Friday, June 24, 2011

संघर्ष


जीवन संघर्षों की कहानी है.हर व्यक्ति जो महान या सफल बनता है उसके जीवन में संघर्षों का एक दौर आता है .वैसे भी अस्तित्व के लिए संघर्ष की बात प्रख्यात दार्शनिक डार्विन ने भी की थी.इस कहानी के पात्र शिवशंकर  से एस ..शंकर बनने की कहानी एक आम आदमी से जुडी हुए कहानी है .आशा है आपको पसंद आयेगी.........
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  वर्ष १९५० ,हिमांचल में किशनपुर नामका छोटा सा गाँव जो समुद्र तल से ३५५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित था ,वहां लगभग ३०० परिवारों का एक समूह पर्वतीय जीवन शैली के अनुरूप अपना जीवन गुजर वसर करता थाIब्रिटिश हुकूमत से निजात पाए कुल ३ साल का समय हुआ था I अधिकाँश गावों का सड़क से संपर्क नहीं था,बिजली ना होने के कारण दीये   का ही एक सहारा था Iगाँव में स्कूल तो था पर लगभग १० कम दूर,वहाँ आसपास के ३ गावों के बच्चे पैदल ही पढ़ने आया करते थे Iअस्पताल के नाम पर एक जीर्ण -शीर्ण आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी जहाँ एक वार्ड बॉय ही लोगों के लिए चिकित्सा  का  सहारा थाIगाँव से जिला मुख्यालय पालमपुर लगभग ३० किलोमीटर पैदल था Iलोगों को छोटे -मोटे काम के लिए भी १५ किलोमीटर दूर स्थित तहसील सेलम जाना पड़ता था Iकिशनपुर में सभी जातियों के लोग बड़े ही सौहार्द से रहते थे ,क्योंकि उनके जीवन का स्तर लगभग एक सा ही था I गावों में शिक्षा के नामपर जो स्कूल था उसमें भी केवल कक्षा आठ तक की पढ़ाई थी और शिक्षक केवल दो थे,जिनमे से एक अधिकाँश समय छुट्टी पर ही रहते थे Iगावों के पुरुष एवं महिलाएं सीढीनुमा खेतों में अपने खाने योग्य अनाज लगाकर अपनी जीविका को निर्वाह कर रहे थेI वह परिवार जिसके बच्चे ने आठवीं कक्षा पास कर ली उसके पास दो रास्ते थे या तो फ़ौज में भर्ती हो जाय या फिर किसी के साथ पालमपुर जाकर आगे की  शिक्षा ले पर सभी के लिए यह संभव नहीं था I इसी गाँव में रमाशंकर पंडित का एक परिवार रहता था,उसके तीन लड़के बड़े का नाम हरिशंकर पंडित,बीच वाले का नाम रामशंकर पंडित एवं सबसे छोटे का नाम शिवशंकर पंडित थाI हरिशंकर ने कक्षा आठ तक की पढ़ाई करने के बाद पालमपुर जाकर फ़ौज की भर्ती में सम्मिलित हुआ,तथा उसका चयन भी हो गया,तथा वह परिवार का कमाऊ सदस्य बन गयाIआसपास के परिवारों में रमाशंकर के परिवार कि बड़ी इज्जत होने लगीIलड़का जो सरकारी नौकरी में लग गया था ! धीरे -धीरे समय बीतता गया हरिशंकर ने आगे पढ़ाई फ़ौज के तौर तरीकों से ही की  ,जबकि कृपाशंकर स्कूल से अक्सर इधर -उधर भाग जाता था ,उसकी पढ़ने में रूचि बहुत कम थीIपंडित परिवार होने के कारण रमाशंकर आसपास के गावों में पूजा पाठ कराया करते थे ,इससे परिवार को आर्थिक सहारा मिल जाता था I कृपाशंकर  का अपने पिताजी के साथ पूजा -पाठ में ही अधिक मन लगता था तथा वह बचे समय में खेतों में काम कर अपनी माँ का हाथ बंटाता था Iपूजा -पाठ से अच्छी कमाई होने के कारण रमाशंकर ने अपने बीच वाले बेटे कृपाशंकर को हरिद्वार में आठवी कक्षा के बाद संस्कृत में मध्यमा की पढ़ाई के लिए भेजने चाहा Iपर रामशंकर को यहाँ  कहाँ मंजूर होता वह सातवीं कक्षा को ही उत्तीर्ण नहीं  कर पायाIसमय बीतता गया,रमाशंकर का छोटा पुत्र शिवशंकर धीरे-धीरे बड़ा हो रहा थाIवह अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का बालक था Iगाँव के प्रतिष्ठीत ज्योतिषी पंडित सोमदत्त ने उसकी कुण्डली बनाते वक़्त ही उसके प्रतिभाशाली एवं संपन्न होने की भविष्यवाणी  की  थीIलेकिन घर के लोगों को इसपर विश्वास नहीं था,उनके लिए