Tuesday, March 6, 2012

आंसू .....


हाँ मुझे आंसू आते हैं ..
पर तब नहीं जब नेताओं को आते हैं ....
हाँ मुझे आंसू आते हैं ....
पर तब नहीं जब आतंकी मारे जाते हैं....
 हाँ मुझे आंसू आते हैं ..
पर तब नहीं जब लोग अपनी  उम्र पूरा कर जाते हैं....
 हाँ मुझे आंसू आते हैं ....
पर तब नहीं जब   सजायाफ्ता शीघ्र न्याय  पाते हैं ....
हाँ मुझे आंसू आते हैं ....
तब, जब आतंकी शान से मेहमानवाजी का आनंद लेते हैं....
 हाँ मुझे आंसू आते हैं ....
तब, जब   आंसुओं  से  भावनाएं  भड़काई जाती   हैं.....
 हाँ मुझे आंसू आते हैं.....
तब, जब शहीदों क़ी चिताओं के सामने घडियाली आंसू बहाए जाते हैं ...
हाँ मुझे आंसू आते हैं  ......
तब ,जब कोई भूखा  अनाज गोदामों में सड़ता देखता  है ....
हाँ मुझे आंसू आते हैं ...... 
तब,जब सोने क़ी चिड़िया को याद किया जाता है .....
काश ये आंसू  दिल से आते और दिमाग को छू जाते तो आंसुओं पर कविता न लिखी जाती...

