सत्यम एक खूबसूरत सा लड़कापढ़ा लिखा और सभ्य,सदैव माँ बाप के साथ रहा.,अब बड़ा हो गया माता पिता ने सोचा पडोस के गुप्ताजी का लड़का इन्जिनीरिंग की पढ़ाई की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली गया है ,तो क्यों न हम भी दिल्ली ही भेज दें, बच्चा सीधा-साधा आज्ञाकारी कुछ ना बोला,बोलता भी कैसे ! किसी ने पूछा कहाँ उसे बनना क्या है ?चल पडा पिताजी के साथ दिल्ली ,पहली बार घर से निकला था कुछ सहमा-सहमा था, दिल्ली में एक इंजीनीरिंग की कोचिंग में दाखिला लिया,साथ में रहने के लिए मोहन भी मिल गया था, जो किसी और कोचिंग में मेडिकल की तैयारी कर रहा था, अब उसे कोचिंग में एक समस्या आ पडी ,शिक्षक पढ़ाएं कुछ और वो समझे कुछ ,घर आता तो खाने की समस्या,मोहन के साथ मिलकर बनाना पड़ता, वहां मोहन बनाता तो सत्यम बर्तन धोता,सत्यम बनाता तो मोहन बर्तन धोता,क्योंकि खाने का अच्छा होटल जो पास में ना था Iगुप्ताजी का बेटा भी पास के ही एक घर में आराम से पेइंग गेस्ट के रूप मे रहता था I एक दिन सत्यम की तबियत ठीक ना थी और मोहन भी कहीं रिश्तेदार के यहाँ गया था ,अब सत्यम क्या करे ?भूखा ही सो पडा ! थोड़े ही दिनों में कोचिंग में टर्म परीक्षाओं का आयोजन होने वाला था,सत्यम ने भी बड़े मेहनत से तेयारी कर परीक्षा दी, पर अगले दिन अंक सिफर बड़ा परेशान ये क्या हुआ ! अरे सिफर क्यों नहीं आता ,परीक्षा में प्रश्न जो समझ में नहीं आ रहे थे, अब करता क्या कोचिंग में पूरे पैसे भी भर दिए थे ,धीरे धीरे मुख्य परीक्षा का समय निकट आने लगा,दिल की धड़कन बढ़ने लगी ! क्या होगा ? उसने अंतिम वक़्त पर इम्तिहान छोड़ने का फैसला लिया ,पर किसी को बताया नहीं ,तभी खबर आयी माँ की तबियत खराब है, चले आओ वह सीधा दिल्ली से चल पडा अपने घर को,रास्ते में उसे रोहन मिला जो किसी कंपनी में प्रोजेक्ट मेनेजर था,उसने सत्यम से पूछा की वो कहाँ से और क्यों जा रहा है,बातें हुई धीरे- धीरे घनिष्टता बढ़ती गयी और सत्यम ने अपनी आप बीती सुनाई ,रोहन ने उसे समझाया की दोस्त काम वो करो जो दिल को भाये,तुम घर जाओ माँ के पास और उसकी तबियत ठीक होने के बाद उसे बताना की माँ में इंजीनीयर नहीं बन सकता मैं छोटी- मोटी नौकरी के काबिल हूँ ,मुझे छोड़ दो मैं अपना रास्ता खुद तलाश लूंगा,पिताजी नाराज गुप्ताजी का लड़का तो इंजिनीयर बन ही जाएगा और यह लड़का तो गया काम से !एक दिन सत्यम ने माँ की आलमारी से कुछ पैसे निकाले और चल पडा अपनी मंजिल तलाशने I रेलवे स्टेशन पास में ही था सामान्य श्रेणी का टिकट लिया और बैठ गया मुंबई वाली ट्रेन में !अगले सुबह मुंबई पहुंचा तो बस हाथ में पता था रोहन का जो उसे पहले ट्रेन में ही मिला था,दादर स्टेशन पर ट्रेन अगले दिन सुबह पहुँची,तो रोहन के पते की ओर चल पडा ,बड़ी मुश्किल से रोहन का पता तो मिला पर रोहन तो वहां से अहमदाबाद जा चुका था! अब सत्यम क्या करता पैसे भी कम ही थे, पास के ही एक होटल में वेटर का काम करने लगा I इधर माँ पिताजी परेशान सत्यम कहाँ गया ?दिल्ली भी फ़ोन लगाया पर कुछ पता न चल पाया.Iकुछ दिनों के बाद सत्यम ने पिताजी को फ़ोन किया की मैं ठीक हूँ और अपनी मंजिल तलाश रहा हूँ I.पिताजी ने कहा बेटा तू घर आजा तुझे इंजिनीयर नहीं बनना है तो मत बन लेकिन घर आ जा ..सत्यम ने कहा पिताजी आप मेरी चिंता ना करो में ठीक हूँ और जल्द आउंगाI पास में ही एक मार्शल आर्ट केंद्र था जहां लोग काम के बाद फुर्सत के क्षणों में मनोरंजन के लिए जाया करते थे, सत्यम ने भी कुछ पैसे बचा कर वहां प्रवेश ले लिया ,एक - दो दिन बाद ही केंद्र के मास्टर ट्रेनर ने उसकी फुर्ती देखते हुए उसे इसे अपना लक्ष्य बनानेको कहा Iकुछ दिनों बाद सत्यम उस इलाके का जाना -माना मार्शल आर्ट एक्सपर्ट बन गया I.अब उसने होटल की नौकरी छोड़ दी और खुद मास्टर ट्रेनर बन गया Iपिताजी-माताजी से बीच -बीच में संपर्क होता था ,पर उसने अपने बारे में कुछ ख़ास उन्हें नहीं बताया Iआस पास के लोग पूछते खासकर गुप्ताजी जिनका लड़का इंजिनीयर की तैयारी करते -करते अपने पिताजी की परचून की दुकान सभालने लगा थाIअब क्या जवाब देते उन्हें खुद जो पता नहीं था !थोड़े दिन बाद सत्यम घर आया,माँ-पिताजी उसे पहचान ही नहीं पाए क्योंकि उसका शरीर बदल चुका था,उसने खुद के सिडनी स्थित किसी हेल्थ सेंटर में मास्टर ट्रेनर बने की खबर जो सुनाई ,पिताजी खुश, माँ भी खुश सत्यम ने खुद की मंजिल जो पा ली थी !