आज हम अपनेआप को एक्सपेरिमेंटों से घिरा पाते हैं, आज आयी एक रिसर्च कल मानी जायेगी या नहीं कही नहीं जा सकती है I यह शायद हमारी आधुनिक सोच हो सकती है, लेकिन यह सोच एक अधूरी सोच है Iआज 'एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी' के पैमानों पर परीक्षित परिमाणों को ही सत्य माना जाता है ,आप शायद जानते होंगे क़ि सन १९०५ में आइन्स्टाइन ने “थ्योरी आफ रीलेटीविटी” पर अपना पहला शोध पत्र प्रस्तुत किया था और इस सिद्धांत को कुछ वर्षों में ही ’एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों पर स्वीकृति मिल गयी थी और E=MC SQUARE एक अटल सत्य के रूप में स्थापित हुआ था I लेकिन आज यह थ्योरी भी फेल हो चुकी है ,मुझे लगता है क़ि आज के विज्ञान की दिशा मानव की व्यक्तिगत चेतना को शून्य करने की है, अगर ऐसा नहीं होता ,तो मानव अपने द्वारा ही बनाए गए विनाशकारी चक्रों में क्यूँ फंसा हुआ है ?सामरिक संहार के लिए बनाए गए हथियार और पर्यावरण को नष्ट कर हासिल की गयी भौतिकता इसके उदाहरण नहीं तो और क्या हैं ?शायद आधुनिक विज्ञान आइन्स्टाइन द्वारा अंतिम समय में कहे गए उन शब्दों को भूल गया है ..”I am not interested in spectrum of any element,I want to know how got things ”.उनकी वेदना उनके द्वारा कहे गए इन शब्दों से और भी अधिक परिलक्षित होती है ..”The Destiny of Humanity is not written on Stars .It is here on the Earth Planet..” यह बात साबित करती है, क़ि आधुनिक वैज्ञानिकों में सम्मानित आइन्स्टाइन भी मानव चेतना को लेकर उद्वेलित थे I ऐसा ही कुछ हाल ,विकसित आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का भी है, जिसके उपाय केवल और केवल बाह्य शरीर के लिए ही कारगर सिद्ध हो रहे हैं ,जो मनुष्य क़ी मूल चेतना को परिष्कृत करने से कोसों दूर हैं I वैदिक संस्कृति और उसी का उपवेद, आयुर्वेद मनुष्य क़ी चेतना को परिष्कृत करने का बड़ा साधन है ,क्योंकि इसमें वर्णित तथ्य महज ‘एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों पर सिद्ध नहीं किये हुए हैं ,अपितु शरीर के अन्दर होनेवाली अनुभूतियों पर आधारित हैं, जिसे आधुनिक विज्ञान क़ी बाह्य जगत वाली सोच कभी नहीं समझ सकती है I आयुर्वेद में पूर्ण स्वास्थ्य के लिए आहार,निद्रा और ब्रह्मचर्य को तीन मुख्य स्तम्भ माना गया है और इसको प्राप्त करने के उपाय पूर्णतया निर्दोष हैं, जबकि आधुनिक प्रायोगिक विज्ञान में आहार का सिद्धांत महज बाह्य शरीर को ध्यान में रखकर है और निद्रा के लिए दी जानेवाले औषधियां मनुष्य के जीने की इच्छा को समाप्त करती चली जाती हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो विकसित देशों में बढ़ती आत्महत्या के पीछे इन औषधियों का सेवन एक बड़ा कारण न होता ! ब्रह्मचर्य के बारे में भी आधुनिक विज्ञान क़ी सोच हमसे कुछ अलग है उनके अनुसार कामतृप्ति महज मानसिक तनावों को दूर करने का साधन है I इन्ही कारणों से उन्हें योग के अभ्यास में भी महज सेक्स बढ़ाना नजर आता है I जबकि हमारे सिद्धांतों में ब्रह्मचर्य को महान बनने का साधन माना गया है‘उर्ध्वरेता भवेत यस्तु सहदेवो न तु मानुषः !’ हाँ काम से पूर्ण विरत रहने पर भी वाजीकरण का सेवन करना निर्दिष्ट है, यही कारण है, क़ि आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान में सामान्य मानव को भी वाजीकरण औषधियों का सेवन करते हुए इन्द्रिय निग्रह करना बताया है Iआधुनिक विज्ञान में मन और आत्मा का कोई सिद्धांत विशेष नहीं है, जबकि आयुर्वेद आत्मा और इन्द्रिय क़ी प्रसन्नता को स्वास्थ्य के परिभाषा क़ी अंतिम स्थिति मानता है I मन और आत्मा क़ी स्वच्छता मानव् शरीर को धर्मों के पार ले जाती है और मृत्यु के साथ मनुष्य उस चैतन्य तत्व में विलीन हो जाता है,जहां उसे इस शरीर के साथ सम्पूर्ण जगत एक बूँद के समान प्रतीत होने लगता है I यही कारण है, क़ि विश्व के सभी लोकोत्तर मानव आचार्य शंकर,बुद्ध .महावीरएवं प्रभु इशु मसीह अपने जीवन काल में ही संतुष्ट और मुक्त थे तथा म्रत्यु के भय से रहित थे I मुझे लगता है ,धीरे-धीरे ही सही आधुनिक पाश्चात्य सोच में परिवर्तन प्रारम्भ हो रहा है और वह दिन दूर नहीं जब एक्सपेरिमेंट का स्थान एक्सपेरीयंस लेगा …!!
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Tuesday, March 6, 2012
ज्यादा पानी पीने वालों के लिए एक खास खबर....पढ़ेंगे तो हैरान रह जाएंगे!
आप शायद जानते होंगे की हमारे शरीर का 66 प्रतिशत भाग पानी से निर्मित है। पानी हमारे शरीर में खून के माध्यम से,कोशिकाओं के द्रव्य के रूप में और दो कोशिकाओं के मध्य के अवकाश के बीच दौड़ता रहता है। हर क्षण पानी हमारे शरीर से मल-मूत्र एवं छोड़ी गयी सांस के द्वारा बाहर निकलता है। हाँ यह बात सत्य है, कि इनकी कमी को पूरा किया जाना आवश्यक है, पर यह भी एक सत्य है, कि अत्यधिक मात्रा में पानी लेना भी खतरनाक हो सकता है, आप यह जान कर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि यह मौत का कारण भी बन सकता है।
अमेरिका के केलीफोर्निया के एक रेडियो स्टेशन में पानी पीने की हुई प्रतियोगिता- में एक 28 वर्षीय महिला की मौत अत्यधिक पानी पीने से हुए थी। उस महिला ने तीन घंटे में छह लीटर से अधिक पानी पी लिया था और उसे अत्यधिक उल्टी एवं सरदर्द जैसे लक्षणों के कारण गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया,जहां उसकी मौत हो गई। वर्ष 2005 में भी ठीक ऐसा ही एक वाकया केलीफोर्नीया स्टेट यूनिवर्सीटी में 21 वर्ष के एक पुरुष के साथ हुआ।
जिसकी मौत सर्द बेसमेंट में लगातार नृत्य करने के कारण अधिक पसीना बहाने के कारण पानी की हुई कमी को पूरा करने के लिए अधिक पानी पीने से हुई। इतना ही नहीं वर्ष 2005 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन में प्रकाशित एक शोध से यह बात साबित हुई है, कि मेराथन दौड़ में भाग लेने वाले हर छह में से एक धावक अधिक पानी पीने से रक्त के अधिक डायल्युट हो जाने से हाइपोनेट्रीमीया के शिकार हो जाते हैं। यदि आप जरूरत से ज्यादा पानी पीते हैं, तो यह आपकी किडनी को अतिरिक्त पानी के दवाब से शरीर को मुक्त करने के लिए फ्लश नहीं कर पाने के कारण शरीर में पानी के जमाव का कारण बन जाता है।
यह पानी उस स्थान में जाने लगता है। जहां नमक और अन्य घुलनशील पदार्थों क़ी सांद्रता अधिक होती है।यह खून से होते हुए कोशिकाओं के अन्दर घुस जाता है।कोशिकाएं इस अतिरिक्त पानी के आ जाने के कारण गुब्बारे की तरह फूल जाती हैं और एक सीमा तक फूलते-फूलते फट कर नष्ट हो जाती हैं। हां यह बात सत्य है, कि हर कोशिका की इसे समायोजित कर फूलने के क्षमता अलग-अलग होती है, इनमें मांसपेशियों की कोशिकाएं अधिक फूल सकती हैं। जबकि मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं टाईट-पैक होने के कारण कम फूल पाती हैं ,अत: इनके फटने की संभावना अधिक होती है और यही मौत का कारण बन जाती है।अत: यह बात बिल्कुल सत्य से परे है ,कि खूब पानी पीयो और स्वस्थ रहो ..।
कुछ साल पहले डार्टमोथ मेडीकल स्कूल के वैज्ञानिक हेल्ज वालटीन ने एक सामान्य व्यक्ति को दिन में कितना पानी पीना चाहिए इस पर शोध किया और दिन में आठ 3 आठ यानी आठ औंस आठ ग्लास पानी पीने के सिद्धांत को परखा, लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि वे इसकी पुष्टि नहीं कर पाए ,क्योंकि यह व्यक्ति की सक्रियता,वातावरण आदि के अनुसार बदल जाता है। उनका यह अध्ययन वर्ष 2002 के जर्नल ऑफ फिजीयोलोजी में प्रकाशित हुआ था। अत: यह बात तो तय है ,कि़ यदि आप ज्यादा पानी पीएंगे तो यह निश्चित तौर पर खतरनाक हो सकता है, वैसे भी हमारे ऋषि-मुनियों ने जल को पंचमहाभूत में से एक माना है और किसी भी एक महाभूत क़ी अधिक वृद्धि को इस पिंड शरीर के लिए खतरनाक माना है, जो इसकी स्वयं पुष्टी करता है तो आप पानी जरूर पीएं पर जरा संभल कर ......क्योंकि - अति सर्वत्र वर्जयते- !! इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-for-those-drinking-more-water-will-be-surprised-to-learn-a-little-news-2911277.html