एक्सपीरियंस vs एक्सपेरिमेंट

आज हम अपनेआप  को एक्सपेरिमेंटों से घिरा पाते हैं, आज आयी एक रिसर्च कल मानी जायेगी या नहीं कही नहीं जा सकती है I यह शायद हमारी  आधुनिक सोच हो सकती है, लेकिन यह सोच एक अधूरी सोच है Iआज  'एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी' के पैमानों पर परीक्षित परिमाणों को ही सत्य माना जाता है ,आप शायद जानते होंगे क़ि सन १९०५ में आइन्स्टाइन ने “थ्योरी आफ रीलेटीविटी” पर अपना पहला शोध पत्र प्रस्तुत किया था और इस सिद्धांत को कुछ वर्षों में ही  ’एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों  पर स्वीकृति मिल गयी थी और E=MC SQUARE एक अटल सत्य के रूप में स्थापित हुआ था I  लेकिन आज यह थ्योरी भी फेल हो चुकी है ,मुझे लगता है क़ि आज के विज्ञान की दिशा मानव की व्यक्तिगत चेतना को शून्य करने की है, अगर ऐसा नहीं होता ,तो मानव अपने द्वारा ही बनाए गए विनाशकारी चक्रों में क्यूँ फंसा हुआ है ?सामरिक संहार के लिए बनाए गए हथियार और पर्यावरण को नष्ट कर हासिल की गयी भौतिकता इसके उदाहरण नहीं तो और क्या हैं ?शायद आधुनिक विज्ञान आइन्स्टाइन द्वारा अंतिम समय में कहे गए उन शब्दों को भूल गया है ..”I am not interested in spectrum of any element,I want to know how got things  ”.उनकी वेदना उनके द्वारा कहे गए इन शब्दों से और भी अधिक परिलक्षित होती है ..”The Destiny of Humanity is not written on Stars .It is here on the Earth Planet..”  यह बात साबित करती है, क़ि आधुनिक वैज्ञानिकों में सम्मानित आइन्स्टाइन भी मानव चेतना को लेकर उद्वेलित थे I ऐसा ही कुछ हाल ,विकसित  आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का भी है, जिसके उपाय केवल और केवल बाह्य शरीर के लिए ही कारगर सिद्ध हो रहे हैं ,जो मनुष्य क़ी मूल चेतना को परिष्कृत करने से कोसों  दूर हैं I वैदिक संस्कृति और उसी का उपवेद, आयुर्वेद मनुष्य क़ी चेतना को परिष्कृत करने का बड़ा साधन है ,क्योंकि  इसमें वर्णित तथ्य महज ‘एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों पर सिद्ध नहीं किये हुए हैं ,अपितु शरीर के अन्दर होनेवाली अनुभूतियों पर आधारित हैं, जिसे आधुनिक विज्ञान क़ी बाह्य जगत वाली सोच कभी नहीं समझ सकती है I आयुर्वेद में पूर्ण स्वास्थ्य के लिए आहार,निद्रा और ब्रह्मचर्य को तीन मुख्य स्तम्भ माना गया है और इसको प्राप्त करने के उपाय पूर्णतया निर्दोष हैं, जबकि आधुनिक प्रायोगिक विज्ञान में आहार का सिद्धांत महज बाह्य शरीर को ध्यान में रखकर है और निद्रा के लिए दी जानेवाले औषधियां मनुष्य के जीने की इच्छा को समाप्त करती चली जाती हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो  विकसित देशों में बढ़ती आत्महत्या के पीछे इन औषधियों का सेवन एक बड़ा कारण न होता ! ब्रह्मचर्य के बारे में भी आधुनिक विज्ञान क़ी सोच हमसे कुछ अलग है उनके अनुसार कामतृप्ति महज मानसिक तनावों को दूर करने का साधन है I इन्ही कारणों से उन्हें योग के अभ्यास में भी महज सेक्स बढ़ाना नजर आता है I जबकि हमारे सिद्धांतों में ब्रह्मचर्य को महान बनने का साधन माना गया है‘उर्ध्वरेता भवेत यस्तु सहदेवो न तु मानुषः !’ हाँ काम से पूर्ण विरत रहने पर भी वाजीकरण का सेवन करना निर्दिष्ट है, यही कारण है, क़ि आचार्य चरक ने चिकित्सा  स्थान में सामान्य मानव को भी वाजीकरण औषधियों का सेवन करते हुए इन्द्रिय निग्रह करना बताया है Iआधुनिक विज्ञान में मन और आत्मा का कोई सिद्धांत विशेष नहीं है, जबकि आयुर्वेद आत्मा और इन्द्रिय क़ी प्रसन्नता को स्वास्थ्य  के  परिभाषा क़ी  अंतिम स्थिति मानता है I मन और आत्मा क़ी स्वच्छता मानव्   शरीर को धर्मों के पार ले जाती है और मृत्यु के साथ मनुष्य उस चैतन्य तत्व में विलीन हो जाता है,जहां उसे इस शरीर के साथ सम्पूर्ण जगत एक बूँद के समान प्रतीत होने लगता है I यही कारण है, क़ि विश्व के सभी लोकोत्तर मानव आचार्य शंकर,बुद्ध .महावीरएवं प्रभु इशु मसीह अपने जीवन काल में ही संतुष्ट और मुक्त थे तथा म्रत्यु  के भय  से रहित थे I मुझे लगता है ,धीरे-धीरे ही सही आधुनिक पाश्चात्य सोच में परिवर्तन प्रारम्भ हो रहा है और वह दिन दूर नहीं जब एक्सपेरिमेंट का स्थान एक्सपेरीयंस लेगा …!!

ज्यादा पानी पीने वालों के लिए एक खास खबर....पढ़ेंगे तो हैरान रह जाएंगे!

आप शायद जानते होंगे की हमारे शरीर का 66 प्रतिशत भाग पानी से निर्मित है। पानी हमारे शरीर में खून के माध्यम से,कोशिकाओं के द्रव्य के रूप में और दो कोशिकाओं के मध्य के अवकाश के बीच दौड़ता रहता है। हर क्षण पानी हमारे शरीर से मल-मूत्र एवं छोड़ी गयी सांस के द्वारा बाहर निकलता है। हाँ यह बात सत्य है, कि इनकी कमी को पूरा किया जाना आवश्यक है, पर यह भी एक सत्य है, कि अत्यधिक मात्रा में पानी लेना भी खतरनाक हो सकता है, आप यह जान कर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि यह मौत का कारण भी बन सकता है।

अमेरिका के केलीफोर्निया के एक रेडियो स्टेशन में पानी पीने की हुई प्रतियोगिता- में एक 28 वर्षीय महिला की मौत अत्यधिक पानी पीने से हुए थी। उस महिला ने तीन घंटे में छह लीटर से अधिक पानी पी लिया था और उसे अत्यधिक उल्टी एवं सरदर्द जैसे लक्षणों के कारण गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया,जहां उसकी मौत हो गई। वर्ष 2005 में भी ठीक ऐसा ही एक वाकया केलीफोर्नीया स्टेट यूनिवर्सीटी में 21 वर्ष के एक पुरुष के साथ हुआ। 

