजुर्गों ने कहा था कि खाना हमेशा तनाव मुक्त होकर धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए, पर आज इसकी भी फुर्सत कहां। लेकिन हमारे बुजुर्गों की बातों को  आज के वैज्ञानिक भी अक्षरश: दुहरा रहे हैं। धीरे-धीरे चबाकर खाने से आपके द्वारा लिए गए भोजन का संतुलित पाचन तो होता ही है, साथ ही वजन कम करने में भी मदद मिलती है। यूनिवॢसटी ऑफ  रोड आईलैंड के शोधकर्ताओं के दो अध्ययन इस बात को प्रमाणित कर रहे हैं।
इस अध्ययन में यह पाया गया है , कि पुरुषों की हड़बडाहट खाने-पीने के मामलों में  महिलाओं की अपेक्षा अधिक होती है, ठीक ऐसे ही मोटे लोगों की हड़बड़ाहट दुबलों की अपेक्षा खाने-पीने में अधिक पायी गयी है। यह भी देखा गया है, कि हम साबुत अनाज की अपेक्षा रीफाईंड अनाज को जल्दी खा लेते  हैं। एसोसियेट प्रोफेसर आफ न्युट्रीसन केथलीन  मीलेंसन  एवं स्नातक छात्रा एमेली पोंटे एवं अमान्डा पोंटे का यह शोध अध्ययन ओरलेंडो में हुए ओबेसीटी सोसाइटी के सालाना कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया गया  है I इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-thats-itll-look-while-eating-fat-will-not-ever-2553767.html

लंबी उम्र का राज छुपा है इस छोटे से फंडे में

चेहरे पर आयी मुस्कराहट किसे अच्छी नहीं लगती मुस्कुराता हुआ हंसमुख चेहरा सुन्दरता में चार चांद लगा देता है, और अब आयी एक नयी शोध तो इसे जवाँ रहने का एक राज बता रही है। जर्मनी के  शोधकर्ताओं की मानें, तो  आपके चेहरे की मुस्कराहट आपको जवान रहने और लम्बी उम्र देने में मददगार होती है। इस शोध के अनुसार मुस्कुराते हुए चेहरे से आप व्यक्ति की उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। इस अध्ययन में काफी सारे पुरुषों एवं स्त्रियों के अलग-अलग छायाचित्रों को लोगों को दिखाया गया और यह पाया गया, कि जो लोग उन चित्रों में मुस्कुरा रहे थे ,उनकी सही उम्र का अनुमान लगा पाना कठिन हो रहा था ,इसके पीछे शोधकर्ताओं ने निम्न तर्क दिये हैं :
-मुस्कुराते हुए चेहरे में दिख रही झुर्रियां,मुस्कुराने के दौरान गालों पर पडऩे वाले डिमपल्स हैं या उम्र का प्रभाव यह  जान पाना  मुश्किल हो जाता है।
-मुस्कुराता हुआ चेहरा,सामान्य चेहरे से तरोताजा दिखता है, यह अध्ययन साइकोलजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।तो आईये खुशी हो या गम बनाएं मुस्कराहट को अपना हमदम।इसी आर्टिकल को पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yogaayurveda-hidden-secret-of-longevity-in-this-small-fnde-2558210.html