अमेरिका के केलीफोर्निया के एक रेडियो स्टेशन में पानी पीने की हुई प्रतियोगिता- में एक 28 वर्षीय महिला की मौत अत्यधिक पानी पीने से हुए थी। उस महिला ने तीन घंटे में छह लीटर से अधिक पानी पी लिया था और उसे अत्यधिक उल्टी एवं सरदर्द जैसे लक्षणों के कारण गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया,जहां उसकी मौत हो गई। वर्ष 2005 में भी ठीक ऐसा ही एक वाकया केलीफोर्नीया स्टेट यूनिवर्सीटी में 21 वर्ष के एक पुरुष के साथ हुआ।
जिसकी मौत सर्द बेसमेंट में लगातार नृत्य करने के कारण अधिक पसीना बहाने के कारण पानी की हुई कमी को पूरा करने के लिए अधिक पानी पीने से हुई। इतना ही नहीं वर्ष 2005 में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडीसिन में प्रकाशित एक शोध से यह बात साबित हुई है, कि मेराथन दौड़ में भाग लेने वाले हर छह में से एक धावक अधिक पानी पीने से रक्त के अधिक डायल्युट हो जाने से हाइपोनेट्रीमीया के शिकार हो जाते हैं। यदि आप जरूरत से ज्यादा पानी पीते हैं, तो यह आपकी किडनी को अतिरिक्त पानी के दवाब से शरीर को मुक्त करने के लिए फ्लश नहीं कर पाने के कारण शरीर में पानी के जमाव का कारण बन जाता है।
यह पानी उस स्थान में जाने लगता है। जहां नमक और अन्य घुलनशील पदार्थों क़ी सांद्रता अधिक होती है।यह खून से होते हुए कोशिकाओं के अन्दर घुस जाता है।कोशिकाएं इस अतिरिक्त पानी के आ जाने के कारण गुब्बारे की तरह फूल जाती हैं और एक सीमा तक फूलते-फूलते फट कर नष्ट हो जाती हैं। हां यह बात सत्य है, कि हर कोशिका की इसे समायोजित कर फूलने के क्षमता अलग-अलग होती है, इनमें मांसपेशियों की कोशिकाएं अधिक फूल सकती हैं। जबकि मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं टाईट-पैक होने के कारण कम फूल पाती हैं ,अत: इनके फटने की संभावना अधिक होती है और यही मौत का कारण बन जाती है।अत: यह बात बिल्कुल सत्य से परे है ,कि खूब पानी पीयो और स्वस्थ रहो ..।
कुछ साल पहले डार्टमोथ मेडीकल स्कूल के वैज्ञानिक हेल्ज वालटीन ने एक सामान्य व्यक्ति को दिन में कितना पानी पीना चाहिए इस पर शोध किया और दिन में आठ 3 आठ यानी आठ औंस आठ ग्लास पानी पीने के सिद्धांत को परखा, लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि वे इसकी पुष्टि नहीं कर पाए ,क्योंकि यह व्यक्ति की सक्रियता,वातावरण आदि के अनुसार बदल जाता है। उनका यह अध्ययन वर्ष 2002 के जर्नल ऑफ फिजीयोलोजी में प्रकाशित हुआ था। अत: यह बात तो तय है ,कि़ यदि आप ज्यादा पानी पीएंगे तो यह निश्चित तौर पर खतरनाक हो सकता है, वैसे भी हमारे ऋषि-मुनियों ने जल को पंचमहाभूत में से एक माना है और किसी भी एक महाभूत क़ी अधिक वृद्धि को इस पिंड शरीर के लिए खतरनाक माना है, जो इसकी स्वयं पुष्टी करता है तो आप पानी जरूर पीएं पर जरा संभल कर ......क्योंकि - अति सर्वत्र वर्जयते- !! इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-for-those-drinking-more-water-will-be-surprised-to-learn-a-little-news-2911277.html
इस एक चीज पर काबू कर लिया तो बीमारियां आपको छू भी नहीं पाएंगी
भूख यदि जीवन में न हो तो कोई काम न हो,पापी पेट की भूख के लिए जीव न जाने क्या क्या करता है। भूख वासना की हो, या हो धन अर्जन की, नियंत्रण में हो तो बड़े बड़े काम करवा डालती है ,पर भूख अगर काबू से बाहर हो तो बर्बादी का मार्ग भी प्रशस्त करती है। ऐसे ही हमारे शरीर में भी अग्नि का व्यापार भूख को उत्पन्न करता है और यदि अग्नि तीक्ष्ण होकर अनियंत्रित हो तो शरीर को भस्म करने वाला रोग भस्मक पीछा नहीं छोड़ता है।
आयुर्वेद में पिंड को ब्रह्माण्ड से जोड़ा गया है, तो जैसा हम बाहर की दुनिया में देखते हैं वैसा ही कुछ शरीर के अन्दर भी होता है ...स्वस्थ रहने के लिए हमें अपने भूख पर नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है, जिसे उपवास नाम दिया गया है, इससे शरीर में लघुता (हल्कापन ) आता है और ज्वर जैसे रोगों में इसे चिकित्सार्थ बताया है ,जिन बातों को सदियों पूर्व हमारे आचार्यों ,ऋषि ,मुनियों ने आयुर्वेद के माध्यम से दुनिया के समक्ष रखा था।
आज वही सारी बातें दुनिया के वैज्ञानिक अपनी शोधों के माध्यम से पुष्ट कर रहे हैं, अभी हाल ही में कैंसर के रोगियों में उपवास के द्वारा टयूमर बनाने वाली कोशिकाओं को कमजोर करने वाला पाया गया है,साथ ही यह भी पाया गया है इससे कैंसर में दी जा रही कीमोथेरेपी भी अधिक कामयाब होती है,यह बात भले ही अभी प्रारम्भिक तौर पर चूहों पर किये गए शोध में सामने आयी हो पर देर सवेर इसकी पुष्टि मानव शरीर में होनी तय ही है .....!! इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें ..http://religion.bhaskar.com/article/yoga-the-user-has-control-over-one-thing-you-touch-will-not-be-diseases-2870558.html
आयुर्वेद में पिंड को ब्रह्माण्ड से जोड़ा गया है, तो जैसा हम बाहर की दुनिया में देखते हैं वैसा ही कुछ शरीर के अन्दर भी होता है ...स्वस्थ रहने के लिए हमें अपने भूख पर नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है, जिसे उपवास नाम दिया गया है, इससे शरीर में लघुता (हल्कापन ) आता है और ज्वर जैसे रोगों में इसे चिकित्सार्थ बताया है ,जिन बातों को सदियों पूर्व हमारे आचार्यों ,ऋषि ,मुनियों ने आयुर्वेद के माध्यम से दुनिया के समक्ष रखा था।
आज वही सारी बातें दुनिया के वैज्ञानिक अपनी शोधों के माध्यम से पुष्ट कर रहे हैं, अभी हाल ही में कैंसर के रोगियों में उपवास के द्वारा टयूमर बनाने वाली कोशिकाओं को कमजोर करने वाला पाया गया है,साथ ही यह भी पाया गया है इससे कैंसर में दी जा रही कीमोथेरेपी भी अधिक कामयाब होती है,यह बात भले ही अभी प्रारम्भिक तौर पर चूहों पर किये गए शोध में सामने आयी हो पर देर सवेर इसकी पुष्टि मानव शरीर में होनी तय ही है .....!! इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें ..http://religion.bhaskar.com/article/yoga-the-user-has-control-over-one-thing-you-touch-will-not-be-diseases-2870558.html
पानी पीएं...मगर कितना? ये पता चल जाएगा इसे पढऩे के बाद
जल ही जीवन है यह बात अक्षरश : सत्य है। सृष्टी क़ी उत्पत्ति से लेकर आज तक जल का महाभूत के रूप में प्रमुख स्थान रहा है। सृष्टि क़ी उत्पत्ति क़ी प्रारम्भिक अवस्था में जलीभूत होना माना गया है। आज भी जल ब्रह्माण्ड में जीवन की उत्पत्ति की संभावनाओं क़ी तलाश को मजबूती देता है ..। पिंड शरीर और ब्रह्माण्ड में समानता को आयुर्वेद भी मानता रहा है। इसका प्रमाण कोशिकाओं के मध्य पाए जानेवाले द्रव्य क़ी रसायनिक रूप से समंदर के खारे पानी के समान होना स्वयंसिद्ध है। अत: जल का हमारे शरीर के लिए भी अपना महत्व है, जिसे पूर्व के प्रसंग में उदधृत किया गया। परन्तु शरीर के लिए इसकी आवश्यकता कितनी हो इस पर प्रकाश डालना भी आवश्यक हो जाता है ..।
इसमें कोई शक नहीं कि उचित मात्रा में जल का सेवन निरोगी रहने का मूल मंत्र है। हाँ पर अहम् सवाल यह है, कि एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में कितना पानी पीना चाहिए..? कुछ वैज्ञानिकों का मानना है, कि औसतन एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में आठ ग्लास पानी पीना चाहिए परन्तु विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह व्यक्ति विशेष के लिए थोड़ा बहुत अलग हो सकता है। ऐसा देखा जाता है,कि एक वयस्क औसतन आठ से बारह कप की मात्रा में शरीर से जलीयांश का उत्सर्जन करते हैं और खासकर गर्मी की दिनों में एवं खिलाडिय़ों में यह मात्रा कुछ अधिक हो सकती है। अत: हमें खपत के अनुपात में ही शरीर को हाइड्रेट करना चाहिए ज्हाँ कुछ बातों का पानी पीने के दौरान आप ध्यान अवश्य रखें :-
- आपको जितनी प्यास लगी हो उससे लगभग दुगना पानी एक बार में पीएं।
- गर्मियों के दिनों में डीहाईडरेशन से बचने के लिए बीच बीच में जलीय अंश अवश्य लें।
- पूरे दिन में लगभग आठ ग्लास पानी अवश्य ही पीएं।
- प्रति बीस पाउंड वजन के हिसाब से एक कप पानी ,यानी 150 पाउंड वजन का व्यक्ति जो व्यायाम नहीं करता है वह गर्मी के दिनों में कम से कम साढे सात कप पानी तो अवश्य ही पीएं।