जिसकी मौत सर्द बेसमेंट में लगातार नृत्य करने के कारण अधिक पसीना बहाने के कारण पानी की हुई कमी को पूरा करने के लिए अधिक पानी पीने से हुई। इतना ही नहीं वर्ष 2005 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन में प्रकाशित एक शोध से यह बात साबित हुई है, कि मेराथन दौड़ में भाग लेने वाले हर छह में से एक धावक अधिक पानी पीने से रक्त के अधिक डायल्युट हो जाने से हाइपोनेट्रीमीया के शिकार हो जाते हैं। यदि आप जरूरत से ज्यादा पानी पीते हैं, तो यह आपकी किडनी को अतिरिक्त पानी के दवाब से शरीर को मुक्त करने के लिए फ्लश नहीं कर पाने के कारण शरीर में पानी के जमाव का कारण बन जाता है। 

यह पानी उस स्थान में जाने लगता है। जहां नमक और अन्य घुलनशील पदार्थों क़ी सांद्रता अधिक होती है।यह खून से होते हुए कोशिकाओं के अन्दर घुस जाता है।कोशिकाएं इस अतिरिक्त पानी के आ जाने के कारण गुब्बारे की तरह फूल जाती हैं और एक सीमा तक फूलते-फूलते फट कर नष्ट हो जाती हैं। हां यह बात सत्य है, कि हर कोशिका की इसे समायोजित कर फूलने के क्षमता अलग-अलग होती है, इनमें मांसपेशियों की कोशिकाएं अधिक फूल सकती हैं। जबकि मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं टाईट-पैक होने के कारण कम फूल पाती हैं ,अत: इनके फटने की संभावना अधिक होती है और यही मौत का कारण बन जाती है।अत: यह बात बिल्कुल सत्य से परे है ,कि खूब पानी पीयो और स्वस्थ रहो ..। 

कुछ साल पहले डार्टमोथ मेडीकल स्कूल के वैज्ञानिक हेल्ज वालटीन ने एक सामान्य व्यक्ति को दिन में कितना पानी पीना चाहिए इस पर शोध किया और दिन में आठ 3 आठ यानी आठ औंस आठ ग्लास पानी पीने के सिद्धांत को परखा, लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि वे इसकी पुष्टि नहीं कर पाए ,क्योंकि यह व्यक्ति की सक्रियता,वातावरण आदि के अनुसार बदल जाता है। उनका यह अध्ययन वर्ष 2002 के जर्नल ऑफ फिजीयोलोजी में प्रकाशित हुआ था। अत: यह बात तो तय है ,कि़ यदि आप ज्यादा पानी पीएंगे तो यह निश्चित तौर पर खतरनाक हो सकता है, वैसे भी हमारे ऋषि-मुनियों ने जल को पंचमहाभूत में से एक माना है और किसी भी एक महाभूत क़ी अधिक वृद्धि को इस पिंड शरीर के लिए खतरनाक माना है, जो इसकी स्वयं पुष्टी करता है तो आप पानी जरूर पीएं पर जरा संभल कर ......क्योंकि - अति सर्वत्र वर्जयते- !! इसी आर्टिकल  को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-for-those-drinking-more-water-will-be-surprised-to-learn-a-little-news-2911277.html

स्पेशल रिपोर्ट: खाना खाने से पहले एक बार ये खबर जरुर पढ़ लीजिए!