नहीं लेनी पड़ेगी ब्लडप्रेशर व कोलेस्ट्रोल के लिए रोज दवाई, अजमाएं ये नुस्खा

अनार के गुणों से तो आप समय-समय पर परिचित होते रहे हैं, लेकिन हाल का एक शोध आपकी इस सुन्दर फल के बारे में नयी सोच को पैदा करेगा इजराएल के वेस्टर्न गेली मेडिकल सेंटर में लीलेक शेमा और उनके साथियों का एक शोध यह सिद्ध कर रहा है , कि गुर्दे (कीडनी ) से सम्बंधित बीमारी से पीडि़त रोगी में अनार का रस अपने एंटी-ओक्सीडेंट गुणों की प्रचुरता के कारण कोलेस्ट्रोल एवं रक्तचाप को कम करने में मदद करता है।
यह अध्ययन 101 डायलीसिस ले रहे रोगियों को अनार का रस साढ़े तीन ओंस की मात्रा में सप्ताह में तीन बार देकर किया गया। एक वर्ष तक लगातार प्रयोग के उपरान्त यह पाया गया, कि 22 प्रतिशत  रोगियों ने प्लेसीबो समूह की अपेक्षा, उच्च रक्तचाप की दवाओं को लेना छोड़ दिया था। इस अध्ययन से यह साबित हुआ है, कि अनार का रस पीने से आपके रक्त के कोलेस्ट्रोल स्तर के साथ रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है तो ,आज से ही शुरू करें पीना, अनार का रस, इसलिए तो सत्य कहा है एक अनार सौ बीमार।इसी आर्टिकल को पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-bloodpressure-and-cholesterol-2560793.html

दिनचर्या में इतना सा सुधार करेंगे तो बचे रहेंगे डाइबिटीज से हमेशा


आज के दौर में मुझे तनाव नहीं है... यह वाक्य शायद ही किसी के हों, क्योंकि तनाव हमारे जीवन को एक अभिन्न पहलू बनता जा रहा है थोड़ा बहुत तनाव जीवन में स्वाभाविक होता है, परन्तु जब यह अपनी पराकाष्ठा को पार कर जाय ,तो मानसिक विकारों के साथ-साथ हृदय सहित डाइबिटीज जैसे रोगों को निमंत्रण देता है। दुनिया में डाइबिटीज जैसे शारीरिक विकारों की उत्पत्ति के पीछे भी अनियमित खानपान एवं तनावयुक्त दिनचर्या एक बड़ा कारण है, आज दुनिया में जिस प्रकार डाइबिटीज  के रोगी बढ़ रहे हैं ,भारत भी इस मामले में एक कदम आगे है, यूं ही नहीं हमें डाइबिटीज की राजधानी में रहने का गौरव दिया गया है।
लेकिन हमारी संस्कृति, धर्म एवं जीवन जीने के सिद्धांतों ने इसे हजारों वर्ष पहले ही भांप लिया था, शायद हमारे आचार्यों की दिव्य दूरदृष्टि का यह कमाल ही रहा होगा कि आयुर्वेद एवं योग में ऐसे कई उपाय बताये गए ,जिससे जीवन को जीने की सही कला विकसित हुई ,लेकिन यह भी एक कटु सत्य है, कि हमने आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में इन सबको कहीं भुला दिया और आधुनिक पश्चिमी जीवनशैली का अनुकरण करने लग गए ,इसकी फलश्रुति डाइबिटीज जैसी शारीरिक विकृतियों के रूप में सामने आयी। आज पुरी दुनिया योग एवं आयुर्वेद को अपना कर यह साबित कर रही है, कि हमारे आचार्यों का विज्ञान तथ्यों से पूर्ण था। आयुर्वेद में सदियों पूर्व प्रमेह रोग के रूप में डाइबिटीज को समाहित किया था, एवं इसके मूल कारणों में आरामतलबी जीवन एवं खानपान को बतलाया गया था। आइए आज हम कुछ ऐसे उपायों पर चर्चा करेंगे जिससे आपको इस विकृति को शरीर में सुकृति के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।
-आप कफ बढाने वाले खान-पान एवं दिनचर्या (दिन में सोने) से बचें।
-नियमित व्यायाम से आप डाइबिटीज सहित हृदय रोगों से भी बचे रह सकते हैं इसके लिए योग अभ्यास ( पश्चिमोत्तासन एवं हलासन का अभ्यास ) एक महत्वपूर्ण साधन है।
-संतुलित भोजन को प्राथमिकता दें।
-रोज खाने के बाद थोड़ी देर जरूर टहले।
-धूम्रपान व मद्यपान से बचें।
-जामुन के गुठली का चूर्ण ,नीम के पत्र  का चूर्ण,बेल के पत्र का चूर्ण ,शिलाजीत , गुडमार ,करेला बीज एवं त्रिफला का चूर्ण चिकित्सक के परामर्श से लेना डाइबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होगा।
-कुछ आयुर्वेदिक औषधियां जैसे वसंतकुसुमाकर रस ,त्रिबंग भस्म ,शिलाजीत,चंद्रप्रभावटी इस रोग में दी जानेवाली प्रचलित औषधी हैं।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-diabetes-always-2565653.html
 