कुछ फलों के रस एवं शीतल पेय पदार्थ भी जलीय अंश की पूर्ति तो करते ही हैं, लेकिन काफी या चाय थोड़ा मूत्र पर प्रभाव भी दर्शाते हैं और यह ठीक भी है। पर ध्यान रहे कि आपके मूत्र का रंग साफ हो .. अगर यह पीला आने लगे तो आप मानें कि शरीर में पानी की कमी हो गयी है और शरीर इसे संरक्षित कर रहा है। अगर आप अपने शरीर की पानी की आवश्यकता को जानना चाहते है, तो आपके लिए एक टिप है। आप एक जग में आठ ग्लास पानी लें और इससे चौबीस घंटे में जितना हो सके पीएं और साथ ही अपने पेशाब के द्वारा उत्सर्जित की गयी मात्रा को भी अनुमानित करें। इससे आपको आपके शरीर के लिए औसतन आवश्यक पानी की मात्रा का पता चल जाएगा। जल एक शक्तिदायक औषधि है और औषधि का उपयोग हमेशा सावधानी के साथ करना चाहिए। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-drink-water-2943637.html
इसमें कोई शक नहीं कि उचित मात्रा में जल का सेवन निरोगी रहने का मूल मंत्र है। हाँ पर अहम् सवाल यह है, कि एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में कितना पानी पीना चाहिए..? कुछ वैज्ञानिकों का मानना है, कि औसतन एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन भर में आठ ग्लास पानी पीना चाहिए परन्तु विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह व्यक्ति विशेष के लिए थोड़ा बहुत अलग हो सकता है। ऐसा देखा जाता है,कि एक वयस्क औसतन आठ से बारह कप की मात्रा में शरीर से जलीयांश का उत्सर्जन करते हैं और खासकर गर्मी की दिनों में एवं खिलाडिय़ों में यह मात्रा कुछ अधिक हो सकती है। अत: हमें खपत के अनुपात में ही शरीर को हाइड्रेट करना चाहिए ज्हाँ कुछ बातों का पानी पीने के दौरान आप ध्यान अवश्य रखें :-
- आपको जितनी प्यास लगी हो उससे लगभग दुगना पानी एक बार में पीएं।
- गर्मियों के दिनों में डीहाईडरेशन से बचने के लिए बीच बीच में जलीय अंश अवश्य लें।
- पूरे दिन में लगभग आठ ग्लास पानी अवश्य ही पीएं।
- प्रति बीस पाउंड वजन के हिसाब से एक कप पानी ,यानी 150 पाउंड वजन का व्यक्ति जो व्यायाम नहीं करता है वह गर्मी के दिनों में कम से कम साढे सात कप पानी तो अवश्य ही पीएं।
कुछ फलों के रस एवं शीतल पेय पदार्थ भी जलीय अंश की पूर्ति तो करते ही हैं, लेकिन काफी या चाय थोड़ा मूत्र पर प्रभाव भी दर्शाते हैं और यह ठीक भी है। पर ध्यान रहे कि आपके मूत्र का रंग साफ हो .. अगर यह पीला आने लगे तो आप मानें कि शरीर में पानी की कमी हो गयी है और शरीर इसे संरक्षित कर रहा है। अगर आप अपने शरीर की पानी की आवश्यकता को जानना चाहते है, तो आपके लिए एक टिप है। आप एक जग में आठ ग्लास पानी लें और इससे चौबीस घंटे में जितना हो सके पीएं और साथ ही अपने पेशाब के द्वारा उत्सर्जित की गयी मात्रा को भी अनुमानित करें। इससे आपको आपके शरीर के लिए औसतन आवश्यक पानी की मात्रा का पता चल जाएगा। जल एक शक्तिदायक औषधि है और औषधि का उपयोग हमेशा सावधानी के साथ करना चाहिए। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-drink-water-2943637.html
होली मनाने के हर्बल टिप्स....खुद ऐसे घर पर बनाएं आयुर्वेदिक हेल्दी कलर!!
हमारे जीवन में रंगों का अपना महत्व है,रंगीन मौसम ,रंगीन मिजाज,सतरंगी छटा और न जाने कितनी ही उपमाओं से हमने अपने जीवन को रंगीन बनाया है। शायद होली के रंग भी कुछ ऐसा ही सन्देश देते हैं होली पर रंगों का प्रयोग अक्सर होता है पर यदि इसमें कुछ संस्कार कर दिए जाएँ, तो बात ही कुछ और हो जाय। आज हम आपको कुछ ऐसे ही देशी टिप्स बताते हैं,जो रंगों को और अधिक रंगीन तो बनायेंगे ही साथ ही अच्छे स्वास्थ्य को भी बरकरार रखेंगे ..
1.मेहंदी के पाउडर को आंटे के साथ मिला दें अब इसका रंग हरा हो जाएगा और जब आप इसे पानी में मिलायेंगे तो यह थोड़ा संतरे सा रंग ले लेगा और यदि इसमें सूखे गुलमोहर के पत्ते पीस कर मिला दीजिये तो यह हरा रंग छोड़ेगा।
2. दो चम्मच हल्दी का पाउडर लें और इसमें दुगनी मात्रा में बेसन मिला दें ,अब इसमें अमलतास या गेंदे के फूल को पीसकर मिला दें ..इससे आपको पीला रंग मिलेगा।
3.लाल चन्दन में थोड़ा गुड़हल के फूलों को सुखाकर पीसकर मिला दें हो गया लाल रंग तैयार।
4.बेर के फूल को सुखाकर पीसकर पानी या आंटा मिला दें इससे आपको नीला रंग मिलेगा।
5.टेशू या पलाश के फूलों को सुखाकर पीसकर पानी में रातभर छोड़ दें या इसे पानी में उबाल दें इससे आपको केसरिया रंग मिलेगा।
6.चुकंदर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पानी में डूबा दें इसे यदि आप उबालेंगे तो आपको मेग्नेटा कलर मिल जाएगा।
7.कत्थे के चूर्ण को पानी में मिलाकर आप भूरा रंग तैयार कर सकते है।
8.आंवले को सुखाकर पानी में भिंगोकर रातभर किसी बर्तन में छोड़ दें और अब इसे पानी में मिलाकर आप काला रंग तैयार कर सकते हैं। तो आप इन रंगों से अपनी होली को बनाएं और भी अधिक रंगीन, ये रंग रखेंगे आपके स्वास्थ्य का बेहतर खयाल .. इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-something-to-celebrate-holi-indian-herbal-tips-2948299.html
1.मेहंदी के पाउडर को आंटे के साथ मिला दें अब इसका रंग हरा हो जाएगा और जब आप इसे पानी में मिलायेंगे तो यह थोड़ा संतरे सा रंग ले लेगा और यदि इसमें सूखे गुलमोहर के पत्ते पीस कर मिला दीजिये तो यह हरा रंग छोड़ेगा।
2. दो चम्मच हल्दी का पाउडर लें और इसमें दुगनी मात्रा में बेसन मिला दें ,अब इसमें अमलतास या गेंदे के फूल को पीसकर मिला दें ..इससे आपको पीला रंग मिलेगा।
3.लाल चन्दन में थोड़ा गुड़हल के फूलों को सुखाकर पीसकर मिला दें हो गया लाल रंग तैयार।
4.बेर के फूल को सुखाकर पीसकर पानी या आंटा मिला दें इससे आपको नीला रंग मिलेगा।
5.टेशू या पलाश के फूलों को सुखाकर पीसकर पानी में रातभर छोड़ दें या इसे पानी में उबाल दें इससे आपको केसरिया रंग मिलेगा।
6.चुकंदर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पानी में डूबा दें इसे यदि आप उबालेंगे तो आपको मेग्नेटा कलर मिल जाएगा।
7.कत्थे के चूर्ण को पानी में मिलाकर आप भूरा रंग तैयार कर सकते है।
8.आंवले को सुखाकर पानी में भिंगोकर रातभर किसी बर्तन में छोड़ दें और अब इसे पानी में मिलाकर आप काला रंग तैयार कर सकते हैं। तो आप इन रंगों से अपनी होली को बनाएं और भी अधिक रंगीन, ये रंग रखेंगे आपके स्वास्थ्य का बेहतर खयाल .. इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-something-to-celebrate-holi-indian-herbal-tips-2948299.html
ये खबर पढ़कर आप उम्र बढऩे का दुख नहीं खुशी मनाएंगे
अक्सर हम 60 साल की उम्र को पार कर जाने पर यह कहते सुनते हैं ,कि सठिया गए हो। इसका सम्बन्ध शायद पीढिय़ों के अंतर से हो ,या बुजुर्गों के मन: स्थिति से ,लेकिन अब इस लोकोक्ति का प्रयोग करने वाले हो जाएं ,सावधान। कनाडा में हुए एक शोध के अनुसार आप जितने बूढ़े होते जाते हैं, उतने ही बुद्धिमान होते हैं। इस शोध के अनुसार 55 साल की उम्र के बाद भी बुजुर्ग अपने से कम उम्र के युवाओं की अपेक्षा निर्णय लेने में अधिक सक्षम होते हैं। है न कमाल की बात, यह रिसर्च पिछले रिसर्च के परिणामों से विपरीत है, जिनके अनुसार उम्र बढऩे के साथ-साथ हमारे मस्तिष्क की कार्यक्षमता भी कम होती जाती है।
इंस्टीट्युट ऑफ जेरीयाट्रिक्स ऑफ युनिवर्सिटी मोंट्रीयल,कनाडा के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये गए शोध के अनुसार , 24 व्यक्ति जिनकी उम्र 18-35 वर्ष के बीच थी ,और 10 बुजुर्ग, जिनकी उम्र 55-75 वर्ष के बीच थी, को अलग-अलग मस्तिष्क की सक्रियता से सम्बंधित कठिन कार्य दिए गए,तथा उन सभी के न्यूरो इमेजिंग स्केन लिए गए, जिससे से यह साबित हुआ की विद्वता उम्र के साथ आती है। तो आप जितना उम्रदराज होते हैं ,उतने ही विद्वान् तो किसी ने ठीक ही कहा है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-now-say-were-crazy-2513710.html?LHS-
इंस्टीट्युट ऑफ जेरीयाट्रिक्स ऑफ युनिवर्सिटी मोंट्रीयल,कनाडा के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किये गए शोध के अनुसार , 24 व्यक्ति जिनकी उम्र 18-35 वर्ष के बीच थी ,और 10 बुजुर्ग, जिनकी उम्र 55-75 वर्ष के बीच थी, को अलग-अलग मस्तिष्क की सक्रियता से सम्बंधित कठिन कार्य दिए गए,तथा उन सभी के न्यूरो इमेजिंग स्केन लिए गए, जिससे से यह साबित हुआ की विद्वता उम्र के साथ आती है। तो आप जितना उम्रदराज होते हैं ,उतने ही विद्वान् तो किसी ने ठीक ही कहा है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-now-say-were-crazy-2513710.html?LHS-
Monday, November 28, 2011
बाप रे बाप इतनी बीमारियों की दुश्मन है ये लौकी!
