Saturday, October 15, 2011

ऋषि-मुनियों जैसी लंबी आयु चाहिए तो बस ये एक शर्त है....


हमारे जीवन में सांसों का बड़ा महत्व है। सांस शब्द का प्रयोग किसी की मृत्यु हो जाने पर अंतिम सांस लेने जैसे शब्द के रूप में किया जाता है। ऐसे ही सांस  के रूप में लिए जाने वाली प्राणवायु को विष्णुपदामृत कहकर संबोधित किया जाता है। प्रेमी एवं प्रेमिका के लिए भी सांसों से सांस जुडऩे की बात कई संगीतकारों ने अपनी रचनाओं में की है। किसी क़ी सांस दुर्घटनावश उखड रही हो तो मुंह से सांस देने का भी विधान है। ऐसे ही  योग में प्राणायाम क़ी क्रियाओं में भी सांस का बड़ा महत्व है।सांस लेना पूरक,सांस छोडना रेचक एवं सांस रोकना कुम्भक कहलाता है।
कहा जाता है, कि़ सांस गिनती की मिली है ,और लम्बी उम्र जीने की चाह रखने वालों को अपने सांसों पर नियंत्रित रखने का निर्देश योग  एवं आयुर्वेद के मनीषियों ने भी दिया है।  ऐसा देखा गया लम्बी आयु जीनेवाले जीव अपनी सांस धीमी लेते हैं, इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं , कि़ सांस के रूप में ईश्वर ने  हमें एक बैंक बैलेंस दिया है , अब यह हम पर निर्भर करता है कि़ हम इसे कैसे खर्च करते हैं। वैसे भी अधिकाँश बीमारियों में सांसों क़ी गति का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन योगी, ऋषि-मुनि अपनी सांसों पर नियंत्रण कर लम्बी आयु प्राप्त करते थे,इसलिए सांस को नियंत्रित कर तथा प्रदूषणमुक्त वातावरण में जीवन बिताने से  चिरायु एवं सुखायु  प्राप्त होती है ।इसी आर्टिकल को पढ़ने  के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
http://religion.bhaskar.com/article/yoga-like-monks-have-a-long-life-is-just-a-condition-that-2405832.html

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