इंसुलिन न लेने वाले डाइबिटीज के रोगियों के लिए खुशखबरी

हाल में ही युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साईंसेज के डिपार्टमेंट ऑफ  क्रोप फिजीयोलोजी ने इंसुलीन नहीं ले रहे।  27  ( एन.आई.ड़ी.ड़ी.एम.)  डाइबिटीज  एवं उच्च रक्तचाप के रोगियों पर स्टीविया नामक औषधीय पादप के प्रभाव पर आधारित एक अध्ययन किया है, इनमें 12  ( एन.आई.ड़ी.ड़ी.एम्.) डाइबिटीज  एवं 17 उच्च रक्तचाप से पीडि़त रोगियों को एक माह तक स्टीविया नामक पादप का प्रयोग कराया गया।

उच्च रक्तचाप से पीडि़त रोगियों को स्टीविया एवं मूंगफली से मिलाकर बनायी गयी मीठी चिक्की खिलाई गयी तथा  ( एन.आई.ड़ी.ड़ी.एम.)  डाइबिटीज से पीडि़त रोगियों को स्टीविया से बनायी गया  मीठा बन (मीठी रोटी ) दिया  गया। इस अध्ययन में इस बात का ध्यान रखा गया कि,रोगी नियमित रूप से इसका सेवन अवश्य करें। उन्हें यह बताया गया, कि आप अपने चिकित्सक द्वारा बताये गए आहार का तो सेवन करें ही, परन्तु नाश्ते में स्टीविया से बने इन उत्पादों को भी लें।
इस प्रकार कराये गए अध्ययन को 35 से 54 आयु वर्ग के रोगियों में प्रयोग कराया गया, इस अध्ययन का उद्देश्य स्टीविया को चीनी के विकल्प के रूप में तलाश करना  था ,ताकि इस मिठाई आदि में डालकर डाइबिटीज  के रोगियों के लिए प्रयोग के योग्य बनाया जा सके। इस अध्ययन में  स्टीविया से बनाए गए इन उत्पादों के ग्लाईसेमीकइंडेक्स को अलग- अलग प्रायोगिक तरीकों से शोध के दृष्टिकोण से देखा गया। अध्ययन में स्टीविया से बने।
उत्पादों  की मिठास शक्कर से बने उत्पादों की अपेक्षा 300 से 400 गुना अधिक पायी गयी । इस अध्ययन ने यह सिद्ध किया कि़ स्टीविया डाइबिटीज के रोगियों में शक्कर का एक विकल्प हो सकता है, तो हैं न ,यह एक खुशी की बात ,अब यदि आपकी रक्त शर्करा बढी हो, तो चिकित्सक कहेंगे ,मीठा खाओ पर स्टीविया के साथ।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें : http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-news-for-patients-with-diabetes-who-take-insulin-2570974.html

जानिए कैसे,अब जल्दी ही पूरी होगी कभी बूढ़ा न होने की हसरत?