तो शिवशंकर भी रामशंकर और कृपाशंकर की तरह ही एक सामान्य बालक था Iअब शिवशंकर भी कक्षा सात में पहुँच गया था,तथा कई बार वह अपनी कक्षा में शिक्षक द्वारा गलत पढाये जाने की और इंगित करने लगा था,इससे स्कूल के एक मात्र शिक्षक नवीन शास्त्री अनावश्यक रूप से चिड़ने लगे,और उसे कक्षा सात की परीक्षाओं में सबक सिखाने का ठान बैठे Iशिवशंकर को इस बात का कहाँ एहसास होता वह तो मासूम और भोला जो थाI स्कूल से आने के बाद वह भी कृपाशंकर की तरह ही खेतों में काम कर अपने परिवार का हाथ बंटाता था I हरिशंकर भी अब घर को पैसा भेजने लगा था,जिससे घर की आर्थिक हालत सुधरने लगी थीIएक दिन बारिश का मौसम था गाँव के लोग खेतों में फसल काटने में लगे थी तभी एक बच्चे ने रमाशंकर को शिवशंकर के कक्षा सात में फेल होने की जानकारी दी I शिवशंकर तब जानवरों के लिए चारा लाने गया था,जब घर लौटा तो घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा थाI कृपाशंकर ने शिवशंकर के फेल होने की  खबर सुनायी ,यह खबर तो शिवशंकर के लिए आसमान टूट कर गिरने के समान थी ,उसने सपने में भी फेल होने का नहीं सोचा थाI खैर होनी को कुछ और ही मंजूर था,पिताजी ने अब शिवशंकर को गाँव के ही लड़के प्रदीप के साथ पालमपुर भेज दिया Iप्रदीप और कृपाशंकर साथ-साथ रहने लगे,प्रदीप कक्षा आठ में पढ़ता था जबकि शिवशंकर ने  दुबारा कक्षा सात में प्रवेश लियाIबड़े भाई हरिशंकर को जब इस बात का पता चला तो उसने पिताजी को पत्र लिखा कि आप शिवशंकर कि चिंता ना करें उसका खर्च में वहन करूंगाIधीरे -धीरे शिवशंकर अपनी पढाई करता रहाIरमाशंकर दमे का मरीज था ,एक दिन अचानक उसे सीने में दर्द हुआ और गाँव  के लोग उसे रात  ही डोली में रखकर पालमपुर को लाने लगे पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था ,रमाशंकर रास्ते में ही चल बसे ,अचानक ही आयी  इस विपदा ने सभी को झकझोर दियाI अब हरिशंकर परिवार की जिम्मेदारी आ पडी,अब उसे शिवशंकर के साथ घर को भी पैसे भेजने पड़ते थेI थोड़े ही दिनों बाद हरिशंकर का विवाह संपन्न हुआ,और वह अपनी नव विवाहिता  पत्नी को लेकर चेन्नई चला गया Iसमय बीतता गया शिवशंकर भी अपने कक्षा में अव्वल आने लगा Iथोड़े दिनों बाद गाँव के भाई की भी पास के ही गाँव की लडकी से शादी हो गयी I अब गाँव में कृपाशंकर ,उसके पत्नी एवं माँ ही रहते थेI वो लोग खेती -बाड़ी कर अपना गुजर बसर करते थे,कभी कभी हरिशंकर भी  पैसे भेज देता था ,लेकिन अब उसका भी अपना परिवार था,इसलिये उसे भाई और गाँव दोनों जगह पैसे भेजने में कठिनाई होती थी Iअब शिवशंकर ने अपनी पढ़ाई के साथ- साथ अपने से छोटी  कक्षा के छात्रों  को टयूसन पढ़ाना प्रारंभ किया,जिससे उसका थोड़ा बहुत जेब खर्च निकल जाता था,कभी कभी वह चुपचाप बस स्टेशन पर जाकर लोगों का  सामान  भी   ढो  लेता,उसे किसे भी काम को करने में कठिनाई नहीं होती थी Iइसप्रकार वह अब अपना खर्च स्वयं बहन  कर अपनी पढाई को आगे बढ़ा रहा थाI धीरे धीरे वह आठवीं,नौवीं एवं दसवी कक्षा को सफलतापूर्वक उतीर्ण कर,ग्यारवी कक्षा के पढ़ाई के लिए शिमला आ गयाI तभी शिमला में रोडवेज में क्लर्क क़ी नियुक्ति हेतु विज्ञापन निकला था,जिसमे मासिक ७५ रुपैये का वेतन थाI दोस्तों ने कहा शिवशंकर यह नौकरी कर लो,पर शिवशंकर को यह कहाँ मंजूर था,उसकी मंजिल तो कहीं और थी ! सभी ने कहा बड़े -बड़े ख्वाब देखना छोड़ दे, शिवशंकर ! अपने परिवार क़ी माली हालत तो देख ! बाबू की नौकरी पकड़ ले,इसमें उपरी कमाई  भी होती हैIशिवशंकर ने कहा बाबू नहीं बनना है मुझे!.........क्रमशः 

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