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बारे में एक एडवाइज़री जारी की है जिसके मुताबिक़, लौकी का जूस पीने से पहले इसे चख लें। अगर लौकी का जूस कड़वा लगे तो इसे न पिएं। लौकी के जूस के बारे में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने एक जांच की थी। इसके आधार पर यह जारी किया गया है। यह मुद्दा काफी गर्मा गया है। बाबा रामदेव ने कहा है कि स्वस्थ लौकी का जूस पीने में कोई परेशानी नहीं है।
हमारे देश मे कुछ सब्जियां लोग बड़े ही चाव से खाते और खिलाते हैं ,अर्थात खुद तो फायदे लेते ही हैं ,औरों के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखते हैं। अगर आए कोई मेहमान आपके घर में, तो आप इसकी सब्जी बनाना न भूलें, बड़ा सरल नाम है ,लौकी। अंग्रेजी में बाटल गार्ड के नाम से प्रचलित इसके बारे में कहा जाता है, कि मनुष्य द्वारा सबसे पहले उगाई गयी सब्जी लौकी ही थी।
प्रोटीन,फाइबर ,मिनरल,कार्बोहाइड्रेट से भरपूर इसके औषधीय गुणों का बखान हम आपको सरलता से बतलाते हैं -
-इसे उबाल कर कम मसालों के साथ सब्जी बनाकर खाने पर यह मूत्रल (डायूरेटीक), तनावमुक्त करनेवाली (सेडेटिव) और पित्त को बाहर निकालनेवाली औषधि है।
-अगर इसका जूस निकालकर नींबू के रस में मिलाकर एक गिलास की मात्रा में सुबह सुबह पीने से यह प्राकृतिक एल्कलाएजर का काम करता है ,और कैसी भी पेशाब की जलन चंद पलों में ठीक हो जाती है। -अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलकर पिला दिया जाय तो यह प्राकृतिक जीवन रक्षक घोल बन जाता है।
-इसे उबाल कर कम मसालों के साथ सब्जी बनाकर खाने पर यह मूत्रल (डायूरेटीक), तनावमुक्त करनेवाली (सेडेटिव) और पित्त को बाहर निकालनेवाली औषधि है।
-अगर इसका जूस निकालकर नींबू के रस में मिलाकर एक गिलास की मात्रा में सुबह सुबह पीने से यह प्राकृतिक एल्कलाएजर का काम करता है ,और कैसी भी पेशाब की जलन चंद पलों में ठीक हो जाती है। -अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलकर पिला दिया जाय तो यह प्राकृतिक जीवन रक्षक घोल बन जाता है।
-लौकी के रस को सीसम के तेल के साथ मिलाकर तलवों पर हल्की मालिश सुखपूर्वक नींद लाती है। -लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है। -अगर आप एसिडीटी,पेट क़ी बीमारियों एवं अल्सर से हों परेशान, तो न घबराएं बस लौकी का रस है इसका समाधान। - केवल पर्याप्त मात्रा में लौकी क़ी सब्जी का सेवन पुराने से पुराने कब्ज को भी दूर कर देता है। तो ऐसी लौकी ,जिसके औषधीय प्रयोग के बाद भी संगीत प्रेमियों द्वारा वाद्ययंत्र के रूप में और साधुओं द्वारा कमंडल के रूप में किया जानेवाला प्रयोग ,इसकी महत्ता का एहसास दिलाते है। तो लौकी इस नाम क़ी सब्जी को इसके नाम से हल्का न समझें, इसके गुण बड़े भारी हैं ,लेकिन शरीर पर प्रभाव बड़ा ही हल्का और सुखदाई है।इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-assumed-all-the-diseases-specific-drug-muleti-2513902.html
वैज्ञानिकों ने भी मान लिया मुलेठी है इन सारी बीमारियों की अचूक दवा
आयुर्वेद जिसके गुणों का बखान सदियों से करता आ रहा है ,अब वैज्ञानिक भी उसके गुणों के मुरीद हो चुकें हैं ,जानना चाहेंगे आप उसका नाम ,जी हां मुलेठी है उसका नाम। अमेरिका स्थित युनिवर्सिटी आफ साउथ केलीफोर्निया के वैज्ञानिक उन्ही बातों को दुहरा रहे हैं, जिसके गुणों को आयुर्वेदिक ग्रथों में कई बार विभिन्न रोगों के सन्दर्भ में बताया गया है।
वैज्ञानिकों ने मुलेठी जिसे अंगरेजी में लीकोरिस के नाम से जाना जाता है,इसके एक्सट्रेक्ट की गोली बनाकर उन महिलाओं में प्रयोग कराया ,जिन्हें माहवारी बंद होने के आखिरी दिनों में सूर्ख चेहरे,रात में पसीना आना,नींद न आना जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा था। वैज्ञानिकों ने मुलेठी की जड़ का प्रयोग इस शोध में किया है, वैज्ञानिकों का कहना है, स्रि यह महिलाओं की क्वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर करने की अचूक दवा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ केलीफोर्निया के वैज्ञानिकों ने मुलेठी के एक्सट्रेक्ट जिसे 'लाईकोजन 'नाम दिया गया है ,इसे 51 महिलाओं में प्रयोग कराया,वैज्ञानिकों का ऐसा मानाना है ,कि मुलेठी में स्थित रसायन महिलाओं के हारमोन 'एस्ट्रोजन ' से मिलता जुलता है। इस शोध के परिणामों को अमेरीकन सोसाईटी फार रीप्रोडकटीव मेडीसीन के सालाना कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया गया है। तो हों जाए तैयार, अब वो दिन दूर नहीं कि जिस मुलेठी को आयुर्वेद में दमा,खांसी,हाईपरएसिडीटी,गले क़ी खरास ,अल्सर ,पेशाब में जलन आदि अनेकों बीमारियों को ठीक करने क़ी दवा कहा गया है, उसी की गोलीयां बाजार में महिलाओं के पोस्टमेनोपोजल लक्षणों को दूर करने के लिए आधुनिक गोलियों के रूप में मिलने लगें।इसी आर्टिकल को पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिओक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-assumed-all-the-diseases-specific-drug-muleti-2513902.html
वैज्ञानिकों ने मुलेठी जिसे अंगरेजी में लीकोरिस के नाम से जाना जाता है,इसके एक्सट्रेक्ट की गोली बनाकर उन महिलाओं में प्रयोग कराया ,जिन्हें माहवारी बंद होने के आखिरी दिनों में सूर्ख चेहरे,रात में पसीना आना,नींद न आना जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा था। वैज्ञानिकों ने मुलेठी की जड़ का प्रयोग इस शोध में किया है, वैज्ञानिकों का कहना है, स्रि यह महिलाओं की क्वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर करने की अचूक दवा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ केलीफोर्निया के वैज्ञानिकों ने मुलेठी के एक्सट्रेक्ट जिसे 'लाईकोजन 'नाम दिया गया है ,इसे 51 महिलाओं में प्रयोग कराया,वैज्ञानिकों का ऐसा मानाना है ,कि मुलेठी में स्थित रसायन महिलाओं के हारमोन 'एस्ट्रोजन ' से मिलता जुलता है। इस शोध के परिणामों को अमेरीकन सोसाईटी फार रीप्रोडकटीव मेडीसीन के सालाना कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया गया है। तो हों जाए तैयार, अब वो दिन दूर नहीं कि जिस मुलेठी को आयुर्वेद में दमा,खांसी,हाईपरएसिडीटी,गले क़ी खरास ,अल्सर ,पेशाब में जलन आदि अनेकों बीमारियों को ठीक करने क़ी दवा कहा गया है, उसी की गोलीयां बाजार में महिलाओं के पोस्टमेनोपोजल लक्षणों को दूर करने के लिए आधुनिक गोलियों के रूप में मिलने लगें।इसी आर्टिकल को पढने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिओक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-assumed-all-the-diseases-specific-drug-muleti-2513902.html
शादीशुदा महिलाओं के लिए ये बात ध्यान रखना बहुत जरूरी है क्योंकि
सेक्स जीवित प्राणियों की स्वाभाविक इच्छा का ही एक नाम है। हमारे समाज में इसे बड़ी ही गोपनीयता का रूप प्रदान किया गया है , जिस कारण जननांगों से सम्बंधित कई भ्रांतियों से विवाहित युगल भी जूझते हैं। कई बार शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बाद भी युगल यौन संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं। जननांगों में यौन उत्कर्ष के दौरान स्वाभाविक रूप से रक्त का स्राव तीव्र हो जाता है ,तथा चरमोत्कर्ष (ओर्गाज्म ) के दौरान यह अपनी पूर्णता पर होता है। ईश्वर ने मानव शरीर को कुछ ऐसे हिस्सों से युक्त किया है, जिसकी चरमोत्कर्ष (ओर्गाज्म) की ओर ले जाने में महती भूमिका होती है, ऐसा ही एक स्पोट जो महिलाओं की योनि में पाया जाता है नाम है - जी-स्पोट -। योनि क़ी दिवाल के सामने वाले हिस्से में मटर के दाने के समान इस स्पोट को महिलाओं में चरमोत्कर्ष का एक विन्दु माना गया है।
आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न स्थित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यूरोलोजिस्ट डॉ. हेलेन .ओ. कोंनेल ने इस पर गहन अध्ययन किया है, उनका कहना है , कि महिलाओं के योनि की आंतरिक दिवार ही वेजाइनल-ओर्गास्म को पैदा करती है, यह योनि के किसी खास हिस्से में अधिक हो सकता है, जिसे 'जी स्पोटÓ नाम दिया जाता है।
सेक्सोलोजिस्ट डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है ,कि अक्सर महिलाएं इस जी-स्पोट के बारे में चिंतित रहती हैं और यदि उन्हें यह इसका एहसास खुद में नहीं हुआ , तो स्वयं को यौन शिथिल मानने लग जाती हैं, जबकि ऐसा नहीं है, डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है : यह जरूरी नहीं, कि हर महिला में यह योनि के किसी खास हिस्से में ही हो ,यह अलग-अलग महिला में योनि की दिवार के अलग हिस्से में हो सकता है, अगर महिला केवल अपना ध्यान जी-स्पोट पर ही केन्द्रित करने लग जाती है ,तो वह सेक्स के अन्य पहलूओं पर ध्यान ही नहीं दे पाती है ,अत: यह आवश्यक है, कि यौन सम्बन्ध बनाते समय सम्पूर्णता की और ध्यान केन्द्रित किया जाए न की किसी स्पोट विशेष पर। इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-married-women-it-is-very-important-to-keep-in-mind-2527006.html
आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न स्थित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यूरोलोजिस्ट डॉ. हेलेन .ओ. कोंनेल ने इस पर गहन अध्ययन किया है, उनका कहना है , कि महिलाओं के योनि की आंतरिक दिवार ही वेजाइनल-ओर्गास्म को पैदा करती है, यह योनि के किसी खास हिस्से में अधिक हो सकता है, जिसे 'जी स्पोटÓ नाम दिया जाता है।
सेक्सोलोजिस्ट डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है ,कि अक्सर महिलाएं इस जी-स्पोट के बारे में चिंतित रहती हैं और यदि उन्हें यह इसका एहसास खुद में नहीं हुआ , तो स्वयं को यौन शिथिल मानने लग जाती हैं, जबकि ऐसा नहीं है, डॉ पेट्रा बोयनटन का कहना है : यह जरूरी नहीं, कि हर महिला में यह योनि के किसी खास हिस्से में ही हो ,यह अलग-अलग महिला में योनि की दिवार के अलग हिस्से में हो सकता है, अगर महिला केवल अपना ध्यान जी-स्पोट पर ही केन्द्रित करने लग जाती है ,तो वह सेक्स के अन्य पहलूओं पर ध्यान ही नहीं दे पाती है ,अत: यह आवश्यक है, कि यौन सम्बन्ध बनाते समय सम्पूर्णता की और ध्यान केन्द्रित किया जाए न की किसी स्पोट विशेष पर। इसी आर्टिकल को पढ़ें के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-married-women-it-is-very-important-to-keep-in-mind-2527006.html
दर्द से परेशान हैं तो पैन किलर नहीं टमाटर खाइए क्योंकि...