अब जल्द ही ,बढ़ती उम्र को रोक पाना हो जाएगा आसान  जवां रहने की चाहत किसे नहीं होती है ,चाहे वह प्राचीन काल के ऋषि मुनि हों या आज के आधुनिक वैज्ञानिक ,हर युग में सदैव जवां रहने और दिखने के लिए कुछ न कुछ उपाय या शोध किये जाते रहे हैं ,आयुर्वेद में भी रसायनों को चिर यौवन प्राप्त करने के लिए ही विकसित किया गया था। वर्तमान में भी वैज्ञानिक ऐसे तरीकों की तलाश में हैं , जो बढ़ती उम्र के प्रभाव को थोड़ा धीमा कर सके, या फिर शारीरिक क्षय की प्रक्रिया को रिवर्स कर दे।
यूनिवर्सिटी ऑफ  नार्थ केरोलीना के प्रोफे सर नोर्मन का कहना है, कि बढ़ती उम्र को धीमा करने की दिशा में किया जा रहा शोध बड़े ही सफल मुकाम पर है। अभी हाल ही में यूनाईटेड स्टेट्स में हुए शोध इस बात को दर्शा रहे हैं, कि बुजुर्गों की कोशिकाओं को स्टेम कोशिकाओं के रूप में पुन: विकसित कर बढ़ती उम्र को धीमा किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह एल्जाइमर,कैंसर एवं हृदय से सम्बंधित रोगों को मात देने में भी एक बड़ी कामयाबी होगी। 
लेकिन वैज्ञानिकों का यह भी मानना है, कि इस प्रकार के इलाज को विकसित करना एक कठिन कार्य है, तथा इससे मिलने वाले परिणामों की सख्त पड़ताल आवश्यक होगी। चिंता इस बात की है, कि यह बात तो महत्वपूर्ण है, कि इन कोशिकाओं को विकसित करना महत्वपूर्ण है ही, परन्तु इन्हें लेने वालों में कुछ संभावित खतरे भी हो सकते हैं। वर्ष 2010 में  चूहों पर किये गए अमेरीकी वैज्ञानिकों के अध्ययन ने टीलोमरेज नामक एंजाइम से चूहे की बढ़ती उम्र को रोकने में सफलता पायी थी, इसी प्रकार के एक दूसरे अध्ययन में जेनेटीकली मोड़ीफायड चूहे विकसित किये गए थे। ब्रिटिश जर्नल नेचर में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार हमारे शरीर में कुछ कोशिकाएं (सेनीसेंट सेल ) होती  हैं, जो अपने आप को पुनर्जीवित नहीं कर पाती हैं ,और यही कोशिकाएं बढ़ती उम्र के लिए जिम्मेदार होती हैं ,अगर इन कोशिकाओं को समय रहते समाप्त करने में पायी गयी सफलता हमें कैंसर ,हृदय रोग ,डेमेन्सीया जैसी बीमारियों को दूर  करने में मददगार सिद्ध होगी। वैज्ञानिक अब तक के इन शोध परिणामों से बड़े ही उत्साहित हैं ,और उनका कहना है, यदि इन शोधों पर पर्याप्त धन एवं प्रयास जारी रहा तो, वह दिन दूर नहीं ,जब हम जीवन को आगे बढाने के साथ साथ डाइबिटीज ,कैंसर एवं हृदय रोगों से असमय होनेवाली मृत्यु को टालने में कामयाब होंगे।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ever-being-young-2571101.html

