Tuesday, March 6, 2012

एक्सपीरियंस vs एक्सपेरिमेंट

आज हम अपनेआप  को एक्सपेरिमेंटों से घिरा पाते हैं, आज आयी एक रिसर्च कल मानी जायेगी या नहीं कही नहीं जा सकती है I यह शायद हमारी  आधुनिक सोच हो सकती है, लेकिन यह सोच एक अधूरी सोच है Iआज  'एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी' के पैमानों पर परीक्षित परिमाणों को ही सत्य माना जाता है ,आप शायद जानते होंगे क़ि सन १९०५ में आइन्स्टाइन ने “थ्योरी आफ रीलेटीविटी” पर अपना पहला शोध पत्र प्रस्तुत किया था और इस सिद्धांत को कुछ वर्षों में ही  ’एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों  पर स्वीकृति मिल गयी थी और E=MC SQUARE एक अटल सत्य के रूप में स्थापित हुआ था I  लेकिन आज यह थ्योरी भी फेल हो चुकी है ,मुझे लगता है क़ि आज के विज्ञान की दिशा मानव की व्यक्तिगत चेतना को शून्य करने की है, अगर ऐसा नहीं होता ,तो मानव अपने द्वारा ही बनाए गए विनाशकारी चक्रों में क्यूँ फंसा हुआ है ?सामरिक संहार के लिए बनाए गए हथियार और पर्यावरण को नष्ट कर हासिल की गयी भौतिकता इसके उदाहरण नहीं तो और क्या हैं ?शायद आधुनिक विज्ञान आइन्स्टाइन द्वारा अंतिम समय में कहे गए उन शब्दों को भूल गया है ..”I am not interested in spectrum of any element,I want to know how got things  ”.उनकी वेदना उनके द्वारा कहे गए इन शब्दों से और भी अधिक परिलक्षित होती है ..”The Destiny of Humanity is not written on Stars .It is here on the Earth Planet..”  यह बात साबित करती है, क़ि आधुनिक वैज्ञानिकों में सम्मानित आइन्स्टाइन भी मानव चेतना को लेकर उद्वेलित थे I ऐसा ही कुछ हाल ,विकसित  आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का भी है, जिसके उपाय केवल और केवल बाह्य शरीर के लिए ही कारगर सिद्ध हो रहे हैं ,जो मनुष्य क़ी मूल चेतना को परिष्कृत करने से कोसों  दूर हैं I वैदिक संस्कृति और उसी का उपवेद, आयुर्वेद मनुष्य क़ी चेतना को परिष्कृत करने का बड़ा साधन है ,क्योंकि  इसमें वर्णित तथ्य महज ‘एक्सपेरिमेंटल मेथोडोलोजी’ के पैमानों पर सिद्ध नहीं किये हुए हैं ,अपितु शरीर के अन्दर होनेवाली अनुभूतियों पर आधारित हैं, जिसे आधुनिक विज्ञान क़ी बाह्य जगत वाली सोच कभी नहीं समझ सकती है I आयुर्वेद में पूर्ण स्वास्थ्य के लिए आहार,निद्रा और ब्रह्मचर्य को तीन मुख्य स्तम्भ माना गया है और इसको प्राप्त करने के उपाय पूर्णतया निर्दोष हैं, जबकि आधुनिक प्रायोगिक विज्ञान में आहार का सिद्धांत महज बाह्य शरीर को ध्यान में रखकर है और निद्रा के लिए दी जानेवाले औषधियां मनुष्य के जीने की इच्छा को समाप्त करती चली जाती हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो  विकसित देशों में बढ़ती आत्महत्या के पीछे इन औषधियों का सेवन एक बड़ा कारण न होता ! ब्रह्मचर्य के बारे में भी आधुनिक विज्ञान क़ी सोच हमसे कुछ अलग है उनके अनुसार कामतृप्ति महज मानसिक तनावों को दूर करने का साधन है I इन्ही कारणों से उन्हें योग के अभ्यास में भी महज सेक्स बढ़ाना नजर आता है I जबकि हमारे सिद्धांतों में ब्रह्मचर्य को महान बनने का साधन माना गया है‘उर्ध्वरेता भवेत यस्तु सहदेवो न तु मानुषः !’ हाँ काम से पूर्ण विरत रहने पर भी वाजीकरण का सेवन करना निर्दिष्ट है, यही कारण है, क़ि आचार्य चरक ने चिकित्सा  स्थान में सामान्य मानव को भी वाजीकरण औषधियों का सेवन करते हुए इन्द्रिय निग्रह करना बताया है Iआधुनिक विज्ञान में मन और आत्मा का कोई सिद्धांत विशेष नहीं है, जबकि आयुर्वेद आत्मा और इन्द्रिय क़ी प्रसन्नता को स्वास्थ्य  के  परिभाषा क़ी  अंतिम स्थिति मानता है I मन और आत्मा क़ी स्वच्छता मानव्   शरीर को धर्मों के पार ले जाती है और मृत्यु के साथ मनुष्य उस चैतन्य तत्व में विलीन हो जाता है,जहां उसे इस शरीर के साथ सम्पूर्ण जगत एक बूँद के समान प्रतीत होने लगता है I यही कारण है, क़ि विश्व के सभी लोकोत्तर मानव आचार्य शंकर,बुद्ध .महावीरएवं प्रभु इशु मसीह अपने जीवन काल में ही संतुष्ट और मुक्त थे तथा म्रत्यु  के भय  से रहित थे I मुझे लगता है ,धीरे-धीरे ही सही आधुनिक पाश्चात्य सोच में परिवर्तन प्रारम्भ हो रहा है और वह दिन दूर नहीं जब एक्सपेरिमेंट का स्थान एक्सपेरीयंस लेगा …!!

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