यूं तो हर फल एवं सब्जियों में कुछ न कुछ औषधीय गुण विद्यमान होते हैं ,लेकिन वैज्ञानिकों की माने तो, अब टमाटर दर्द निवारक दवा एस्पिरीन का विकल्प हो सकता है। एस्पिरिन को दर्द निवारक के साथ-साथ खून पतला करने वाली दवा के रूप में जाना जाता है,अब ऐसे ही कुछ गुणों को टमाटर में भी देखा गया है।
टमाटर के बीजों से बनाये गए प्राकृतिक जेल शरीर में खून के प्रवाह को बढाने वाले तथा रक्त के थक्कों के बनने से रोकने वाले पाए गए हैं ,यह बात हम नहीं, रोवेट संस्थान के प्रोफे सर असीम दत्त रॉय के शोध के परिणाम कह रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के स्वास्थ्य अधिकारी तो पहले ही इस बात को मान चुके हैं, यह बात उन करोड़ों लोगों के लिए एक सुखद एहसास है ,जो अपने खून को पतला रखने के लिए एस्पिरिन का सेवन कर अल्सर जैसे दुष्प्रभाव को झेलने को मजबूर हैं।
प्रो असीम दत्त रॉय के अनुसार आज तक इस जेल के कोई भी साईड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं ,इस अध्ययन के अनुसार टमाटर के बीजों से बने जेल के सेवन के तीन घंटे के अन्दर ही यह रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है ,तथा इसका अपना प्रभाव 18 घंटे तक बना रहता है, तो है न कमाल पिएं। टमाटर का सूप या टमाटर के बीजों का जेल और कर लें खुद को एस्पिरिन लेने की टेंशन से फ्री।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-do-not-eat-tomatoes-because-of-the-pain-so-upset-2527400.html
टमाटर के बीजों से बनाये गए प्राकृतिक जेल शरीर में खून के प्रवाह को बढाने वाले तथा रक्त के थक्कों के बनने से रोकने वाले पाए गए हैं ,यह बात हम नहीं, रोवेट संस्थान के प्रोफे सर असीम दत्त रॉय के शोध के परिणाम कह रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के स्वास्थ्य अधिकारी तो पहले ही इस बात को मान चुके हैं, यह बात उन करोड़ों लोगों के लिए एक सुखद एहसास है ,जो अपने खून को पतला रखने के लिए एस्पिरिन का सेवन कर अल्सर जैसे दुष्प्रभाव को झेलने को मजबूर हैं।
प्रो असीम दत्त रॉय के अनुसार आज तक इस जेल के कोई भी साईड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं ,इस अध्ययन के अनुसार टमाटर के बीजों से बने जेल के सेवन के तीन घंटे के अन्दर ही यह रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है ,तथा इसका अपना प्रभाव 18 घंटे तक बना रहता है, तो है न कमाल पिएं। टमाटर का सूप या टमाटर के बीजों का जेल और कर लें खुद को एस्पिरिन लेने की टेंशन से फ्री।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-do-not-eat-tomatoes-because-of-the-pain-so-upset-2527400.html
साबित हो चुका है कि कमर दर्द दूर करने का ये है रामबाण उपाय
यूं तो शारीरिक सक्रियता को सबसे अच्छी चिकित्सा माना गया है, और योग तो इस मामले में एक कदम आगे है। आसनों के अभ्यास से सक्रियता के अलावा कुछ विशेष परेशानियों में भी लाभ देखा गया है, ऐसी ही एक परेशानी है, कमर का दर्द, जिससे आम तौर पर हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है।
इसे आधुनिक भाषा में लोबैकपेन या लम्बेगो कहते हैं अभी हाल में ही अमेरिका के सिएटल के ग्रुप रिसर्च इंस्टीच्युट के शोधकर्ताओं के अध्ययन ,जिसे आर्चिव आफ इन्टरनल मेडीसिन में प्रकाशित किया गया है, के अनुसार योग-अभ्यास का प्रभाव कमर के दर्द से निजात दिलाने में अब प्रमाणित हो गया है ,और यह भी सिद्ध हो गया है, कि आसनों का सीधा सम्बन्ध दर्द को दूर करने से है। पिछले अध्ययनों के अनुसार आसनों एवं ब्रीदिंग-एक्सरसाइज मानसिक तनाव को मुक्त कर दर्द को कुछ हद तक कम करने में सफल होते हैं, इसे इस नई शोध के परिणाम ने पूरी तरह से बदल दिया है।
इस शोध के अनुसार योग अभ्यास से कमर दर्द में सीधे लाभ मिलता है, जो केवल मानसिक थकान कम करने से ही सम्बंधित नहीं है।इस अध्ययन में 228 कमर दर्द से पीडि़त रोगियों का चयन किया गया,जिनमें किसी न किसी रूप में स्पाइनल डिस्क से सम्बंधित समस्या थी, इन्हें तीन अलग-अलग समूहों में बांटकर दो प्रकार की कक्षाओं में सम्मिलित किया गया , एक कक्षा में रोगियों को स्वयं सेल्फकेयर द्वारा किताबों से पढ़कर कुछ कमर दर्द से निजात पाने क़ी एक्सरसाइज का अभ्यास कराया गया ,तथा दूसरे समूह को औपचारिक रूप से कमर दर्द में लाभकारी योग के आसनों का अभ्यास कराया गया।
सेल्फकेयर समूह में लाभ का प्रतिशत 20 था ,जबकि औपचारिक रूप से योग आसनों के अभ्यास करने वाले समूह में यह प्रतिशत कहीं अधिक 80 था। ऐसा देखा गया ,कि सेल्फ केयर समूह क़ी अपेक्षा योग कक्षा में शामिल दुगने कमर दर्द से पीडि़त रोगियों ने अपनी दर्द की गोलियों को लेना छोड़ दिया।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-be-paid-to-the-specific-measures-to-remove-2528481.html
इसे आधुनिक भाषा में लोबैकपेन या लम्बेगो कहते हैं अभी हाल में ही अमेरिका के सिएटल के ग्रुप रिसर्च इंस्टीच्युट के शोधकर्ताओं के अध्ययन ,जिसे आर्चिव आफ इन्टरनल मेडीसिन में प्रकाशित किया गया है, के अनुसार योग-अभ्यास का प्रभाव कमर के दर्द से निजात दिलाने में अब प्रमाणित हो गया है ,और यह भी सिद्ध हो गया है, कि आसनों का सीधा सम्बन्ध दर्द को दूर करने से है। पिछले अध्ययनों के अनुसार आसनों एवं ब्रीदिंग-एक्सरसाइज मानसिक तनाव को मुक्त कर दर्द को कुछ हद तक कम करने में सफल होते हैं, इसे इस नई शोध के परिणाम ने पूरी तरह से बदल दिया है।
इस शोध के अनुसार योग अभ्यास से कमर दर्द में सीधे लाभ मिलता है, जो केवल मानसिक थकान कम करने से ही सम्बंधित नहीं है।इस अध्ययन में 228 कमर दर्द से पीडि़त रोगियों का चयन किया गया,जिनमें किसी न किसी रूप में स्पाइनल डिस्क से सम्बंधित समस्या थी, इन्हें तीन अलग-अलग समूहों में बांटकर दो प्रकार की कक्षाओं में सम्मिलित किया गया , एक कक्षा में रोगियों को स्वयं सेल्फकेयर द्वारा किताबों से पढ़कर कुछ कमर दर्द से निजात पाने क़ी एक्सरसाइज का अभ्यास कराया गया ,तथा दूसरे समूह को औपचारिक रूप से कमर दर्द में लाभकारी योग के आसनों का अभ्यास कराया गया।
सेल्फकेयर समूह में लाभ का प्रतिशत 20 था ,जबकि औपचारिक रूप से योग आसनों के अभ्यास करने वाले समूह में यह प्रतिशत कहीं अधिक 80 था। ऐसा देखा गया ,कि सेल्फ केयर समूह क़ी अपेक्षा योग कक्षा में शामिल दुगने कमर दर्द से पीडि़त रोगियों ने अपनी दर्द की गोलियों को लेना छोड़ दिया।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-be-paid-to-the-specific-measures-to-remove-2528481.html
कोलेस्ट्रोल और चर्बी का दुश्मन है ये फल
आपने हमारे ऋषि-मुनियों को कन्द,मूल और फल खाकर अपनी आयु को हजारों साल तक जीने की कहानी सुनी और पढी होगी,आपको लगता होगा कि ,यह एक कपोल कल्पित कल्पना मात्र होगी,भला कोई इतनी लम्बी आयु कैसे जी सकता होगा। लेकिन यह सत्य है, कि शुद्ध पर्यावरण एवं शांतिमय वातावरण तथा सयंमित आहार-विहार एवं व्यवहार आपको आज भी लम्बी आयु प्रदान कर सकता है।
शुद्ध पर्यावरण एवं शांतिमय वातावरण की कल्पना आज के परिपेक्ष में बेमानी है, इसके लिए निरंतर सतत प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन हाँ ,यदि बिना रासायनिक तत्वों के प्रयोग के प्राप्त फलों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी हो सकता है, यह बात तरबूज के सम्बन्ध में खरी उतरती है।