पुरुष हो जाएं सावधान! प्यार में किया, धोखा तो कहीं हो ना जाए ये जानलेवा बीमारी

हमारे शरीर में दिल का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। माता के गर्भ के बारहवें से चौदहवें तक सप्ताह 180 प्रति मिनट की दर से धड़कता हुआ ये दिल ,120-160 प्रतिमिनट की धड़कन पर बना रहता है ,तथा धीरे-धीरे ये दिल मौत आने तक 72 प्रति मिनट पर अनवरत धड़कता रहता है। दिल की धडकनें प्यार-मोहब्बत,दु:ख सुख आदि स्थितियों में घट-बढ़ सकती हैं। इन बातों को ध्यान में ही रखते हुए ही शायद मोहब्बत की नज्मों में दिल की धडकनों विशेष स्थान मिला है। तरानों में दिल के टूटने और जुडऩे की बातें शायद  सच लगती हों,लेकिन अब वैज्ञानिक भी दिल टूटने की बात को सही करार दे रहे हैं। 
इस नयी बीमारी का नाम है ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम। चकरा गए न आप, इस बीमारी का नाम सुनकर,पर यह बात हम नहीं पेनीसाल्वेनिया विश्वविद्यालय के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.मरियल जेसप कह रहे हैं। उनका कहना है : महिलाएं इस बीमारी के मामले में पुरुषों से कहीं आगे हैं, उनके अनुसार अचानक दिल टूटने या किसी की मृत्यु हो जाने पर हार्ट अटेक के लक्षण उत्पन्न होते हैं, तथा मरीज बगैर किसी नुकसान के ही रिकवर कर जाते हैं। इस दिल टूटने की बीमारी का पता सब से पहले जापानी वैज्ञानिकों ने 1990 में  लगाया था और उसे तोसुबो कार्डियोमायोपैथी नाम दिया था,वैसे आयुर्वेद शास्त्र में काफी पहले ही हृदय रोगों के अंतर्गत इस बीमारी का वर्णन किया गया है। ऐसा एक बड़े झटके के कारण उत्पन्न होता है, जैसे किसी की लोटरी लग गयी या प्रेमी प्रेमिका को आपस में परिणय की स्वीकृति मिल जानी की अवस्था हो,या कोई अचानक मिलने वाला खुशी या गम का एहसास हो,ऐसी स्थिति में तनाव के लिए जिम्मेदार हारमोन एड्रीनलीन अचानक हृदय को काम करने से रोक देता है।
युनिवर्सिटी ऑफ अर्कानास के डॉ.अभिषेक का कहना है कि मेरी अभी तक यह समझ में नहीं आया, कि ऐसा अक्सर महिलाओं में ही क्यों होता है?इन्ही  कारणों को जानने  के लिए उन्होंने एक बड़ा अध्ययन किया तथा परिणामों को अमेरिकी हार्ट एसोसीयेसन के कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया। डॉ देशमुख ने अलग-अलग 1000 अस्पतालों में 6229 केसेज पर अपना अध्ययन किया ,उन्होंने केवल 671 पुरुषों में इस स्थिति को पाया,जो धूम्रपान एवं अन्य कारणों से भी प्रभावित हो रहे थे। उनके  अध्ययन से यह पता लगा कि 7.5 गुना महिलाओं का दिल पुरुषों की अपेक्षा अधिक टूटता है। इसके सही कारणों को जानने की तलाश अभी भी जारी है। तो अब से पुरुष  हो जाएं सावधान,कहीं आपकी वजह से कोई महिला मित्र ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम से पीडि़त न हो जाय ..।
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जानिए, क्यों भूल जाते हैं हम छोटी छोटी बातों को?

अक्सर ऐसा होता है, कि हमने अभी किसी काम को करना सोचा और किसी और काम में उलझ गए और भूल गए। जैसे किसी चीज को कहीं रखकर भूल जाना। फिर ढंढूते रहना या किसी का नाम अचानक याद होने के बावजूद भी जुबान पर न आना। 
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। 
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html

टेंशन होगा खत्म और बढ़ेगी याददाश्त इस आसान फंडे से

एक्जाम के समय विद्यार्थियों में तनाव स्वाभाविक होता है। इस तनाव के कारण उन्हें मानसिक रूप से बोझिल होना पड़ता है, कई बार तो याद हुई बातें भी समय पर रिकाल नहीं होती। ऐसे बच्चों के लिए ट्रांसडरमल मेडिटेशन मानसिक तनाव को कम करने का एक बेहतर विकल्प हो सकता है। सेकेंडरी स्कूल के बच्चों में कराये गए एक अध्ययन से यह परिणाम सामने आये हैं, इस अध्ययन से यह बात साबित हुई है कि़ मेडिटेशन, बच्चों में उत्पन्न हो रहे मानसिक तनाव को 36 प्रतिशत तक कम कर देता है। 
इस अध्ययन में 106 सेकेंडरी स्कूल के बच्चों को लिया गया तथा उन्हें लगातार चार महीने तक ट्रांसडरमल मेडिटेशन का अभ्यास कराया गया,  इसके परिणामों की एक कंट्रोल समूह से तुलना की गयी ,कैंसर परमानेंट सेंटर फॉर हेल्थ रिसर्च के शोधकर्ता डॉ.चाल्र्स एल्डर एम.डी. का कहना है, कि बच्चों में ट्रांसडरमल मेडिटेशन का अभ्यास मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने में मददगार होता है। आयुर्वेद में भी मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने का निर्देश आचार्य सुश्रुत ने हजारों वर्ष पूर्व ही स्वस्थ व्यक्ति की  परिभाषा में दे दिया था। 
पढ़ाई का तनाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर उलटा प्रभाव डालता है, ऐसे  बच्चे अच्छा परफार्म नहीं कर पाते हैं। महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ  मेनेजमेंट के प्रोफेसर ऑफ  एजुकेशन सेनफोर्ड निडिक का कहना है, कि ट्रांसडरमल मेडिटेशन का अभ्यास बच्चों में एकेडेमिक परफार्मेंस को बेहतर करने में मददगार है। इस अध्ययन के परिणाम जर्नल ऑफ  इन्सट्रकशनल साइकोलोजी में प्रकाशित हुए हैं। तो हो जाएं तैयार ,आज से ही अपने बच्चों को करायें ध्यान का अभ्यास और देखें उनके परीक्षा परिणाम।
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ताजा रिसर्च: नमक का ऐसा प्रयोग ले सकता है आपकी जान

