आपने आयुर्वेद के ब्रह्मा से स्वर्ग लोक में इन्द्र तक क़ी ज्ञान यात्रा तो सुनी होगी,परन्तु इसका एक रोचक पहलु पृथ्वी पर आने को लेकर है आयुर्वेद ज्ञान गंगा का लाभ स्वर्गलोक के देवता इन्द्र के माध्यम से ले रहे थे, लेकिन इस ज्ञान को पृथ्वी पर लाने का श्रेय ऋषि भारद्वाज को जाता है I भारद्वाज ही एक ऐसे ऋषि थे ,जो सशरीर स्वर्ग लोक जा सकते थे,अतः विनय से युक्त होकर मुनियों ने उनसे प्रार्थना क़ी और कहा : मुनियों में श्रेष्ठ भारद्वाज आप आयुर्वेद क़ी ज्ञान गंगा को भू लोक पर लाने हेतु स्वर्ग लोक जाएँ, मुनियों के अनुनय को ऋषि भारद्वाज टाल न सके एवं प्राणियों क़ी रोग से मुक्ति के साधन आयुर्वेद को मृत्यु लोक में लाने हेतु स्वर्गलोक जा पहुंचे I स्वर्ग लोक में भगवान् इंद्र ने ऋषि भारद्वाज को देखते हुए प्रसन्नता से कहा -हे धर्म को जानने वाले मुनि आपका स्वागत है तथा उनका विधिपूर्वक पूजन किया इसके बाद भारद्वाज ऋषि ने इन्द्र का अभिनन्दन करते हुए मृत्यु लोक के मुनियों के वचनों को यथार्थ रूप में सुनाया और कहा,हे देवेन्द्र इस समय मृत्यु लोक के सभी प्राणी भयंकर रोगों से ग्रसित हैं, उन्हें इस दुःख से मुक्ति हेतु उपाय जिस तरह से हों मुझे बताइये अर्थात मुझे आयुर्वेद पढ़ाइए ताकि प्राणी रोग मुक्त हो सकें महामुनि भारद्वाज ने देवेन्द्र से आयुर्वेद को पढ़ कर थोड़े ही दिनों में पूर्ण रूप से समझ लिया तथा स्वयं को भी रोगमुक्त कर लम्बी आयु प्राप्त क़ी I उन्होंने यह ज्ञान अन्य मुनियों को भी दिया, जिससे वे सब भी रोगमुक्त होकर चिरायु को प्राप्त हुए भारद्वाज ऋषि के बताये अनुसार अन्य ऋषियों ने भी आयुर्वेद ज्ञान-गंगा क़ी विधियों का आश्रय प्राप्त किया तथा रोगग्रस्त मानवों का कल्याण किया I जिस समय मत्स्यावतार द्वारा भगवान् विष्णु ने वेदों का उद्धार किया उसी समय शेष भगवान् ने वेदों के ज्ञान को संपूर्ण अंगों के साथ प्राप्त किया, इसी क्रम में अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद का ज्ञान भी अवतरित हुआ कहा जाता है,क़ि एक बार शेष भगवान् पृथ्वी पर चर (जासूस ) के रूप में विचरण को निकले, उन्होंने यहाँ लोगों को अनेक रोगों से पीड़ित पाया,यह देखकर भगवान् दया से युक्त हो गए तथा इसके निवारण का उपाय सोचने लगे काफी सोच-विचार करने के बाद वे स्वयं भू लोक में 'विशुद्ध' नाम से किसी मुनि के यहाँ पैदा हुए,चूँकि शेष भगवन भू-लोक पर छुप कर आये थे तथा उन्हें किसी ने पहचाना नहीं था ,अतः वे 'चरक' के नाम से प्रसिद्द हुए तथा काय-चिकित्सा के जनक के रूप में जाने गए,इसी प्रकार आत्रेय ऋषि के शिष्यों ने भी अपने-अपने तंत्रों क़ी रचना क़ी जिनके ग्रन्थ कालांतर में लोकप्रिय हुए I इसी प्रकार देवेन्द्र ने देवताओं में श्रेष्ठ भगवान् धन्वन्तरी से कहा क़ि आप योग्य हैं ,अतः आप प्राणियों के उपकार करने हेतु तत्पर हों ,पूर्व समय में प्राणियों के कल्याण हेतु भगवान् विष्णु तक ने मत्स्य का रूप धारण किया अतः आप भी पृथ्वी पर जाएँ और काशीपुरी के मध्य वहाँ के राजा बनकर रोगों को दूर करते हुए मृत्यु लोक में आयर्वेद का प्रकाश फैलाएं I
डॉ नवीन जोशी
एम्.ड़ी.आयुर्वेद
ई.मेल :ayushdarpan@gmail.com.com
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