केंट्युक़ी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के परिणामों को अगर देखा जाय तो तरबूज का रस, वजन कम करने के साथ-साथ,शरीर की अतिरिक्त चर्बी को भी कम करता है। इसके लगातार प्रयोग से कोलेस्ट्रोल एवं लो- डेंसिटीलिपोप्रोटीन का स्तर कम होने लगता है, तथा हार्ट की धमनियों की कठिनता के कारण होने वाला अवरोध जिसे - एथेरोस्केलोरोसिस- कहा जाता है भी कम हो जाता है। भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ .शीबू साह का कहना है :तरबूज के रस के कई स्वास्थ्यवर्धक लाभ प्रायोगिक स्तर पर चूहों में देखे गए हैं, बस अब इसके बायोएक्टिव कम्पाउंड को मानवीय फायदे के लिए निकालकर प्रयोग कराने की आवश्यकता है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-cholesterol-and-fat-is-the-enemy-of-the-fruit-2532272.html
शुद्ध पर्यावरण एवं शांतिमय वातावरण की कल्पना आज के परिपेक्ष में बेमानी है, इसके लिए निरंतर सतत प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन हाँ ,यदि बिना रासायनिक तत्वों के प्रयोग के प्राप्त फलों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी हो सकता है, यह बात तरबूज के सम्बन्ध में खरी उतरती है।
केंट्युक़ी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के परिणामों को अगर देखा जाय तो तरबूज का रस, वजन कम करने के साथ-साथ,शरीर की अतिरिक्त चर्बी को भी कम करता है। इसके लगातार प्रयोग से कोलेस्ट्रोल एवं लो- डेंसिटीलिपोप्रोटीन का स्तर कम होने लगता है, तथा हार्ट की धमनियों की कठिनता के कारण होने वाला अवरोध जिसे - एथेरोस्केलोरोसिस- कहा जाता है भी कम हो जाता है। भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ .शीबू साह का कहना है :तरबूज के रस के कई स्वास्थ्यवर्धक लाभ प्रायोगिक स्तर पर चूहों में देखे गए हैं, बस अब इसके बायोएक्टिव कम्पाउंड को मानवीय फायदे के लिए निकालकर प्रयोग कराने की आवश्यकता है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-cholesterol-and-fat-is-the-enemy-of-the-fruit-2532272.html
इस एक फंडे से पाइए जोड़ो व घुटनों के दर्द से छुटकारा हमेशा के लिए
यदि आप जोड़ों के दर्द आस्टीयो-आर्थराईटीस से हैं, परेशान तो न घबराएं विशेषज्ञों की मानें तो आहार में कुछ परिवर्तन के साथ नियमित व्यायाम इस प्रकार के जोड़ों के दर्द को 50 प्रतिशत से अधिक कम कर सकता है। वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी के स्टीफन पी.मेसीयर के एक शोध में यह जानकारी दी गयी है, जिसे हाल ही में अमेरिकन कालेज आफ रयूमेटोलोजी के सालाना वैज्ञानिक सत्र में प्रस्तुत किया गया है।
आस्टीयो-आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है ,तथा वजन में बढ़ोत्तरी ,उम्र एवं चोट ,जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं। ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है। यह अध्धयन 154 ओवरवेट लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो-आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो-आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/get-the-link-and-knees-to-relieve-the-pain-forever-2551644.html
आस्टीयो-आर्थराईटीस में सामन्यतया घुटनों की उपास्थि नष्ट हो जाती है ,तथा वजन में बढ़ोत्तरी ,उम्र एवं चोट ,जोड़ों में तनाव एवं पारिवारिक इतिहास आदि कारण इसे बढाने का काम करते हैं। ऐसे रोगियों में नियंत्रित आहार से वजन कम करना जोड़ों के दर्द को कम करने का कारगर उपाय है। यह अध्धयन 154 ओवरवेट लोगों में किया गया, जिनमें आस्टीयो-आर्थराईटीस के कारण घुटनों का दर्द बना हुआ था, इस शोध में लोगों को रेंडमली चुना गया, तथा उन्हें केवल आहार नियंत्रण एवं आहार नियंत्रण के साथ नियमित व्यायाम कराया गया और इन समूहों को एक कंट्रोल समूह से तुलना कर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से यह बात सामने आयी, कि आस्टीयो-आर्थराईटीस से पीडि़त रोगियों में वजन कम करना घुटनों के दर्द से राहत पाने का एक अच्छा विकल्प है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/get-the-link-and-knees-to-relieve-the-pain-forever-2551644.html
इस चमत्कारी पावडर में छुपा है कई बीमारियों का इलाज
कई रोगों में काम आने वाली पिप्पली के गुणों को आयुर्वेद के ग्रंथों में विस्तार से बताया गया हैं।आइये हम आपके लिए इनमें से कुछ खास गुण लेकर आयें हैं , जो इसके औषधीय महत्व को प्रकाशित करता है। अंगरेजी में इसे लांग पीपर के नाम से जाना जाता है।
-यह सांस नालियों में जमे म्यूकस यानि कफ को निकालने में मददगार होता है।
-यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने वाली औषधी है तथा हमारी आंत्र गुहा को भी ठीक रखती है ,अर्थात यह आँतों की पेरिस्टालटीक गति को भी नियंत्रित रखने में मददगार होती है।
-पिप्पली हमारी पाचन क्षमता को भी ठीक करने में मददगार होती है।
-यह त्वचा से सम्बंधित विकारों के लिए भी अत्यन्य फायदेमंद औषधी है , बस किसी भी प्रकार के कटे-फटे घाव में लगायें इसका तेल और देखें इसके लाभ।
-यह शरीर के किसे भी हिस्से में हो रहे वेदना का शमन करने वाली औषधी है।
-यह मूत्र वह संस्थान की विकृतियों में भी अपना अच्छा प्रभाव दर्शाती है।
- एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दोगुने शहद में मिलाकर चाटने से श्वास कास, हिक्का, ज्वर, स्वरभंग व प्लीहा रोग में लाभ होता है। यह पिप्पली कफरोग में बहुत लाभकारी है।
-यह एस्थमा,ब्रोंकाईटीस एवं पुरानी खांसी को दूर करने की रामबाण औषधी है।
इसके अलावा मलेरिया,डायरिया,पाईल्स,पेट दर्द ,भूख न लगना, हैजा, गैस बनना,नींद न आना आदि अनेकों रोगों में इसके प्रभाव गुणकारी हैं।
इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurvedathe-miracle-powders-in-the-treatment-of-many-diseases-2551613.html
-यह सांस नालियों में जमे म्यूकस यानि कफ को निकालने में मददगार होता है।
-यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने वाली औषधी है तथा हमारी आंत्र गुहा को भी ठीक रखती है ,अर्थात यह आँतों की पेरिस्टालटीक गति को भी नियंत्रित रखने में मददगार होती है।
-पिप्पली हमारी पाचन क्षमता को भी ठीक करने में मददगार होती है।
-यह त्वचा से सम्बंधित विकारों के लिए भी अत्यन्य फायदेमंद औषधी है , बस किसी भी प्रकार के कटे-फटे घाव में लगायें इसका तेल और देखें इसके लाभ।
-यह शरीर के किसे भी हिस्से में हो रहे वेदना का शमन करने वाली औषधी है।
-यह मूत्र वह संस्थान की विकृतियों में भी अपना अच्छा प्रभाव दर्शाती है।
- एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दोगुने शहद में मिलाकर चाटने से श्वास कास, हिक्का, ज्वर, स्वरभंग व प्लीहा रोग में लाभ होता है। यह पिप्पली कफरोग में बहुत लाभकारी है।
-यह एस्थमा,ब्रोंकाईटीस एवं पुरानी खांसी को दूर करने की रामबाण औषधी है।
इसके अलावा मलेरिया,डायरिया,पाईल्स,पेट दर्द ,भूख न लगना, हैजा, गैस बनना,नींद न आना आदि अनेकों रोगों में इसके प्रभाव गुणकारी हैं।
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जानिए, क्यों भूल जाते हैं हम छोटी छोटी बातों को?
अक्सर ऐसा होता है, कि हमने अभी किसी काम को करना सोचा और किसी और काम में उलझ गए और भूल गए। जैसे किसी चीज को कहीं रखकर भूल जाना। फिर ढंढूते रहना या किसी का नाम अचानक याद होने के बावजूद भी जुबान पर न आना।
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....। इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html
एड्स पर रिसर्च के आए ऐसे परिणाम आप जानकर भौचक्के रह जाएंगे!
