Friday, July 29, 2011

प्लास्टिक सर्जरी और आचार्य सुश्रुत

मुझे अपने आयुर्वेद अध्ययन के दौरान आचार्य सुश्रुत के इस सन्दर्भ ने अत्यंत प्रभावित
किया है !.सूत्र स्थान अध्याय १६ का यह सन्दर्भ आचार्य सुश्रुत क़ी एडवांस टेक्नोलोजी को दर्शाता है !इस सन्दर्भ का अर्थ है क़ि यदि किसी व्यक्ति क़ी कान क़ी पाली कट गयी हो,या न हो तो गंडप्रदेश(टेम्पोरल रीजन) से जीवित (लाइव ) या सम्बन्ध रखने वाले मांस को लेकर रोगी क़ी कर्णपाली (पिन्ना) बनाएं ! सुश्रुत के कालखंड में हो रही प्लास्टिक सर्जरी का इससे अच्छा उदाहरण हो ही नहीं सकता ..........!!
गंडादुत्पाटय मांसेन सानुबंधेंन जीवीत !
कर्णपालीमकपालेस्तु कुर्यान्निर्लिख्य शास्त्रवित !!

भारत विश्व गुरु .....!!

भारत के चिकित्सा विज्ञान में विश्वगुरु होने के प्रमाण के रूप में ये सत्य गाथा आज गुरुपूर्णिमा के अवसर पर प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
आयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में प्लास्टिक सर्जरी का सन्दर्भ मिलता है, जिसमें गले से त्वचा लेकर कान की पाली को बनाने का विस्तृत वर्णन है I आचार्य सुश्रुत के बाद "राईनोप्लास्टी " की यह तकनीक भारत के कुछ पारंपरिक वैद्यों द्वारा छुपकर बाद में प्रयोग की जाती रही Iकोवास्जी एक बैलगाड़ी चलानेवाले की गाथा इस बात का प्रमाण है I कोवास्जी अपनी बैलगाड़ी से दक्षिण भारत में रह रहे ब्रितानी सैनिकों को राशन की आपूर्ति करता था, जबकि तत्कालीन शासक के अनुसार ये गुनाह था क्योंकि वहां ब्रितानियों का विरोध हो रहा था I तब कोवास्जी को पकड़कर नाक काटने का फरमान तत्कालीन शासक द्वारा जारी हुआ और उसकी नाक काट दी गयी I बाद में कोवास्जी की नाक एक पारंपरिक चिकित्सक ने सुश्रुत की तकनीक से बनायी I इस सर्जरी के गवाह दो ब्रिटिश चिकित्सक बने, जिस बात का उल्लेख १७९४ में ब्रिटेन से प्रकाशित "जेंटलमेंस मैगजीन " में किया गया I १८३७ के बाद पूरी ब्रिटेन में भारत की इस तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा I "जेंटलमेंस मैगजीन " में प्रकाशित इस लेख से उत्साहित होकर जोसेफ कॉर्प (१७५४-१८४०) नामक सर्जन ने सबसे पहले इस तकनीक से सर्जरी क़ी ,और वो पहला यूरोपीयन सर्जन बना जिसे भारत क़ी तकनीक से सर्जरी का गौरव प्राप्त हुआ I कार्ल फ्रीडलैंड वोनग्राफ ने अपनी पुस्तक ""राईनोप्लास्टीक " में जोसेफ कॉर्प द्वारा क़ी गयी इस सर्जरी का वर्णन किया है I "राईनोप्लास्टीक " पुस्तक ने यूरोप के सर्जनो को इस तकनीक से प्रोत्साहित करने का काम किया I जोनाथन नेथोन वारेन ने १८३७ में नोर्थ अमेरिका में इस भारतीय तकनीक से क़ी गयी सर्जरी क़ी रिपोर्टिंग क़ी थी I १८९७ के बाद लगभग १५२ भारतीय राईनोप्लास्टीक सर्जरी होने का वर्णन है I यह इस बात का गवाह है क़ि भारत विश्वगुरु था,है और रहेगा ....!
डॉ नवीन चन्द्र जोशी
एम्.डी .आयुर्वेद

रास्तों को पकड़ता हूँ मैं

रास्तों को पकड़ता हूँ मैं !
और दूर चली जाती है वो !
लगता है रास्ते वही हैं !
पर कहीं और है वो !
तलाश में उसके मैं !
रास्ते बदल-बदल चलता हूँ मैं !
लगता है यहीं कहीं है वो !
फिर दूर निकल जाती है वो !
शायद मेरी नजरों का धोखा है !
वो है यही जिसकी मुझे तलाश है !

बशर में रोग से होता है जब दर्द-ए-असर !

बशर में रोग से होता है जब दर्द -ए-असर !
आयुर्वेद करता है बेजरर पुख्ता असर !!
दरसल कस्रे सेहत का नाम आयुर्वेद है !
चरक-सुश्रुत-वाग्भट के तखीयुल से सर चस्मा-ए सेहत है !!
हकीकत ख़ाक समझेंगे वे जिन्हें खुद क़ी खबर नहीं !
मकामे शुक्र है क़ि तुम बेखबर नहीं !!
ज़माना तेरे क़दमों में होगा !
हर तरफ मरहबा का आगाज होगा !!
सिर्फ एक बार बुलंदी से इसको आजमाओ !
सेहत के कद्रदानों के बीच कोनो-मकां छा जाओ !!

Friday, July 1, 2011

चवन्नी तू बड़ी कमाल क़ी थी !

चवन्नी तू बड़ी कमाल क़ी थी !
छोटे थे तब एक माचिस की कीमत थी चवन्नी !
सुर्ख होठों क़ी लाली पान क़ी कीमत थी चवन्नी !
अब चवन्नी कहाँ अठन्नी भी रोती है अपनी किस्मत पर !
कहती है,मुझे भी मुक्ति दो ए मेरे विधाता !
अब भीख में भी नहीं लेते भिखारी मुझे !
क्या करूँ जब रुपैये क़ी ही कोई औकात नहीं !
अब सिर्फ मुस्कानों में याद आयेगी चवन्नी !
चवन्नी तू बड़ी कमाल की थी !