अब दिवाली आने ही वाली है और इसे पूर्व धनतेरस के लिए बाजारों में खरीदारी करने क़ी भीड़ उमडऩा एक सामान्य बात है। वैसे भी धनतेरस पांच दिन चलनेवाले दीपावली के त्योहार का पहला दिन होता है,जिसे धनत्रयोदशी या धन्वन्तरीत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है, जो कृष्णपक्ष क़ी त्रयोदशी को आश्विन महीने में पड़ता है। धनतेरस में आनेवाला शब्द 'धन समृद्धि का प्रतीक है और इस दिन देवी लक्ष्मी के वाहन उल्लू को धन, धान्य एवं समृद्धि के लिए पूजने का विधान है। हिन्दू धर्मावलम्बी इस दिन को सोने एवं चांदी क़ी खरीददारी के लिए उपयुक्त मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि़ क्रय किया नया धन शुभ फल देने वाला होता है। इस पर्व को मनाने के पीछे क़ी कथा आपको शायद ही मालूम हो तो हम बताते हैं इसके पीछे क़ी घटना। राजा हिम के सोलह वर्ष के बालक क़ी कुण्डली में विवाह के चौथे दिन सांप के काटने से मृत्यु होने का अंदेशा था, इसलिए विवाह के चौथे दिन उसकी नवविवाहित पत्नी ने मृत्यु के भय से उसे सोने नहीं दिया।
उसने सोने एवं चांदी के गहनों से सजाकर उस कमरे को रोशनियों से सराबोर कर दिया, अपने पति को जगाने के लिए वह कहानियां सुनाने एवं गीत गाने लगी। कहा जाता है कि़ सर्प के रूप में जब यम उस कमरे में दाखिल हुए तो उनकी आंखें कमरे क़ी जगमागाती रोशनियों को नहीं झेल पायी और वे अंधे हो गए तथा उस कमरे में प्रवेश नहीं कर पाए। इसके बाद वे पूरी रात उन सोने चांदी के सिक्कों एवं गहनों के ढेर के ऊपर बैठ रहे और उसकी पत्नी द्वारा गाया जा रहा मधुर संगीत सुनते रहे, अगली सुबह यम चुपचाप कमरे से बाहर निकल गए। इस प्रकार नवविवाहिता पत्नी ने अपने पति के प्राणों को यम के हाथों ले जाए जाने से रोकने में सफलता पा ली थी। कहा जाता है, कि उसी दिन से इस दिन को यमदीपन क़ी संज्ञा दी गयी और पूरी रात जगमगाते प्रकाश से यम के रूप में आनेवाली मृत्यु को दूर रखने क़ी परम्परा विकसित हुई।
एक दूसरी कहानी भी इस दिन के महत्व को बढ़ा देती है, कहा जाता है कि़ देवताओं एवं असुरों के बीच अमृत को लेकर जब युद्ध हो रहा था और इनके द्वारा जब समुद्र का मंथन किया गया तो भगवान् विष्णु के अवतार धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए जिन्होंने देवताओं को अमृत का पान करा अमर बनाया, अत: चिकित्सक रोगमुक्त करने एवं औषधियों में अमृत तुल्य गुणों की प्राप्ति हेतु भगवान् के रूप में पूजते हैं ताकि उनकी चिकित्सा सफल हो और प्राणियों के दुखों का नाश हो।इसी आर्टिकल को पदाहने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-husband-was-going-to-bite-the-snake-but-when-2494253.html
उसने सोने एवं चांदी के गहनों से सजाकर उस कमरे को रोशनियों से सराबोर कर दिया, अपने पति को जगाने के लिए वह कहानियां सुनाने एवं गीत गाने लगी। कहा जाता है कि़ सर्प के रूप में जब यम उस कमरे में दाखिल हुए तो उनकी आंखें कमरे क़ी जगमागाती रोशनियों को नहीं झेल पायी और वे अंधे हो गए तथा उस कमरे में प्रवेश नहीं कर पाए। इसके बाद वे पूरी रात उन सोने चांदी के सिक्कों एवं गहनों के ढेर के ऊपर बैठ रहे और उसकी पत्नी द्वारा गाया जा रहा मधुर संगीत सुनते रहे, अगली सुबह यम चुपचाप कमरे से बाहर निकल गए। इस प्रकार नवविवाहिता पत्नी ने अपने पति के प्राणों को यम के हाथों ले जाए जाने से रोकने में सफलता पा ली थी। कहा जाता है, कि उसी दिन से इस दिन को यमदीपन क़ी संज्ञा दी गयी और पूरी रात जगमगाते प्रकाश से यम के रूप में आनेवाली मृत्यु को दूर रखने क़ी परम्परा विकसित हुई।
एक दूसरी कहानी भी इस दिन के महत्व को बढ़ा देती है, कहा जाता है कि़ देवताओं एवं असुरों के बीच अमृत को लेकर जब युद्ध हो रहा था और इनके द्वारा जब समुद्र का मंथन किया गया तो भगवान् विष्णु के अवतार धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए जिन्होंने देवताओं को अमृत का पान करा अमर बनाया, अत: चिकित्सक रोगमुक्त करने एवं औषधियों में अमृत तुल्य गुणों की प्राप्ति हेतु भगवान् के रूप में पूजते हैं ताकि उनकी चिकित्सा सफल हो और प्राणियों के दुखों का नाश हो।इसी आर्टिकल को पदाहने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-husband-was-going-to-bite-the-snake-but-when-2494253.html
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