अक्सर ऐसा होता है, कि हमने अभी किसी काम को करना सोचा और किसी और काम में उलझ गए और भूल गए। जैसे किसी चीज को कहीं रखकर भूल जाना। फिर ढंढूते रहना या किसी का नाम अचानक याद होने के बावजूद भी जुबान पर न आना।
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html
हम सभी के जीवन में ऐसा अक्सर होता है, कि दिमाग में कई बार कुछ सेकेण्ड पहले एक निश्चित कार्ययोजना होती है। लेकिन जैसे ही उसे क्रियान्वित करने की बात आती है। हम इसे रिकाल नहीं कर पाते हैं और भूल जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नोटरडम के शोधकर्ताओं का दावा है, कि ऐसा अक्सर ऐसा तब होता है। जब हम एक कमरे से दूसरे कमरे में प्रवेश कर रहे होते हैं।
छात्रों में कराये गए एक अध्ययन से यह बात देखी गयी, कि छात्र जब एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रहे थे तो वे अक्सर बातों को भूल जा रहे थे। जबकि एक ही कमरे में आने-जाने से ऐसा कम हो रहा था। इस अध्ययन से यह बात देखने में आयी। जब हम किसी भी सीमा ( बाउंडरी ) से पार होते हैं, तो यह हमारी सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
प्रोफेसर गेब्रियल राडवन्स्की का कहना है ,एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने या किसी भी बाउंडरी को पार करने से हमारे विचार कम्पार्टमेंट्स (खानों ) में बांट दिए जाते हैं ,इसलिए उन्हें रिकाल करना कठिन हो जाता है। यह हमारी सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अत: हमें हमेशा बैठकर,शांत चित्त से सोचने,समझने और निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए। ठीक ही कहा गया है ,जल्दी का काम शैतान का ....।इसी आर्टिकल को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें :http://religion.bhaskar.com/article/yoga-why-do-small-things-we-forget-2581143.html
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