दुनिया में एच .आई .वी वाइरस के बढ़ते संक्रमणों के प्रति विकसित एवं विकासशील देशों में चिंता व्याप्त है। अमेरिका ने तो अपने यहां के सभी सेक्सुअली एक्टिव युवाओं का ग्रुप एच .आई.वी.स्क्रीनिंग कराने का फैसला किया है। इसके तहत 16 वर्ष से ऊपर के सभी युवाओं का एच .आई.वी. स्क्रीनिंग कराया जाएगा। एक करोड़ से अधिक अमेरीकी एच. आई. वी. संक्रमित हो चुके हैं, तथा इनमे 55,000 से अधिक 13 से 24 वर्ष की आयु वर्ग के है।
जर्नल आफ पीडीयाट्रिक्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 48 प्रतिशत युवाओं को तो यह पता ही नहीं है, कि वे एच. आई .वी. से संक्रमित हो चुके हैं , और यही इस रोग का सबसे खतरनाक पहलू है , कि जिन्हें इसका पता नहीं है, वे तेजी से इसे फैला रहे हैं। आपको मालुम होगा कि एच.आई.वी .वाइरस का यदि समय पर उपचार न किया जाय तो यह एड्स के रूप में सामने आता है। आधुनिक दवाओं का प्रयोग एच .आई .वी .के संक्रमण को एड्स के रूप में आने के समय को कई वर्षों तक लम्बा कर सकता है।
अमेरिका में एच .आई.वी .के संक्रमण की जांच का दायरा वेश्याओं,होमोसेक्सुअल एवं ड्रग्स का प्रयोग करने वालों तक ही था, लेकिन वर्ष 2006 के बाद यूएस.डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रीवेंसन ने इस दायरे को बढ़ाकर हर 13 साल की आयु से ऊपर के व्यक्ति का एच.आई.वी. स्क्रीनिंग कराये जाना सुनिश्चित किया, चाहे वो रिस्क ग्रुप में हो या न हो। यह बात महत्वपूर्ण है, कि अमेरिकी टीनएजर्स में से 60 प्रतिशत ने स्वयं को सेक्सुअली एक्टिव माना है ,अत: इस स्क्रीनिंग से छुपे हुए संक्रमण को सामने लाने में मदद मिलेगी ,जो इस रोग के फैलने से रोकने में मददगार होगा। अमेरिका के इस मास स्क्रीनिंग के फैसले को क्या बदले परिवेश में भारत में लागू नहीं किया जाना चाहिए? इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-america-came-to-know-the-results-you-will-be-stunned-2534397.html
जर्नल आफ पीडीयाट्रिक्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 48 प्रतिशत युवाओं को तो यह पता ही नहीं है, कि वे एच. आई .वी. से संक्रमित हो चुके हैं , और यही इस रोग का सबसे खतरनाक पहलू है , कि जिन्हें इसका पता नहीं है, वे तेजी से इसे फैला रहे हैं। आपको मालुम होगा कि एच.आई.वी .वाइरस का यदि समय पर उपचार न किया जाय तो यह एड्स के रूप में सामने आता है। आधुनिक दवाओं का प्रयोग एच .आई .वी .के संक्रमण को एड्स के रूप में आने के समय को कई वर्षों तक लम्बा कर सकता है।
अमेरिका में एच .आई.वी .के संक्रमण की जांच का दायरा वेश्याओं,होमोसेक्सुअल एवं ड्रग्स का प्रयोग करने वालों तक ही था, लेकिन वर्ष 2006 के बाद यूएस.डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रीवेंसन ने इस दायरे को बढ़ाकर हर 13 साल की आयु से ऊपर के व्यक्ति का एच.आई.वी. स्क्रीनिंग कराये जाना सुनिश्चित किया, चाहे वो रिस्क ग्रुप में हो या न हो। यह बात महत्वपूर्ण है, कि अमेरिकी टीनएजर्स में से 60 प्रतिशत ने स्वयं को सेक्सुअली एक्टिव माना है ,अत: इस स्क्रीनिंग से छुपे हुए संक्रमण को सामने लाने में मदद मिलेगी ,जो इस रोग के फैलने से रोकने में मददगार होगा। अमेरिका के इस मास स्क्रीनिंग के फैसले को क्या बदले परिवेश में भारत में लागू नहीं किया जाना चाहिए? इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-america-came-to-know-the-results-you-will-be-stunned-2534397.html
ये जानने के बाद आप कहेंगे-शराब ....ना बाबा ना
यूं तो कोई भी नशा हमारे स्वास्थ्य एवं समाज के लिए नुकसानदायक होता है। आयुर्वेद भी जीवन को व्यसन मुक्त करने की सलाह देता है। हाँ यह बात भी एक सत्य है, कि प्राचीन काल में मद्य का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता था। यह कुछ रोगों की चिकित्सा से लेकर बेहोशी लाकर सर्जरी करने तक सीमित था। यही कारण है, कि कुछ लोगों द्वारा अधिक पीने के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान भी आचार्य चरक ने मदात्यय नामक अध्याय में वर्णित किया है। वैसे भी एल्कोहल एक टोक्सिक रसायन है, जिसका प्रयोग कोशिकाओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं को मारने में किया जाता है ,यही कारण है,कि़ इसे स्टरलाइजेसन हेतु प्रयोग में लाया जाता है। तो आप खुद सोचिये, कि़ यह आपके शरीर के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है ? आजकल लोगों में शराब एक फैशन एवं स्टेटस सिम्बल का रूप लेता जा रहा है। जो नहीं पीता उसे सोसाएटी में दब्बू मानने का चलन व्याप्त है। क्या महिलाएं क्या पुरुष आप इन सबको मदिरालय में जाम गटकते देख सकते हैं ,और यह भी कहते सुन सकते हैं - थोड़ी-थोड़ी पीया करो। हाँ, यह भी एक सत्य है , कि कोरोनरी हार्टडीजीज,टायप-2 डाईबिटीज से सम्बंधित कुछ अध्ययन थोड़ी मात्रा में एल्कोहल लेने के पक्ष में जाते हैं।
लेकिन आपको हम कुछ सत्य से रु-ब रु कराते हैं, जिसे जानने के बाद आप कहेंगे -शराब ...ना बाबा ना -अमेरिकन कालेज आफ गेस्ट्रोएंटेरोलोजी के अध्ययन के अनुसार थोड़ी मात्रा में शराब का सेवन भी आपकी आँतों के बेक्टीरियल ग्रोथ को बढ़ा सकता है I इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-knowing-this-you-say---not-to-visit-the-wine-2536895.html
-हारवर्ड मेडिकल स्कूल में कराये गए एक अध्ययन जिसे जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएसन में प्रकाशित किया गया है इसके अनुसार एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को 51 प्रतिशत से अधिक बढ़ा देती है।
-गर्भावस्था के दौरान शराब पीना भी आनेवाले बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है।
-यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास, एम..ड़ी.एंडरसन कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों की मानें तो थोड़ी मात्रा में भी शराब का सेवन लीवर एवं ओरल कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है।
-आपको शराब पीते देख आपके बच्चे भे इसका अनुकरण करने लग जाते हैं और ऑस्ट्रेलिया में हुआ एक अध्ययन भी इसकी पुष्टि करता है, कि़ कम उम्र से ही थोड़ी मात्रा में शराब का प्रयोग बाद में शराब की आदत और रिस्की सेक्सुअल व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता है।
-थोड़ी मात्रा में एल्कोहल का सेवन भी आपके शारीरिक कोर्डिनेशन,प्रतिक्रिया एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, अत: किसी मशीन को चलाते समय या ड्राईविंग के समय एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी आपके जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है।
-यदि आपको लिवर से सम्बंधित कोई समस्या है, या खून में चर्बी की मात्रा अधिक है ,तो थोड़ी मात्रा में भी शराब आपके लिए जानलेवा हो सकती है।
लेकिन आपको हम कुछ सत्य से रु-ब रु कराते हैं, जिसे जानने के बाद आप कहेंगे -शराब ...ना बाबा ना -अमेरिकन कालेज आफ गेस्ट्रोएंटेरोलोजी के अध्ययन के अनुसार थोड़ी मात्रा में शराब का सेवन भी आपकी आँतों के बेक्टीरियल ग्रोथ को बढ़ा सकता है I इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-knowing-this-you-say---not-to-visit-the-wine-2536895.html
-हारवर्ड मेडिकल स्कूल में कराये गए एक अध्ययन जिसे जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएसन में प्रकाशित किया गया है इसके अनुसार एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को 51 प्रतिशत से अधिक बढ़ा देती है।
-गर्भावस्था के दौरान शराब पीना भी आनेवाले बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है।
-यूनिवर्सिटी आफ टेक्सास, एम..ड़ी.एंडरसन कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों की मानें तो थोड़ी मात्रा में भी शराब का सेवन लीवर एवं ओरल कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है।
-आपको शराब पीते देख आपके बच्चे भे इसका अनुकरण करने लग जाते हैं और ऑस्ट्रेलिया में हुआ एक अध्ययन भी इसकी पुष्टि करता है, कि़ कम उम्र से ही थोड़ी मात्रा में शराब का प्रयोग बाद में शराब की आदत और रिस्की सेक्सुअल व्यवहार के लिए जिम्मेदार होता है।
-थोड़ी मात्रा में एल्कोहल का सेवन भी आपके शारीरिक कोर्डिनेशन,प्रतिक्रिया एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, अत: किसी मशीन को चलाते समय या ड्राईविंग के समय एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी आपके जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है।
-यदि आपको लिवर से सम्बंधित कोई समस्या है, या खून में चर्बी की मात्रा अधिक है ,तो थोड़ी मात्रा में भी शराब आपके लिए जानलेवा हो सकती है।
इमोशंस नहीं होते कंट्रोल तो बस अपनाएं ये एक फंडा
महर्षि पतंजलि द्वारा प्रणित योग का लोहा आज पूरी दुनिया के वैज्ञानिक मान रहे हैं। विभिन्न क्लिनिकल रिसर्च इस बात को साबित कर रहे हैं, कि योग की क्रियाओं के चमत्कारिक लाभ हैं। कुछ वर्षों पूर्व इसे मात्र स्वस्थ रहने के साधन के रूप में जाना जाता था ,लेकिन अब इसे जीवनशैली से सम्बंधित बीमारियों का उपचार भी किया जा रहा है, जो वैज्ञानिकों के नजरिये में आये बदलाव का सूचक है। यह बदलाव हमारी प्राचीन विधाओं के वैज्ञानिक होने का संकेत मात्र है, जिसे अब आधुनिक शोधवेत्ता माने को मजबूर हुए हैं।