नमक को कितना लें? ज्यादा लें ,कम लें ,नहीं लें, इस बारे में बड़ी भ्रांतियां बनी रहती हैं। लेकिन यह बात सत्य है, कि नमक को किसी भी रूप में ज्यादा या कम लेना नुकसानदायक होता है। आपके लिए नमक की औसत 24 घंटे की मात्रा आधा चम्मच (2.5 ग्राम ) से अधिक नहीं होनी चाहिए।
हाल ही में मैक मास्टर विश्वविद्यालय में किये गए एक अध्ययन से यह निष्कर्ष सामने आया है, कि नमक का ज्यादा या कम मात्रा में सेवन दिल के लिए खतरनाक हो सकता है। 
दिल के रोगों से पीडि़त रोगियों के लिए नमक का कम या अधिक  मात्रा में सेवन हार्ट फेल ,हार्ट अटेक,स्ट्रोक आदि से मौत का कारण बन सकता है। वैज्ञानिकों ने तीस हजार दिल के रोगियों के पेशाब के सेम्पल लेकर उनके सोडियम आउटपुट को मोनीटर किया। वैसे रोगी जो ज्यादा सोडियम ( आठ ग्राम से अधिक ) उत्सर्जित  कर रहे थे।
उनमें कम सोडियम( चार से छह ग्राम ) उत्सर्जित कर रहे रोगियों  की अपेक्षा 50 से 70 प्रतिशत  हृदय रोगों से मृत्यु की संभावना देखी गयी। वैसे रोगी जिन्होंने मूत्र से कम सोडियम (दो ग्राम से कम ) उत्सर्जित किया। उनमें दिल के रोगों का प्रतिशत 37  पाया गया और इससे मौत का प्रतिशत 29 था। इस अध्ययन को जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित किया गया है
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काम में मन नहीं लगता तो अपनाएं ये आसान फंडा

आपको दिन में सपने देखने या सिजोफ्रेनीया से पीडि़त रोगों के लिए एक खुशखबरी है। योग के अंतर्गत आने वाली ध्यान (मेडिटेशन ) का नियमित अभ्यास इन बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है । येल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. जुड्सन ब्रेवर एवं उनकी टीम ने  तीन अलग-अलग ध्यान की विधियों पर मस्तिष्क की एक्टिविटी को एम.आर.आई .के माध्यम से देखा । 
उन्होंने पाया कि, चाहे किसी  भी विधि से ध्यान का अभ्यास किया जाय ,यह मस्तिष्क की डिफाल्ट मोड नेटवर्क में सक्रियता को कम कर देता है ,जो एंजाईटी (अनावश्यक डर एवं चिंता  ),काम में मन नहीं लगता ,हायपरएक्टिव डिसऑर्डर (अतिसक्रियता ) एवं अल्जाइमर जैसी समस्याओं से निजात दिला सकता है। 
शोधकताओं का मानना है, कि ध्यान के अभ्यासी धीरे-धीरे स्वयं के मस्तिष्क को नियंत्रित कर अपने अन्दर मैं की भावना को दबा देते हैं, और विचारों के भटकाव को भी कम कर देते हैं, ऐसा अक्सर सिजोफ्रेनीया जैसी बीमारियों में देखने में आता है। यह अध्ययन प्रोसीडिंग ऑफ  नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित हुआ है।
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