भूखा रहना और स्वस्थ रहना ,बात सुनने में कुछ अजीब लगती हो पर शोधकर्ताओं का मानना है ,कि सप्ताह में दो दिन भोजन को छोड़ कर आप अल्जाइमर और डेमेंसीया जैसी बीमारियों से बचे रह सकते हैं। नेशनल इंस्टट्यूट ऑफ  बाल्टीमोर के शोधकर्ताओं का मानना है, कि कुछ  नियंत्रित और तय आहार लेकर और कैलोरी की मात्रा को कम कर आयु को बढाया जा सकता है।

ऐसे परिणाम बड़े चौकाने वाले हैं ,जो चूहों की आयु को 40 प्रतिशत तक बढ़ा देनेवाले पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का मानना है, कि ऊर्जा के रूप में प्रतिदिन 500  कैलोरी की अतिरिक्त मात्रा को सप्ताह में दो दिन कम कर आप अपने मस्तिष्क को दुरुस्त रख सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है, कि इस प्रकार की प्रवृति हमें अपने आदिम पूर्वजों से विरासत में मिली है ..अब आप कहेंगे कैसे? तो हम बतलाते हैं ....हमारे आदिम पूर्वजों को आहार की खोज में भटकना पड़ता था..इसके लिए उनका मस्तिष्क भोजन के स्रोत को अक्सर अपने मस्तिष्क में याद कर रखता था, तथा रास्ते में आनेवाले प्राकृतिक आदमखोर शिकारियों से बचाव के लिए भी अपने मस्तिष्क को तैयार रखता था।

अत: हमारे मस्तिष्क में एक प्रकार की स्वाभाविक प्रणाली  विकसित हो गयी है, जिसका सम्बन्ध भूख और तंत्रिकाओं के विकास से सम्बंधित है। है ,न कमाल की बात, जिसे हम आयुर्वेद में लघुता लाने के उपाय के रूप में लंघन के एक प्रकार के रूप में जानते हैं और उपवास नाम देते हैं, यह एक प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है .....तो आज से ही सप्ताह में दो दिन का करें उपवास ...इससे आप रहेंगे स्वस्थ ,शांत और प्रसन्नचित ...। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें ..http://religion.bhaskar.com/article/yoga-are-you-hungry-2911305.html

इस एक चीज पर काबू कर लिया तो बीमारियां आपको छू भी नहीं पाएंगी

भूख यदि जीवन में न हो तो कोई काम न हो,पापी पेट की भूख के लिए जीव न जाने क्या क्या करता है। भूख वासना की हो, या हो धन अर्जन की, नियंत्रण में हो तो बड़े बड़े काम करवा डालती है ,पर भूख अगर काबू से बाहर हो तो बर्बादी का मार्ग भी प्रशस्त करती है। ऐसे ही हमारे शरीर में भी अग्नि का व्यापार भूख को उत्पन्न करता है और यदि अग्नि तीक्ष्ण होकर अनियंत्रित हो तो शरीर को भस्म करने वाला रोग भस्मक पीछा नहीं छोड़ता है। 

आयुर्वेद में पिंड को ब्रह्माण्ड से जोड़ा गया है, तो जैसा हम बाहर की दुनिया में देखते हैं वैसा ही कुछ शरीर के अन्दर भी होता है ...स्वस्थ रहने के लिए हमें अपने भूख पर नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है, जिसे उपवास नाम दिया गया है, इससे शरीर में लघुता (हल्कापन ) आता है और ज्वर जैसे रोगों में इसे चिकित्सार्थ बताया है ,जिन बातों को सदियों पूर्व हमारे आचार्यों ,ऋषि ,मुनियों ने आयुर्वेद के माध्यम से दुनिया के समक्ष रखा था।

आज वही सारी बातें दुनिया के वैज्ञानिक अपनी शोधों के माध्यम से पुष्ट कर रहे हैं, अभी हाल ही में कैंसर के रोगियों में उपवास के द्वारा टयूमर बनाने वाली कोशिकाओं को कमजोर करने वाला पाया गया है,साथ ही यह भी पाया गया है इससे कैंसर में दी जा रही कीमोथेरेपी भी अधिक कामयाब होती है,यह बात भले ही अभी प्रारम्भिक तौर पर चूहों पर किये गए शोध में सामने आयी हो पर देर सवेर इसकी पुष्टि मानव शरीर में होनी तय ही है .....!! इस  आर्टिकल  को  पढ़ने  के  लिए   दिए गए लिंक पर क्लिक करें ..http://religion.bhaskar.com/article/yoga-the-user-has-control-over-one-thing-you-touch-will-not-be-diseases-2870558.html