हारवर्ड युनिवर्सिटी एवं जुस्ताक लेबिग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों क़ी मानें तो योग में ध्यान (मेडीटेशन ) का अभ्यास, उच्च रक्तचाप ,मानसिक विकृतीयों एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने में प्रभावी चिकित्सा है।
वैज्ञानिकों का कहना है , कि ध्यान (मेडीटेशन )का अभ्यास चार स्तरों पर कार्य करता है जो शरीर की चिकित्सा के रूप में प्रभावी है।
1. सक्रियता को नियंत्रित करना।
2. शरीर को जागरूक करना।
3. भावनाओं को नियंत्रित करना।
4. स्वयं के एहसास को जागृत करना ,ये सभी शारीरिक एवं मानसिक तनाव को कम करने के साधन हैं। हाँ यह बात नियमित अभ्यास एवं प्रशिक्षण के द्वारा ,हमारे भौतिक अनुभवों ,व्यवहार एवं मष्तिष्क की कार्यक्षमता को अवश्य ही प्रभावित करती है। यह अध्ययन जर्नल प्रेस्पेकटिव आफ साइकोलोजिकल साइंस के नूतन संस्करण में प्रकाशित हुआ है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-emotions-are-not-control-just-taking-it-2539136.html
हारवर्ड युनिवर्सिटी एवं जुस्ताक लेबिग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों क़ी मानें तो योग में ध्यान (मेडीटेशन ) का अभ्यास, उच्च रक्तचाप ,मानसिक विकृतीयों एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने में प्रभावी चिकित्सा है।
वैज्ञानिकों का कहना है , कि ध्यान (मेडीटेशन )का अभ्यास चार स्तरों पर कार्य करता है जो शरीर की चिकित्सा के रूप में प्रभावी है।
1. सक्रियता को नियंत्रित करना।
2. शरीर को जागरूक करना।
3. भावनाओं को नियंत्रित करना।
4. स्वयं के एहसास को जागृत करना ,ये सभी शारीरिक एवं मानसिक तनाव को कम करने के साधन हैं। हाँ यह बात नियमित अभ्यास एवं प्रशिक्षण के द्वारा ,हमारे भौतिक अनुभवों ,व्यवहार एवं मष्तिष्क की कार्यक्षमता को अवश्य ही प्रभावित करती है। यह अध्ययन जर्नल प्रेस्पेकटिव आफ साइकोलोजिकल साइंस के नूतन संस्करण में प्रकाशित हुआ है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-emotions-are-not-control-just-taking-it-2539136.html
मोटे लोगों के लिए ये खबर नहीं खुशखबरी है जानने के लिए क्लिक करें
आपने कई लोगों खानदानी रूप से मोटापे का शिकार होते देखा होगा, कई परिवारों में एक निश्चित उम्र के बाद मोटापा शरीर पर अपना प्रभाव दिखाने लगता है। नए शोधों के समूह के परिणाम ऐसे लोगों में आशा की एक नई किरण हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक समूह ने यह पाया है , कि मोटापे के लिए जिम्मेदार जीन जिसे - एफ .टी. ओ. जीन- कहा जाता है, शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों में, निष्क्रिय लोगों की अपेक्षा 27 प्रतिशत कम प्रभावी होता है।
दो लाख अठारह हजार लोगों में कराये गए अध्ययनों , जिनमे 45 अलग-अलग शोध सम्मिलित हैं, इनके परिणाम इस बात क ी पुष्टि करते हैं। इन अध्ययनों के अनुसार मोटापे से निजात पाने के लिए केवल मेराथान दौड़ ,जिम में घंटों पसीना बहाना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आप केवल प्रात: काल अपने पेट्स को घुमाकर ,साइक्लिंग कर या सीढिय़ों में चढ़कर ,लगभग दिन में एक घंटे (सप्ताह में पांच दिन ) एक्टिव रहकर ही अपने मोटापे को नियंत्रित कर सकते हैं।
ब्रिटेन में केम्ब्रिज स्थित एडीनब्रुक हॉस्पिटल में चल रहे जेनेटिक एटीयोलोजी आफ ओबेसीटी प्रोग्राम के टीम लीडर रुथ लॉस के अनुसार ये परिणाम आनुवंशिक रूप से मोटापे से पीडि़त लोगों को हेल्दी लाइफ स्टाइल ( नियमित सक्रिय दिनचर्या ) अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। इस अध्ययन के परिणाम आनलाइन जर्नल मेडिसीन में प्रकाशित हुए हैं। आयुर्वेद भी सक्रिय दिनचर्या को अपनाने पर बल देता है, तथा योग के आसनों का अभ्यास तो क्या आनुवंशिक, क्या सामान्य ,हर तरह के मोटापे एवं वजन को नियंत्रित करने में प्रभावी है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-good-news-for-obese-people-to-learn-it-click-2541353.html
दो लाख अठारह हजार लोगों में कराये गए अध्ययनों , जिनमे 45 अलग-अलग शोध सम्मिलित हैं, इनके परिणाम इस बात क ी पुष्टि करते हैं। इन अध्ययनों के अनुसार मोटापे से निजात पाने के लिए केवल मेराथान दौड़ ,जिम में घंटों पसीना बहाना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि आप केवल प्रात: काल अपने पेट्स को घुमाकर ,साइक्लिंग कर या सीढिय़ों में चढ़कर ,लगभग दिन में एक घंटे (सप्ताह में पांच दिन ) एक्टिव रहकर ही अपने मोटापे को नियंत्रित कर सकते हैं।
ब्रिटेन में केम्ब्रिज स्थित एडीनब्रुक हॉस्पिटल में चल रहे जेनेटिक एटीयोलोजी आफ ओबेसीटी प्रोग्राम के टीम लीडर रुथ लॉस के अनुसार ये परिणाम आनुवंशिक रूप से मोटापे से पीडि़त लोगों को हेल्दी लाइफ स्टाइल ( नियमित सक्रिय दिनचर्या ) अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। इस अध्ययन के परिणाम आनलाइन जर्नल मेडिसीन में प्रकाशित हुए हैं। आयुर्वेद भी सक्रिय दिनचर्या को अपनाने पर बल देता है, तथा योग के आसनों का अभ्यास तो क्या आनुवंशिक, क्या सामान्य ,हर तरह के मोटापे एवं वजन को नियंत्रित करने में प्रभावी है।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-good-news-for-obese-people-to-learn-it-click-2541353.html
बात अजीब है पर सच है, डॉक्टर का काम करते हैं ये ड्रायफ्रूटस
हमारे मन में अक्सर पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने को लेकर कुछ भ्रांतियां रहती हैं,जैसे यह रक्त में कोलेस्ट्रोल ,ट्राईग्लीस्राइड आदि को बढ़ाकर हृदय रोगों की संभावना को बढ़ा देता होगा,पर ऐसा नहीं है। इन सूखे फलों के कई फायदे हैं, इनका निश्चित मात्रा में सेवन मस्तिष्क के लिए ही नहीं ,अपितु कई रोगों में बचाव का साधन है। हाल में ही शोधकर्ताओं ने पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने वाले मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीडि़त रोगियों, जिनमे हृदय से सम्बंधित रोगों की प्रबल संभावना थी ,इसे कम होते देखा है।
पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने वालों में सेरेटोनिन नामक रसायन का स्तर बढ़ जाता है, जो तंत्रिका संवेदनाओं का ले जाने का काम करता है ,परिणाम स्वरुप व्यक्ति में भूख मिट जाती है, एवं एक खुशनुमा एहसास हृदय के लिए फायदेमंद होता है।बस ध्यान रहे, कि पिस्ता बादाम एवं अखरोट की नियमित मात्रा एक आउंस से अधिक न हो। यह शोधपत्र ए. सी .एस .के जर्नल आफ प्रोटीओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।युनिवर्सिटी ऑफ बारसिलोना के शोधकर्ताओं का भी मानना है, कि विश्व में मोटापे से पीडि़त रोगियों का बढऩा, मेटाबोलिक सिंड्रोम से सीधे सम्बंधित है, जिसमें पेट के पास की चर्बी में बढ़ोत्तरी ,हाई ब्लड -शुगर और हाई ब्लड -प्रेशर मिलना तय है।
अत: खान-पान में परिवर्तन लाकर, वजन को नियंत्रित कर, शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है ,इनमें नियमित पिस्ता बादाम एवं अखरोट का निश्चित मात्रा में सेवन भी सम्मिलित है। आपको शायद मालूम होगा, ये सूखे फल पोषक तत्वों से भरे पड़े हैं, इनमें अच्छी चर्बी (अनसेचुरेटेड फेटी- एसिड ) एवं एंटी-ओक्सिडेंट (पोलीफेनोल ) पाए जाते हैं ,जो मेटाबोलिक सिंड्रोम से लडऩे में मददगार होते है। तो आज से ही खाना शुरू करें अखरोट ,पिस्ता और बादाम और हृदय रोगों को करें ना ना ....! इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-these-doctors-work-drayfruts-2543392.html
पिस्ता बादाम एवं अखरोट खाने वालों में सेरेटोनिन नामक रसायन का स्तर बढ़ जाता है, जो तंत्रिका संवेदनाओं का ले जाने का काम करता है ,परिणाम स्वरुप व्यक्ति में भूख मिट जाती है, एवं एक खुशनुमा एहसास हृदय के लिए फायदेमंद होता है।बस ध्यान रहे, कि पिस्ता बादाम एवं अखरोट की नियमित मात्रा एक आउंस से अधिक न हो। यह शोधपत्र ए. सी .एस .के जर्नल आफ प्रोटीओम रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।युनिवर्सिटी ऑफ बारसिलोना के शोधकर्ताओं का भी मानना है, कि विश्व में मोटापे से पीडि़त रोगियों का बढऩा, मेटाबोलिक सिंड्रोम से सीधे सम्बंधित है, जिसमें पेट के पास की चर्बी में बढ़ोत्तरी ,हाई ब्लड -शुगर और हाई ब्लड -प्रेशर मिलना तय है।
अत: खान-पान में परिवर्तन लाकर, वजन को नियंत्रित कर, शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है ,इनमें नियमित पिस्ता बादाम एवं अखरोट का निश्चित मात्रा में सेवन भी सम्मिलित है। आपको शायद मालूम होगा, ये सूखे फल पोषक तत्वों से भरे पड़े हैं, इनमें अच्छी चर्बी (अनसेचुरेटेड फेटी- एसिड ) एवं एंटी-ओक्सिडेंट (पोलीफेनोल ) पाए जाते हैं ,जो मेटाबोलिक सिंड्रोम से लडऩे में मददगार होते है। तो आज से ही खाना शुरू करें अखरोट ,पिस्ता और बादाम और हृदय रोगों को करें ना ना ....! इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-ayurveda-these-doctors-work-drayfruts-2543392.html
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