पानी पीएं...मगर कितना? ये पता चल जाएगा इसे पढऩे के बाद

जल ही जीवन है यह बात अक्षरश : सत्य है।  सृष्टी  क़ी  उत्पत्ति  से  लेकर  आज  तक  जल  का  महाभूत  के  रूप  में  प्रमुख  स्थान  रहा  है।  सृष्टि  क़ी  उत्पत्ति  क़ी प्रारम्भिक अवस्था में जलीभूत होना माना गया  है। आज भी जल ब्रह्माण्ड में जीवन की उत्पत्ति की संभावनाओं क़ी तलाश को मजबूती देता  है ..। पिंड शरीर और ब्रह्माण्ड में समानता को आयुर्वेद भी मानता रहा है। इसका प्रमाण कोशिकाओं के मध्य पाए जानेवाले द्रव्य क़ी रसायनिक रूप से समंदर के खारे पानी के समान होना स्वयंसिद्ध है। अत: जल का हमारे शरीर के लिए भी अपना महत्व है, जिसे पूर्व के प्रसंग में उदधृत किया गया। परन्तु शरीर के लिए इसकी आवश्यकता कितनी हो इस पर प्रकाश डालना भी आवश्यक हो जाता है ..। 

इसमें कोई शक नहीं कि उचित मात्रा में जल का सेवन निरोगी रहने का मूल मंत्र है। हाँ पर अहम् सवाल यह है, कि एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में कितना पानी पीना चाहिए..? कुछ वैज्ञानिकों का मानना है, कि औसतन एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में आठ ग्लास पानी पीना चाहिए परन्तु विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह व्यक्ति विशेष के लिए थोड़ा बहुत अलग हो सकता है। ऐसा देखा जाता है,कि एक वयस्क औसतन आठ से बारह कप की मात्रा में शरीर से जलीयांश का उत्सर्जन करते हैं और खासकर गर्मी की दिनों में एवं खिलाडिय़ों में यह मात्रा  कुछ अधिक हो सकती है। अत: हमें खपत के अनुपात में ही शरीर को हाइड्रेट करना चाहिए ज्हाँ कुछ बातों का पानी पीने के दौरान आप ध्यान अवश्य रखें :-

- आपको जितनी प्यास लगी हो उससे लगभग दुगना पानी एक बार में पीएं।

-  गर्मियों के दिनों में डीहाईडरेशन से बचने के लिए बीच बीच में जलीय अंश अवश्य लें।

- पूरे दिन में लगभग आठ ग्लास पानी अवश्य ही पीएं।

- प्रति बीस पाउंड वजन के हिसाब से एक कप पानी ,यानी 150 पाउंड वजन का व्यक्ति जो व्यायाम नहीं करता है वह गर्मी के दिनों में कम से कम साढे सात कप पानी तो अवश्य ही पीएं।

कुछ फलों के रस एवं शीतल  पेय पदार्थ भी जलीय अंश की पूर्ति तो करते ही हैं, लेकिन काफी या चाय थोड़ा मूत्र पर प्रभाव भी दर्शाते  हैं और यह ठीक भी है। पर ध्यान रहे कि आपके मूत्र का रंग साफ हो .. अगर यह पीला आने लगे तो आप मानें कि शरीर में पानी की कमी हो गयी है और शरीर इसे संरक्षित कर रहा है। अगर आप अपने शरीर की पानी की आवश्यकता को जानना चाहते है, तो आपके लिए एक टिप है। आप एक जग में आठ ग्लास  पानी लें और इससे  चौबीस घंटे में जितना हो सके पीएं और साथ ही  अपने पेशाब के द्वारा उत्सर्जित की गयी मात्रा को भी अनुमानित करें। इससे आपको आपके शरीर के लिए औसतन आवश्यक पानी की मात्रा का पता चल जाएगा। जल एक शक्तिदायक औषधि है और औषधि का उपयोग हमेशा सावधानी के साथ करना चाहिए। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-drink-water-2943637.html

होली मनाने के हर्बल टिप्स....खुद ऐसे घर पर बनाएं आयुर्वेदिक हेल्दी कलर!!

हमारे जीवन में रंगों का अपना महत्व है,रंगीन मौसम ,रंगीन मिजाज,सतरंगी छटा और न जाने कितनी ही उपमाओं से हमने अपने जीवन को रंगीन बनाया है। शायद होली के रंग भी कुछ ऐसा ही सन्देश देते हैं होली पर रंगों का प्रयोग अक्सर होता है पर यदि इसमें कुछ संस्कार कर दिए जाएँ, तो बात ही कुछ और हो जाय। आज हम आपको कुछ ऐसे ही देशी टिप्स बताते हैं,जो रंगों को और अधिक रंगीन तो बनायेंगे ही साथ ही अच्छे स्वास्थ्य को भी बरकरार रखेंगे ..

1.मेहंदी के पाउडर को आंटे के साथ मिला दें अब इसका रंग हरा हो जाएगा और जब आप इसे पानी में मिलायेंगे तो यह थोड़ा संतरे सा रंग ले लेगा और यदि इसमें सूखे गुलमोहर के पत्ते पीस कर मिला दीजिये तो यह हरा रंग छोड़ेगा।

2. दो चम्मच हल्दी का पाउडर लें और इसमें दुगनी मात्रा में बेसन मिला दें ,अब इसमें अमलतास या गेंदे के फूल को पीसकर मिला दें ..इससे आपको पीला रंग मिलेगा। 

3.लाल चन्दन में थोड़ा गुड़हल के फूलों को सुखाकर पीसकर मिला दें हो गया लाल रंग तैयार। 

4.बेर के फूल को सुखाकर पीसकर पानी या आंटा मिला दें इससे आपको नीला रंग मिलेगा। 

5.टेशू या पलाश के फूलों को सुखाकर पीसकर पानी में रातभर छोड़ दें या इसे पानी में उबाल दें इससे आपको केसरिया रंग मिलेगा।

6.चुकंदर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पानी में डूबा दें इसे यदि आप उबालेंगे तो आपको मेग्नेटा कलर मिल जाएगा।

7.कत्थे के चूर्ण को पानी में मिलाकर आप भूरा रंग तैयार कर सकते है। 

8.आंवले को सुखाकर पानी में भिंगोकर रातभर किसी बर्तन में छोड़ दें और अब इसे पानी में मिलाकर आप काला रंग तैयार कर सकते हैं। तो आप इन रंगों से अपनी होली को बनाएं और भी अधिक रंगीन, ये रंग रखेंगे आपके स्वास्थ्य का बेहतर खयाल .. इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-something-to-celebrate-holi-indian-herbal-tips-2948299.html

ये खबर पढ़कर आप उम्र बढऩे का दुख नहीं खुशी मनाएंगे

अक्सर हम 60 साल की उम्र को पार कर जाने पर  यह कहते सुनते हैं ,कि सठिया गए हो। इसका सम्बन्ध शायद पीढिय़ों के अंतर से हो ,या बुजुर्गों के मन: स्थिति से ,लेकिन अब इस लोकोक्ति का प्रयोग करने वाले हो जाएं ,सावधान। कनाडा में हुए एक शोध के अनुसार आप जितने बूढ़े होते जाते हैं, उतने ही बुद्धिमान होते हैं। इस शोध के अनुसार 55 साल की उम्र  के बाद भी बुजुर्ग अपने से  कम उम्र के युवाओं की अपेक्षा निर्णय लेने में अधिक सक्षम होते हैं। है न कमाल की बात, यह रिसर्च पिछले रिसर्च के परिणामों से विपरीत है, जिनके अनुसार उम्र बढऩे के साथ-साथ हमारे मस्तिष्क की कार्यक्षमता भी कम होती जाती है।
इंस्टीट्युट ऑफ  जेरीयाट्रिक्स ऑफ  युनिवर्सिटी  मोंट्रीयल,कनाडा के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये गए शोध के अनुसार , 24 व्यक्ति जिनकी उम्र 18-35 वर्ष के बीच थी ,और 10 बुजुर्ग, जिनकी उम्र 55-75 वर्ष के बीच थी, को अलग-अलग मस्तिष्क की सक्रियता से  सम्बंधित कठिन कार्य दिए गए,तथा उन सभी के न्यूरो इमेजिंग स्केन लिए गए, जिससे से यह साबित हुआ की विद्वता उम्र के साथ आती है। तो आप जितना उम्रदराज होते हैं ,उतने ही विद्वान्  तो किसी ने ठीक ही कहा है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-now-say-were-crazy-2513710.html?LHS-